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एक दिन...मोबाइल बिन

एक दिन...मोबाइल बिन

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उठने के बाद सबसे पहले और फिर रात में सोने तक हर एक घंटे में बार-बार मोबाइल चेक करना मानो मेरे लिए जैसे एक आदत, एक नशा जैसा बन गया था। एक दिन इसी तरह व्हाट्सएप के बेकाम मैसेज देखकर मन में ख्याल आया कि क्यों न एक दिन मोबाइल का उपवास रखा जाया। मन ही मन तय किया कि अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त से लेकर दूसरे दिन की सुबह तक ये उपवास रखा जाए। अत: उसी रात सोने से पहले मोबाइल को अलविदा कह स्विच ऑफ करके रख दिया।

सुबह जैसे ही नींद खुली, हाथ खुद-ब-खुद ही मोबाइल तलाशने लगे। फिर उपवास का ध्यान आया तो एक बार मन खिन्न हो उठा लेकिन फिर दृढ़ निश्चय की मजबूत डोर पकड़ मैं सुबह के काम में लग गई। बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर और बाकी काम खत्म कर जब घड़ी देखी तो ये क्या - आज मेरे सभी काम रोज के मुकाबले पंद्रह मिनट पहले ही खत्म हो गए। अपनी पहली सफलता की खुशी मनाते हुए पतिदेव के लिए चाय बनाने में जुट गई। उनके ऑफिस जाने के बाद एक बार फिर खालीपन खटकने लगा और मोबाइल की याद सताने लगी। तभी मेरी नज़र मेरे अस्त-व्यस्त टैरेस गार्डन पर गई। मन ही मन माली को कोसते हुए मैं अपनी बगिया को सँवारने में लग गई। एक घंटे की कड़ी मेहनत के बाद नज़र दौड़ाई तो ऐसा लगा जैसे सभी पौधे मुझे देख मुस्कुरा रहे हों।

इतने में मेरी कामवाली बाई भी आ गई। मैं अखबार ले पढ़ने बैठ गई। बड़े दिनों बाद अखबार का साप्ताहिक महिला स्पेशल अंक पढ़ने मे कुछ अलग ही मज़ा आ रहा था। इसी आनंद में खलल डालते हुए मेरी बाई सफाई करते-करते मुझसे पूछने लगी कि खाने में क्या बनाना है। अनायास ही मेरे मुँह से निकला कि आज खाना मैं बनाऊँगी। कौतूहल भरी नज़रों से मुझे देखते हुए वो वापस अपने काम में लग गई।

कुछ नया बनाती हूँ, ऐसा सोचते ही एक बार फिर मोबाइल की याद आई, नई रेसिपी ढूँढने के लिए। फिर कुछ सोचकर मैं वो स्पेशल खाना बनाने में जुट गई जो माँ अकसर मेहमानों के आने पर बनाया करतीं थीं। थोड़ा ज्यादा भी बना लिया ताकि पड़ोस वाली सहेली के लिए भी भेज सकूँ। तभी पतिदेव आ गए। अपनी पसंद का खाना देख कर खुश हो गए और चटकारे लेकर सभी चीजें खाईं। जाते-जाते ये भी कह गए कि रोज़ ऐसा खाना खिलाओगी तो जल्द ही मोटा हो जाऊँगा। बच्चों ने भी स्कूल से आने के बाद वही खाना बड़े शौक से खाया।

शाम के वक्त जब बच्चे भी पढा़ई कर खेलने चले गए तो अकेलापन फिर दस्तक देने लगा और मोबाइल की कमी खलने लगी। सोचने लगी कि जरूर किटी के व्हाट्सएप ग्रुप मे खूब गपशप चल रही होगी। ससुराल और मायके का भी तो अलग-अलग ग्रुप है। आज बुआ ने ज़रूर अपनी वैष्णो देवी यात्रा के फोटो डाले होंगे। और हाँ ननद के घर भी तो बड़ी पूजा थी। उन्होनें भी जरूर फोटो डाले होंगे। सबने फोटो देख कमेंट भी कर दिया होगा, मेरे सिवाय। मन एक बार फिर उदास होने लगा तो खुद को अपने संकल्प की याद दिला अपना ध्यान दूसरी तरफ लगाने की कोशिश करने लगी। तभी अपने प्रिय लेखक के उपन्यास की याद आई जो कई महीनों से अधूरा पड़ा था। एहसास हुआ कि मोबाइल के चक्कर में मैं अपने लिखने-पढ़ने के शौक को ही भुला चली थी। जी भर कर उपन्यास पढ़ने से मन प्रसन्न हो गया।

रात्री भोजन के बाद सोते समय, पति को मोबाइल पर मैसेज पढ़ते देख मुझे भी अपने मोबाइल की याद आई। परंतु इस समय मैं खुश थी। अपने उपवास को निभाने से भी ज्यादा खुशी मुझे इस बात की थी कि आज मैंने स्वयं के व्यक्तित्व के उन पहलुओं को फिर उभारा जिन पर शायद वक्त की धूल जम गई थी। अपने संकल्प की सफलता पर खुश होते हुए मैं नींद के आगोश में समा गई।

अगली सुबह नींद खुलते ही आदतन हाथ फिर मोबाइल खोजने लगे। मोबाइल ऑन किया तो करीबन ५०० व्हाट्सएप मैसेज, २५ मिस्ड कॉल अलर्ट्स और ढेर सारे फेसबुक नोटिफिकेशन देख कर सिर चकराने लगा। एक-एक कर सब देखने के बाद जब घड़ी पर ध्यान गया तो पता चला कि मुझे रोज के समय से आधे घंटे की देरी हो चुकी थी। दौड़ते-भागते, घर के सभी काम निपटाते-निपटाते मैं मन ही मन मोबाइल को कोसती जा रही थी और सोच रही थी कि इससे तो मोबाइल-उपवास ही अच्छा था!!


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