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कहानी

कहानी

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प्रत्येक दिन का क्रम था उसका रोजाना इत्र की दुकान के नजदीक आकर

चाल धीमें कर लेना। आसपास लोगो से नजरें बचा कर हवा में तैरती खुशबुओं को सांस खींच कर अपने में समाहित कर लेना ।

जब सामने वाला दुकानदार लड़की को रोज इस तरह हसरत से इत्र की खूबसूरत शीशियों को देखते हुए देखता है और सोचता है, इसका इतना सामर्थ्य नहीं कि इत्र खरीद सके ।

अगले दिन ज्योंही लड़की दुकान के आगे रुकती है तो पीछे से नन्ही सी खूबसूरत इत्र की शीशी लिए हाथ नज़र आता है।एक बारगी लड़की ठिठक जाती है किन्तु दूकानदार ने यह कहते हुए शीशी लड़की के हाथ में थमा दी, यह कहकर कि मेरी लड़की को बहुत पसंद था, में उसे इत्र लेजा कर दिया करता था। किन्तु बहुत बरस बीत गये हैं उसको गये । रोजाना इन नन्ही शीशियों को देख कर उसको महसूस करता हूँ । तुम्हारी इत्र के लिए चाहना देखी तो मैं तुम्हे दे रह हूँ ना मत कहना, तुम उसी की तरह हो मुझे सुकून मिलेगा ।

दूकानदार के इस तरह ममता दिखाने पर लड़की शीशी ले लेती है और घर जाकर अपने बक्से में छुपा कर रख देती है। इतने में ही कर्कश आवाज में एक औरत के चिल्लाने की आवाज सुनाई देती है, अरे मुँहझौंसी कहाँ मर गई सारा दिन आवारागर्दी करती रहती है, इतना कामकाज बिखरा पड़ा है ,चल बर्तन साफ कर। लड़की चुपचाप नल पर जाकर बर्तन माँजने बैठ जाती है। इस तरह घर का सारा काम-काज करके खाने के लिए चौके में जाती है, तो जरा सी सब्जी और बची हुई दो रोटी खाकर

धीरे से बक्सा खोल कर इत्र की शीशी देखने लगती। है और उसकी खुशबु को महसूस करती है, इतने में ही पीछे से उसकी सौतेली माँ देख लेती है और लगती है चिल्लाने -ओ माँ जरा देखो तो ! कहाँ से लेकर आई , किसने दिया , ये मुँहझौंसी हमारा मुँह काला करेगी और उस कर्कशा को पीटने का बहाना मिल गया ।

लड़की ! अरे रूकें मैं कितनी ही देर से लड़की कहे जा रही हूँ नाम भी तो होगा ना ? मीनू हाँ यही तो नाम है। बड़ी-बड़ी हिरनी सी आँखे, खूबसूरत लंबे बाल जो देखभाल न करने के चलते रूखे हो रहे है। मीनू विनती किये जा रही थी ओ माँ मैने कुछ नही किया दूकान के सामने वाले बाबा ने दी, किन्तु उस बेचारी को सुनने वाला कोई नहीं था। ये आज की ही तो बात नहीं थी ये रोज का ही क्रम था । अलग-अलग दिन का अलग-अलग बहाना।आखिर तय हुआ शीशी वापस कर आने का। दूकानदार को सब खबर मालूम हुई तो उसने मन ही मन कुछ निश्चय किया।

रात को पता किया मीनू के पिताजी किस समय इधर से निकलते है और उनका इंतजार किया ।थोड़ी देर में सामने से आते दिख गये दूकानदार बाबा ने रोक कर कुछ देर बात की सब कुछ कहने-सुनने के बाद मीनू के पिताजी बोले, भाई मैं बहुत लाचार हूँ विवाह तो लड़की की देखभाल के लिए किया था किन्तु अब...सब कुछ जान गये हो ।और दूकानदार ने विनती की लड़की को मैं पाल-पौष दुँगा मैं और मेरी पत्नी आपका एहसान मानेंगे ।मेरी पत्नी लड़की के जाने के बाद से बिमार रहने लगी है, आपके हाँ करने से जी जायेगी। कुछ देर सोचने के बाद मीनू के पिताजी ने कहा ठीक है मेरे घर में लड़की का जीना-खाना मुश्किल हो रहा है। आपके पास रहने से कुछ भला हो सकेगा ।बाबा का खुशी से मन भर आया।

अब मीनू बड़ी हो गई है। आज उसका विवाह है। वो खुश है...!


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