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इस मुस्कान का राज “Strictly Confidential" है

इस मुस्कान का राज “Strictly Confidential" है

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वैसे तो खुशी अनेकों रूप में आती है, लेकिन महीने के पहली से तीसरी तारीख के दौरान मोबाइल पर आने वाले मैसेज "Your BANK A/c xxxx2016 has been deposited INR ***." का एक अलग सुख है।

 

फरवरी के महीने में मुझे ऐसा ही एक मैसेज मिला। मैंने देखा की मेरी सैलेरी में जो पैसे मिले हैं वो तकरीबन दुगुना है। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। कारण ये था की इस बीच लोगों में अफवाहों का एक बाज़ार गर्म था की सैलेरी रिविज़न होने को है। मुझे लगा की सैलेरी बढ़ने की, एक मन को सुकून देने वाली हवा जो चल रही थी वो अब हकीकत का रूप ले ली है। मैंने जल्दी से अपनी सैलेरी स्लिप को खोलने की कोशिश की। पर ये क्या? SAP HR तो खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था। और ये सैलेरी भी तो कमबख़्त "अत्यन्त गोपनीय" चीज़ है। किससे पुछूँ? बड़ी दुविधा थी। किसी से कह भी नहीं सकता था, और दिल की धड़कनों ने ऐसी रफ्तार पकड़ ली थी, मानो फॉर्मूला वन की रेस में निकली हो। मेरे मन ने मुझे सांत्वना दी कि सबका सैलेरी रिवीजन हुआ है, और सब लोग इसे देखने में लगे होंगे;  इस लिए ये खुल नहीं रहा है। थोड़ा समय लगेगा। इस विचार ने तो मानो आग में घी का काम किया। मेरी बेचैनी अब पूरे शबाब पर थी। "चलो अच्छा हुआ,  देर आए दुरुस्त आए; चार-पाँच साल से इसी दिन का तो इंतज़ार था" ऐसा कुछ मन ही मन सोचकर मैंने एक गहरी साँस ली। सच कहता हूं,  मुझे उस रोज ये अहसास हुआ की दिल को तंदुरुस्त रखना कितना जरूरी है। खैर, घंटे दो घंटे बाद वो वक़्त भी आ गया जब इस रहस्य से पर्दा उठा। इसके बाद जो कुछ हुआ वो किसी कमजोर दिल के इंसान के लिए तो कदापि नहीं था। जब सैलेरी स्लिप खुली तो मैंने देखा की मुझे जनवरी के महीने में स्कूल फीस रिम्बर्समेंट के नाम पे एक बड़ी धन राशि मिली थी। मेरा मन जैसे धड़ाम से गिरा और पल भर की खुशी एक दूसरे ही बेचैनी में तब्दील हो गई। ये वो समय था जिसमें मेरे दिल और दिमाग  के बीच किसी 'तीसरे'  ने, दबे पांव, चुपके से प्रवेश किया जिसे आम बोल चाल की भाषा में हम लोग "लालच" कहते हैं।

 

मुझे ये समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ? किसका ये पैसा था जो मेरे हिस्से में आ गया? कहीं ये भगवान की मर्जी तो नहीं है?  इस उधेड़बुन से निकलने के लिए मैंने अपने काम पर ध्यान देने की कोशिश की। जैसे तैसे काम निपटा कर मैं घर पहुँचा। लेकिन बेचैनी अब भी थी। रात में बिस्तर पर आने के बाद भी मेरी आंखों से नींद कोसो दूर थी। पत्नी ने मुझे इस हाल में देखा तो कारण पूछा। मैंने उसे जब पूरी बात कही तो वो सुनकर  बोली- "कैसे करते है आप?"  अरे आपको इसमें सोचना क्यूँ पड़ रहा है?  कल जाते ही उसके बारे में अपने बॉस को बता दीजिये। और… "अरे अब बस करो यार" - तुम लोगों के साथ यहीं दिक्कत है, कुछ बोले नहीं की शुरू हो गई, मैंने उसकी बात बीच में ही काटकर खीझते हुए कहा। पत्नी भी कहा चुप रहने वाली थी। "अरे आपसे तो कुछ बोलना ही बेकार है,"  ऐसी ही दो चार बातें सुना कर मुंह फेर लिया। फिर मैंने महसूस किया की जो पैसा अभी आया है, उसने आते ही मेरा चैन छीन लिया हैं। मैं इतना बेचैन पहले कभी नहीं रहा। इसके बाद मैंने मन ही मन सोचा की कल मैं इसके बारे में संबंधित लोगों से बात करूंगा। अगले दिन मैंने अपने सीनियर अधिकारियों को इसकी सूचना दी और साथ ही साथ संबंधित पे रोल को भी एक मेल लिखा जिसमें इसकी विस्तृत जानकारी दी।

 

कुछ दिनों बाद मुझे Ethics counsellor की तरफ से एक एप्रिसिएशन लेटर मिला। जब मैंने उसे अपने घरवालों को दिखाया तो सबके चेहरे पे एक प्यारी सी मुस्कान थी। मेरी पत्नी ने अपने मायके वालों को, दोस्तों को और अन्य संबंधियों को बड़े चाव एवं खुशी से इसकी जानकारी दी। घर पर सबके चहकते हुए चेहरों को देख कर मैंने खुद से एक सवाल किया। क्या होता अगर मैंने वो पैसे नहीं लौटाए होते? क्या मेरे घर वाले किसी से इतनी ही खुशी से ये बात कहने की हिम्मत रखते? जो खुशी ,सच बोलकर मुझे और मेरे परिवार को मिली है, वो उस पैसे से क्या कभी खरीदी जा सकती थी?  यह सवाल मेरे जेहन में अभी घूम ही रहा था की तभी मेरे घर पे कुछ दोस्त आए और आते ही घर के माहौल को देख कर पूछा- “भाभी जी क्या बात है! इस मुस्कान का राज क्या है?”

 

मैडम जी भी कहा कम थी,  उन्होंने पलटकर जवाब दिया - इस मुस्कान का राज "Strictly Confidential " है …


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