Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

बाॅस की बीवी

बाॅस की बीवी

4 mins
7.8K


जया और निम्मी मुझे बाहर तक छोड़ने आई थीं। गला रुँधा जा रहा था, एक अजीब से दर्द से मानों घुट रहा था। आँखें छलछला रही थीं। "मैम, आप आओगे न कल" निम्मी पूछ रही थी। जया मेरा हाथ पकड़ कर कह रही थी," प्लीज़ आ जाना। तुम नहीं रहोगी तो मैं अकेली हो जाऊँगी।" मेरे पास कोई जवाब न था। लिफ्ट आई और मैं जल्दी से अंदर घुस गई। जया और निम्मी हाथ हिलाकर कर बाय कर रही थीं और लिफ्ट के दरवाज़े बंद हो गये। लिफ्ट धड़धड़ाती नीचे चल दी।

 

ख़ुद को अकेला पाकर आँखें भी बरस गयीं। दोनों हथेलियों से आँख और नाक से निकल पड़ी धाराओं को पोंछने लगी। लिफ्ट जल्दी ही, हवा के वेग से, नीचे पहुँच गई और मैं बाहर।

 

जया और निम्मी मेरी सहकर्मी थीं, मेरे पति अतुल और उनके पार्टनर, श्यामल की कम्पनी में। वही कम्पनी जिसे मैंने कुछ नहीं से  बहुत कुछ बनते हुए देखा था। मैं तब से साथ थी, जब गिने-चुने एम्पलाईस थे और आज इतना बड़ा ताम झाम, सैकड़ों लोग काम करते हैं। तब जब ख़ुद पानी भरकर पीते हुए भी मुझे कभी दिक्कत नहीं हुई और न ही सहयोगियों के लिए चाय-पानी का सामान खरीदकर लाते हुए कोई शर्मिंदगी महसूस हुई।

 

कभी डिजाइनिंग करवाना, कभी प्रोडक्ट स्टोरीज़ लिखना, कभी डिसपैचेस का रिकॉर्ड तो कभी सेल्स फिगर्स का हिसाब। लोगों को इंटरव्यू करना, नये लोगों को काम सिखाना... यहाँ तक की बोतलें, डब्बे गिनवाना, प्रिन्टस चेक करना, प्रूफ़ रीड करना, सब कुछ तो करती थी।

 

उसके ऊपर से अतुल की झल्लाहट सहना, उनके गुस्से का शिकार होना। कोई काम नहीं होता था समय पर तो सारा गुस्सा मुझ पर उतरता। कितनी बार किसी बाहर वाले की गलती की सज़ा भी मुझे ही भुगतनी पड़ती । कई बार तो सहयोगियों को बचाने की खातिर ख़ुद सामने होकर अपने आप ही झेल लेती थी उनका गुस्सा । मेरी ख़ुशमिजाज़ी की वजह से सहयोगी भी ख़ुश रहते और काम भी ख़ुशी से करते फिर  भले ही कितनी ही देर हो जाती । सब कुछ अच्छा चल रहा था ।

 

फिर धीरे-धीरे काम बढ़ने लगा, ज़्यादा लोग जुड़ने लगे और बढ़ने लगीं कोई लोगों में असुरक्षा की भावनाएं। कल तक जो सारे काम मैं कर रही थी, दस लोगों का काम कर रही थी, मेहनत कर रही थी, तब किसी को भी कोई परेशानी नहीं होती थी, लेकिन अब कुछ लोगों को आपत्ति होने लगी थी। मेरा कुछ भी बोलना या कहना उनके अधिकारों का हनन नज़र आने लगा। एक सहकर्मी से मैं अब ' बॉस की बीवी' बन गई थी ।

 

हद तो तब हो गई जब एक दिन मुझे अंदर बुलाया गया- अंदर श्यामल और अतुल दोनों ही थे। फिर  एकदम से श्यामल शुरू हो गए- आपको ये करने की क्या ज़रूरत है, वो करने की क्या ज़रूरत है और अंत में मुझे तरीके से मेरी हदें और अधिकार बता दिये गए। मुझे एक शब्द भी बोलने नहीं दिया गया । मैं अतुल की तरफ देख रही थी। मगर उन्होंने चुप्पी साध रखी थी। मेरी तरफ़ देखा भी नहीं और न ही कुछ बोले- न ही बॉस की तरह, न ही सहकर्मी की तरह। मैं  चुपचाप उठी और बाहर आ गई ।

 

भोजन का समय था। सब लंच करने गए थे। कुछ ही लोग थे बाहर। मैंने अपना लैपटॉप बंद किया, अपना पर्स सँभाला, सारे दराजों को बंद कर, चाभी निम्मी को पकड़ाकर कहा कि अंदर बता देना मैं घर चली गई। शायद मेरी नज़रों ने बहुत कुछ बयान कर दिया था इसलिए निम्मी और जया परेशान हो उठी थीं और मेरे पीछे-पीछे आ गई थीं ।

 

मैं  चलती ही जा रही थी और ख़ुद  से पूछ रही थी - " क्या ये कम्पनी मेरी नहीं थी? क्या इसको बनाने में मेरा कोई योगदान नहीं है?"

"क्या उनकी असुरक्षा की भावना उनको डरा रही थी?  या फिर मेरी लोकप्रियता, मेरी सफलता, काम करने का तरीका और लोगों के बीच मेरी ख्याति ने उनको हिला कर रख दिया था? "

 

और अतुल वो तो कुछ भी नहीं बोले थे मेरी तरफ से। उनका व्यवहार तो बिल्कुल ही असहनीय था। क्या वे भी कुछ ऐसा ही सोचते हैं या फिर इसलिए कुछ नहीं बोले क्योंकि मैं उनकी पत्नी थी!

 

अचानक मेरी तंद्रा टूटी । मेरी बिल्डिंग के गार्ड भैया मुझे आया हुआ कुरियर देने को आवाज़ लगा रहे थे। मैंने अचकचाकर उनसे कुरियर लिया और धन्यवाद कहा ।

 

पता नहीं कब और कैसे चलते-चलते मैं अपनी बिल्डिंग तक आ गई थी । पसीने से तर-बतर। गला भी सूख रहा था। आँखें छलछला रही थीं। तभी सामने दो मार्ग नज़र आये - एक जो अतुल और श्यामल की ओर जाता था और दूसरा जो पता नहीं कहाँ ले जाने वाला था।

 

तभी मैं ने अपने लिऐ दूसरा रास्ता चुन लिया ।

 

मंज़ूर था मुझे नयी राह पर अकेले चलना, नहीं मंज़ूर था मुझे  बस  ‘ बॉस की बीवी’ बनना ।

 

एक्सेस कार्ड से गेट खोला मैंने। सामने लिफ्ट खड़ी थी। आत्मविश्वास से भरे कदम मैंने अंदर रखे, नंबर दबाया ।

लिफ्ट धड़धड़ाती हुई ऊपर चल दी।

 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational