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वो भिखारी बच्चा.....

वो भिखारी बच्चा.....

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ॐ साईं राम

“वो भिखारी बच्चा...”

“हटो – हटो, गाड़ी छोड़ो और दूर हटो; कुछ नहीं मिलेगा तुम्हें, तुम लोग काम धाम कुछ करते नहीं हो और भीख माँगने के नये-नये तरीके खोज लेते हो”

यह कहते हुए सुनील बाबू अपनी नयी कार का दरवाजा खोल कर बाहर उतरे और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता उन्होंने बड़ी बेरहमी के साथ गाड़ी साफ़ करने वाले उस 8 – 10 साल के भिखारी लड़के के दो चार जोरदार थप्पड़ जड़ दिए I

“अभी अभी नयी कार ली है, पूरे चार लाख रुपये की, इसलिए थोड़ी न ली है कि इस तरह चौराहे – चौराहे भिखारी लड़के गाड़ी साफ़ करते - करते उसमे खरोंचे मार दें I गाड़ी क्या अगर मौक़ा मिले तो यह लोग गाड़ी के अन्दर का माल भी साफ़ कर दें I सब साले चोर होते हैं ! मैं क्या इन्हें जानता नहीं हूँ ?” अपने बगल में खड़े मोटर साइकिल सवार से यह सब बोलने के बाद सुनील बाबू गुस्से से लाल-पीले होते हुए एक बार फिर उसी भिखारी लड़के की तरफ लपके जो मार खाने के बाद किनारे खड़ा अभी तक सुबक रहा था I सुनील बाबू को दोबारा अपनी तरफ आता देखकर वह बेचारा बहुत डर गया और भाग कर कुछ दूर चला गया I

सुनील बाबू यूँ तो अपनी बुद्धिमता और कार्य कुशलता के लिए प्रसिद्ध थे परन्तु ,उनकी एक ख़ूबी और भी थी और वह थी उनकी व्यवहारिकता I सुनील बाबू समाज कल्याण विभाग के भिक्षा उन्मूलन विभाग में बाबू के पद पर कार्यरत थे I पूरे विभाग में यह प्रसिद्ध था कि कोई कार्य अगर किसी से न हो रहा हो तो वह कार्य सुनील बाबू को सौंप दो और वह दो चार दिन के अन्दर ही उसका कोई न कोई हल खोज लेंगे और फिर साहब से लेकर मंत्री जी तक सबसे उस काम को करा भी लाऐंगे I आखिर कोई तो बात थी हमारे सुनील बाबू में जो वह इतने प्रसिद्ध होते हुऐ भी कभी भी मलाईदार पद से हटाये नहीं गऐ थे I आख़िरकार सुनील बाबू सभी का इतना ध्यान जो रखते थे और जो कुछ भी आये उसे मिल बाँटकर खाने में विश्वास रखते थे और सबको ख़ुश रखते थे I

अभी भी सिग्नल नहीं हुआ था शायद किसी अति महत्वपूर्ण व्यक्ति का काफ़िला  आना था इसलिए सारा ट्रैफिक रूक गया था I एक तो बाहर इतनी गर्मी ऊपर से यह ट्रैफिक जाम और तिस पर से सुनील बाबू की प्यारी गाडी को उस भिखारी बच्चे का हाथ लगाना, यह सब बातें सुनील बाबू का गुस्सा बढ़ाने के लिए काफी थीं और वह गुस्से से भुनभुनाते हुए गाड़ी के अन्दर आकर बैठ गए I उनकी पत्नी अंजलि जो आगे ही बैठी हुई थी अचानक बोल पड़ीं “ आपको उस लड़के को मारना नहीं चाहिए था ! देखा नहीं था आपने कितना गन्दा था वह ऐसा लग रहा था मानो कई दिन से नहाया ही नहीं हो, आपको घिन नहीं आई उसको हाथ लगाते हुऐ I ”

सुनील बाबू – “ तो फिर क्या करता उस लड़के को अपनी कार ख़राब करते हुए देखता रहता ?“

अंजलि – “पर उसे डाँटकर भी तो काम चल सकता था”

सुनील बाबू – “यह लोग बड़े ही ढीठ होते हैं और डाँट फटकार का इन पर कोई असर नहीं होता है”

माँ बाप के बीच इस तरह की बहस देख कर पीछे बैठे उनके बेटे अमन, जो अभी मात्र 6 बरस का था, उससे चुप नहीं रहा गया और वह बोल पड़ा;

अमन – “पापा आखिर वह लड़का गाड़ी क्यों पोंछ रहा था ?”

सुनील बाबू – “ बेटा इसलिए कि उसे पैसे चाहिए थे”

अमन – “उसे पैसे क्यों चाहिए थे?”

सुनील बाबू –“ उसे पैसे खाना खरीदने के लिए चाहिए थे”

अमन –“क्या उसे घर में खाना नहीं मिलता ?”

सुनील बाबू –“ नहीं”

अमन – “क्यों नहीं ?”

सुनील बाबू – (खिसियाते हुए से ) “ वह गरीब है “

अमन – “ गरीब क्या होता है ?”

सुनील बाबू – “ जिसके पास पैसे नहीं होते हैं”

अमन – उस लड़के के पास पैसे क्यों नहीं हैं, क्या उसके पापा उसे पैसे नहीं देते हैं ?”

सुनील बाबू – “नहीं”

अमन – “ क्यों नहीं देते हैं, आप तो मुझे रोज पैसे देते हैं ”

सुनील बाबू – “हाँ मैं तुम्हे देता हूँ क्योंकि मेरे पास पैसे हैं , पर उसके पापा के पास पैसे नहीं हैं, इसलिए नहीं देते हैं”

अमन – “उसके पापा के पास पैसे क्यों नहीं हैं?”

सुनील बाबू – “मुझे नहीं पता, तुम तो हर चीज़ की हद कर देते हो, अब चुपचाप अपने चिप्स और चॉकलेट खाओ”

सुनील बाबू बुरी तरह झुँझला गए थे I

अमन बेचारा चुपचाप पीछे वाली सीट पर बैठ गया पर उसके प्रश्न अभी भी अनुत्तरित थे कि क्यों उस भिखारी बच्चे के पास कुछ खाने के लिए नहीं था ? और क्यों उसके पापा जो इतने अच्छे हैं उन्होंने उस बच्चे को इतना मारा ?

तभी अचानक सुनील बाबू के मोबाइल पर किसी का फ़ोन आया और उस नंबर को देखते ही उनका चेहरा ख़ुशी से खिल उठा I

सुनील बाबू – “कहिये माथुर साहब कैसे याद किया ?”

माथुर साहब – “ सुनील बाबू एक फाइल फँस गयी है, निकलवानी है “

सुनील बाबू – “ कौन सी फाइल ?”

माथुर साहब – “ बाल भिक्षावृत्ति को रोकने और भिखारी बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकारी सहायता मिल रही है I उसी सहायता को पाने के लिए आवेदन किया है, फाइल में कुछ कमी है और आपके पास ही है, आपकी रिपोर्ट लगनी है”

सुनील बाबू – “ मुझे मालूम है, आपका काम कठिन है पर हो जायेगा I बाक़ी साहब और मंत्री जी सबका मिला कर लगभग पाँच लाख खर्च हो जायेंगे I”

माथुर साहब – “ सुनील बाबू, कहिये कब पहुँचा दूँ आपके घर पर ?’

सुनील बाबू – “शुभस्य शीघ्रम “

इतनी बात के बाद और हाल चाल पूछने के बाद फोन कट गया I

सुनील बाबू बड़बड़ाने लगे “सब साले चोर हैं ! तीस लाख का अनुदान मिलेगा और पाँच लाख रुपये देने में जान निकल रही है, बाक़ी के पच्चीस लाख रुपये में मुश्किल से पाँच लाख ही खर्च होंगे और बीस लाख बचेंगे I”

इधर वह भिखारी बच्चा बेचारा सड़क के उस पार कूड़ेदान के पास खड़ा यह सोच रहा था कि  कब वह दिन आऐगा जब उसको भी अपनी पसंद का खाना भर पेट खाने को मिलेगा, कब वह भी अच्छे कपड़े पहनेगा, क्या वह कभी – भी इन बड़ी – बड़ी गाड़ियों में घूम पायेगा ? क्या वह भी कभी साफ़ कपड़े  पहन कर स्कूल जायेगा ? वह लोग जो कभी – कभी बड़े – बड़े कैमरों के साथ आते हैं और खाना और कपडा बाँटते हैं साथ में फोटो खिंचवाते हैं वह लोग रोज़ क्यों नहीं आते हैं ? इतने सारे सवाल उसके दिमाग में उठ रहे हैं जिनका जवाब वह ढूँढ रहा है और साथ ही साथ वह कूड़ेदान में भी कुछ खाने के लिए ढूँढ रहा है I

उधर अमन बेचारा चुपचाप चिप्स और चॉकलेट खाते हुए यह सोच रहा था कि क्यों वह भिखारी बच्चा आखिर अपने घर से टिफ़िन लेकर नहीं आता है ? वह बच्चा जब सड़क पर गाड़ियाँ पोंछता है तो वह अपने स्कूल का होम वर्क कब करता होगा ? उसके पापा कितने गंदे हैं  जो उस बेचारे बच्चे को पैसे भी नहीं देते हैं I

इन्हीं ख्यालों में डूबते उतराते अमन ने निश्चय किया कि वह अपने चिप्स और चॉकलेट में से थोड़ा-2 उस भिखारी बच्चे को खाने के लिए देगा और उसने बिना वक़्त गँवाऐ उस भिखारी बच्चे को इशारे से अपने पास बुला लिया I

वह भिखारी बच्चा भी कूड़ेदान में कुछ नहीं पा कर एकदम निराश हो चुका था और भूख से बेहाल था I यह भूख भी कितनी बेरहम होती है जब इंसान के पास खाने के लिए कुछ नहीं होता है तब और ज़ोर से महसूस होती है I

इधर – उधर देखने के बाद उसकी नज़र अचानक अमन पर पड़ी जो उसे इशारे से अपने पास बुला रहा था I भूख से व्याकुल पहले तो वह जाने से डर रहा था पर फिर पेट की आग ने उसे विवश कर दिया और वह तेजी से अमन की तरफ दौड़ पड़ा I

गाड़ी के पास आकर ही उसने दम लिया और एक बार फिर कनखियों से सुनील बाबू की तरफ देखा और जब वह निश्चिन्त हो गया कि सुनील बाबू अपने ही ख्यालों में खोऐ हुए हैं तो वह अमन के पास आकर खड़ा हो गया I अभी अमन ने उसे कुछ खाने को दिया ही था कि ट्रैफिक के दुबारा चालू होने के लिए सिग्नल हो गया और गाड़ियों के शोर ने सुनील बाबू के विचारों की लय तोड़ दी I अचानक उनकी निगाह फिर से उसी भिखारी बच्चे पर पड़ी और इस बार उसके हाथ में चॉकलेट देखकर सुनील बाबू बेहद आग बबूला हो गए और तुरंत गाड़ी से उतर कर उस भिखारी बच्चे की तरफ लपके I

सुनील बाबू को अपनी तरफ आता देखकर वह बच्चा अपनी पिटाई के डर से बिना कुछ खाऐ ही चॉकलेट वहीँ फेंककर सरपट भागा I उस बेचारे को भागते समय यह भी ध्यान नहीं रहा कि, सामने से गाड़ियाँ आ रहीं थीं और चंद लम्हों में ही वह एक तेज रफ़्तार गाडी के सामने पहुँच गया था I इसके बाद लोगों ने केवल एक जोरदार आवाज़ और एक चीख सुनी और एकाएक भागता दौड़ता ट्राफिक रुक गया I सड़क के बीचों – बीच वह भिखारी बच्चा एक लाश में तब्दील होकर पड़ा हुआ था I आखिर उसे भूख और गरीबी से मुक्ति मिल गयी थी I इधर यह सब देख कर सुनील बाबू रुक गऐ और उन्होंने वहाँ से निकल लेने में ही अपनी भलाई समझी और सिग्नल होते ही गाड़ी लेकर तेजी से आगे बढ़ गए I

यह सब अंजलि ने भी देखा और वह उसके बाद से ही ख्यालों में खो गयी I उसे यह एहसास हो रहा था कि रोज़ इस तरह कितने ही भोले भाले बच्चे अपनी जान दे देते होंगे I उसे अपनी सारी खुशियाँ ऐसे ही मासूमों के ख़ून से रँगी हुई दिखाई पड़ने लगी I आज उसे अचानक यह लग रहा था कि उस भिखारी बच्चे और उसके जैसे दूसरे बच्चों की दुर्दशा के लिए वह स्वयं और उसके जैसी दूसरी औरतें ही ज़िम्मेदार हैं I आखिर उसे भी तो पता है कि उसके पति की पगार कितनी है और बावजूद उसके सुनील बाबू ने कभी भी उसकी किसी भी बात को टाला नहीं I

आज उसे यह एहसास हो रहा था कि कैसे इन ग़रीब बच्चों का हक़ छीनकर उसके पति उसके लिए महँगे – महँगे कपड़े और सुख-सुविधा का सामान लाते हैं I उसे उस भिखारी बच्चे की जगह अमन दिखाई पड़ रहा था I

इधर सुनील बाबू गाड़ी चलाते हुए माथुर साहब कि फाईल के बारे में सोच रहे थे और उन पाँच लाख रुपये में से अपने हिस्से में आने वाली रकम को खर्चा करने का प्लान तैयार कर रहे थे I     

आखिर सड़कों पर हादसे तो रोज़ ही होते हैं तो क्या अगर एक हादसा उनकी आँखों के सामने हो गया और यह सब कुछ सोचते हुए सुनील बाबू ने अपनी गाड़ी सरपट दौड़ा ली I

     

         

 

 
 

  


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