बेड़ियाँ।

बेड़ियाँ।

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विद्युत बहुत अधिक क्रोध में था। निर्दोष बड़ी भाभी का इस तरह से घर छोड़कर जाना वह बर्दाश्त नहीं कर पाया। माँ को गुस्से में बहुत कुछ कहा। विनय उसे समझाते हुए कह रहा था, “कुछ भी हो जाए माँ से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए।तुम्हें पता है तुम नरक के भागी बनोगे”


इस पर विद्युत बोला “भैया मैं सब जानता हूँ, गलत कर्म करने पर हम नरकलोक के भागी बनेंगे। पर क्या कभी आपने सोचा है कि बीते कितने सालों से माँ जानबूझकर गलत करती रही। उनके अनुसार बहुएँ दासी है, गालियाँ देना, ताने मारना तो आम था और कितनी गलत मान्यताएं बहुओं पर थोपती आ रही है। जिसकी वजह से भाभी तीसरी बार गर्भपात का शिकार हुई और डॉक्टर को ना दिखाने से कौन सा प्रयोजन सिद्ध होता था उनका? काम का बोझ ऐसी अवस्था में भी उन पर लादा गया, जबकि उनकी कमजोर हालत सभी जानते थे। ऐसे में हमारी ब्याहता बहन का यहाँ रहना और इन दोनों माँ बेटी ने जिस तरह के दिमागी अत्याचार उनपर किए, वो किसी से छिपे नहीं है। ये लोग तो उनसे सीधे मुंह बात भी ना करते थे। कम पढ़ी लिखी थी, तो चुनाव भी तो इनका ही था। इसमें उनकी क्या गलती? बेचारी इस भरे पूरे घर का बोझ नहीं उठा पा रही थी,अकेले। उनको समय और उनका साथ देने की बजाय मानसिक प्रताड़ना दी गयी। कितना सहती? बेड़ियाँ तोड़कर चली गयी। मैं गलत बात नहीं सह सकता, इसलिए माँ को खरा खरा कहकर उनकी गलतियाँ गिनवाईं। हो सकता है, मैं नालायक बेटा हूँ, तो नरक जाऊं। पर माँ का परलोक भी तो सुधारना जरूरी है। उन्हें गलतियां कैसे करने दूँ? भाभी तो अपनी मानसिक बेड़ियाँ तोड़कर चली गयी, चाहता हूँ, अब माँ के दिमाग की बेड़ियां खुल जाए, जो प्रपंचो के कारावास में है”


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