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स्वामी भक्ति का ईनाम

स्वामी भक्ति का ईनाम

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अपने केबिन में जाकर रहमान ने पैसों को गिना। मित्तल साहब ने उसे 10,000/- रुपए दिये थे। खुशी से चहक कर वो उनको धन्यवाद करने पहुँचा।

सर आपने ये मुझे 10,000/-रुपये दिये है!

इससे पहले कि कुछ वो और बोल पाता, मित्तल साहब ने कहा अच्छा?? ठीक है, ज़रा दिखाना।

फिर रहमान से 10,000/- रुपये ले लिए और 4000/- रुपये खुद रखकर 6000/- लौटा दिया। कहा ये तुम्हारे 2 महीने की बढ़ी हुई सैलरी है। तुम्हारी सैलरी 3000/- रुपए हरेक महीने का बढ़ा दिया है।

रहमान मित्तल जी के पास जूनियर वकील था। मित्तल जी शहर के काफी बड़े वकील थे और रहमान पर अतिशय प्रेम रखते थे। इसका कारण भी था। एक तो रहमान मेहनती था, तेज था और ऊपर से आज्ञाकारी भी। बाकी और जूनियर वकील रहमान पर मित्तल जी के अतिशय प्रेम से, ईर्ष्या का भाव रखते थे।

एक साल बाद जब रहमान के सैलरी के बढ़ने का समय आया तब मित्तल साहब ने कहा एक महीने के बाद बढ़ा दूँगा।

एक महीने बाद मित्तल साहब ने रहमान को 10,000/- रुपये थमा दिये। रहमान को लगा मासिक सैलरी 10,000/- बढ़ गयी है। सो वो धन्यवाद देने मित्तल साहब के पास पहुँचा।

धंधे में अर्थ भाव पर भारी पड़ता है। मित्तल साहब की अनुभवी आंखों ने रहमान की ईमानदारी और आज्ञाकारिता को भांप लिया था।

मित्तल साहब ने रहमान की निर्दोषता को देखते हुए उससे 4000/- रुपये लेकर रख लिए और 6000/- रुपये लौट दिए। दरअसल मित्तल साहब ने रहमान को 10,000/- रुपये 2 महीने के बढ़ी हुई सैलरी के रूप में दिया था। रहमान की सैलरी जो कि मित्तल साहब ने 5000/- रुपये मासिक बढ़ा थी, उसको घटाकर 3000/- मासिक में परिवर्तित कर दिया। अपने स्वभाव के कारण वो कुछ बोल भी नहीं पाया।

रहमान को उसकी स्वामी भक्ति पर मिले इस प्रसाद पर कुड़बुड़ाने के अलावा कोई और चारा न था।


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