वजनदार प्रेम
वजनदार प्रेम
प्रेम जब यथार्थ के धरातल पर आता है तभी उसकी सही परिभाषा सामने आती है जैसे कोमल और अनूप का प्रेम अचानक से परवान चढ़ा।
कोमल और अनूप एक शादी समारोह में एक-दूसरे से मिले। विवाह भी माता-पिता की स्वीकृति से आयोजित विवाह था। कोमल और अनूप ने एक-दूसरे को देखा ओर अनुमति दे दी। हालांकि अनूप की ख्वाहिश बहुत आधुनिक कन्या की थी पर घर की खातिर कोमल को पत्नी के रुप में स्वीकारा। एक साधारण सा जोड़ा जिसके शुरुआती साल खुमारियों में गुजरे फिर अवन्या और अनिकेत हुए। कोमल व्यस्त रहने लगी। अनिकेत अपने प्राइवेट कंपनी की इंजीनियर वाली नौकरी में रम गया। अब सब यंत्रवत हो चला था। वहीं सब भाग-दौड़ और रात में थकान और फिर सो जाना। इसके साथ-साथ कोमल को भी थायराइड की शिकायत हो चली थी और वह मोटी हो गई थी। अनूप को यह अच्छा नहीं लगता था इसलिए वह उससे कटे-कटे रहने लगे। यहाँ तक तो ठीक था पर धीरे-धीरे वो दूसरी लड़कियों के साथ चैटिंग और घूमने-फिरने लगा। कोमल बस नाम की कोमल रह गई थी।
कोमल ही दोनों बच्चों और घर की व्यवस्था देखती। अनूप का तो जैसे मोहभंग हो गया, एक दिन कोमल ने जैसे ही उसके पास आने की कोशिश की उसने कहा..कोमल, तुम कितनी बैडोल हो चुकी हो। खुद पर ध्यान नहीं देती। मुझे देखो कितना फिट हूंँ। तुम मेरी अम्मा लगती हो। खुद को कंट्रोल करो, वरना मुझसे दूर ही रहो।अब यह रिश्ता बस औपचारिकता भर रह गया था। प्रेम तो लेशमात्र भी ना बचा था।
कोमल अक्सर उसे प्रेम के अहसासों से सराबोर वो पल याद दिलाने की चेष्टा करती..कुछ याद करो वो हसीन लम्हे,और वो उसे चिढ़ाकर कहता..हाँ..अब हो गए हैं..लेजी लेजी लम्हे। मोटी खुद को देखो हथिनी हुई जा रही हो। इस पर वह कहती कि इसमें उसका जोर नहीं है, पर अनूप इसे बहानेबाजी करार देता।
कोमल कोशिश कर रही थी पर वजन थोड़ा कम होता, पर फिर बढ़ जाता। उधर अनूप को नयी कमसिन कली लुभा रही थी..नाम था शेफालिका। वह अनूप और कोमल का तलाक करवाना चाहती थी। अनूप भी उसकी बातों में बच्चों को भी भूल गया।
आखिर शेफालिका भी अनूप के जरिये अपनी सारी हसरतें पूरी करना चाहती थी, क्योंकि वह अत्यधिक महत्वाकांक्षी थी, और साधारण परिवेश से आई थी। ऐसी हसरतें पाल ही रही थी, कि एक दिन अनूप की कार का एक्सीडेंट हो गया, बुरी तरह घायल हालत में उसे अस्पताल पहुंचाया गया, रीढ़ की हड्डी में चोट लगी और अस्पताल से छुट्टी के बाद डाक्टर ने करीबन साल भर आराम की सलाह दी। घर पर ही फिजियोथेरेपी और बाकी चिकित्सा शुरू हुई।
कोमल पर दोहरा भार पड़ा, घर से पुश्तैनी जमीन थी कुछ, उसका सहारा था पर फिर भी कोमल नहीं चाहती थी, किसी भी तरह से खर्च के लिए उसी पर निर्भर रहा जाए, उसने घर से ही काम शुरू किया, उसने घर के निचले हिस्से में अपनी एक सहेली के साथ प्ले स्कूल खोला। सब देखती और बच्चों को भी। खुद की बीमारी तो थी ही। एक सहायिका रखी जो मदद कर दिया करती, उधर शेफालिका एक्सीडेंट के बाद बस एक बार ही अनूप से मिली, फिर उधर रुख ही ना किया। अनूप उसे फोन लगाते वह जबाव नहीं देती। इधर कुछ महीने में ही अनूप को अपने गठीले और आकर्षक शरीर में गजब का बदलाव दिखा। कुछ दवाइयों और पौष्टिक भोजन के कारण और बिस्तर पर आराम के बाद वह भारी हो चला था। मोटापे की दस्तक थी। वह ग्लानि से भर गया कि कोमल को कितना बुरा कहा, आज वह खुद उसी का शिकार है।
उधर कोमल दिन भर की भाग-दौड़ से और परेशानियों से पस्त होकर थोड़ी हल्की हो चली थी, एक दिन स्कूल के समारोह के लिए पीली साड़ी पहनकर जब वह तैयार हुई तो अनूप उसे देखता रह गया। वह बहुत प्यारी लग रही थी। चेहरे पर एक तपस्विनी सा तेज था। आखिर इतनी जिम्मेदारियाँ निभाना किसी तपस्या से कम था क्या। अनूप सोच रहा था, ये औरते कितनी संयमित होती है, वह कोमल की जगह होता तो कितनी बार फिसलता, शायद कुछ बातें बचपन से हम लड़कों के मन में डाल दी जाती है और हम उसी चश्मे से औरतों को देखते हैं, जो कि गलत है। अपने बेटे को मैं ऐसी शिक्षा नहीं दूँगा। उसने मन में निश्चय किया।
एक एक कर सारे परिदृश्य अनूप के सामने घूमने लगे। कोमल ने बिना किसी मतलब के उसकी सेवा की,जबकि वह शेफालिका के बारे मे जान चुकी थी, पर समयानुसार उसने व्यवहार किया, जबकि वह भी तलाक का सोचने लगी थी। जीवन की इन आरोही-अवरोही राहों में कोमल ही साया बनकर उसके साथ थी।
एक दिन अनूप ने कोमल को रोका और फफक-फफक कर रो पड़ा, आत्मग्लानि से भरा हुआ था, कहने लगा कि मैं माफी के काबिल तो नहीं कोमल, फिर भी यही सोचकर माफ कर दो, कि ये मूर्ख व्यक्ति तुम्हारा पति है, जो शारीरिक सुंदरता पर चिकने घड़े सा फिसलता है, पर सच कहूँ, तो व्यवहार और बुद्धि में तुम मुझसे कहीं आगे हो। इन मुसीबत भरे दिनों में तुमने गजब का साहस दिखाया। तुम्हारे जैसी पत्नी पाकर मैं गौरवान्वित हूंँ।कोमल क्या मेरी सारी अक्षम्य अपराध भूलकर क्या मुझे फिर से अपनाओगी। मैं तुम्हारे बिना ना रह पाऊँगा। वह बोलता जा रहा था, पीड़ा उसकी आंँखों में साफ दिख रही थी।
कोमल ने कहा, बस करो अब मुझे भी रुलाओगे क्या। मैं तुम पर कोई दबाव नहीं डालना चाहती थी, अनूप, जब देखा तुम बेमन से रिश्ता निभा रहे हो तो मैंने तुम्हें मुक्त करना ठीक समझा था पर इसके पीछे भी मेरा प्यार ही था जो तुम्हें समझ ना आया।
हाँ कोमल, शायद भगवान मेरा भला चाहते हैं, जो ये हादसा हुआ और सच्चाई मेरी समझ में आई। इन सब में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका इस वजन की रही। आज से हमारा प्रेम भी इतना वजनदार होगा, कभी नहीं डिगेगा।अंगद के पाँव की तरह।
इतना सुनते ही कोमल खिलखिलाकर हँस पड़ी। जीवन की बगिया के सारे पुष्प सुरभित हो उठे। इसके बाद उनकी जीवन बगिया भी खुशियों के वजन तले दबी रही।