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"शांताबेंन"

"शांताबेंन"

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"अजी सुनते हो, ऑफिस में मुझे प्रमोशन और 30 % का इन्क्रीमेंट मिला है" मीरा बहुत खुश थी ये बातें अपने पति अजय से शेयर करते हुए I प्राइवेट बैंक में मीरा मेनेजर के पोस्ट पर थी I महीने के 40,000 रूपये कमा कर घर चलाते हुए I घर में मीरा का कॉन्ट्रिब्यूशन आधा था, दिन भर ऎ.सी में काम करते हुए  अब मीरा को  सर दर्द भी हो जाया करता था, पर ज़िन्दगी काफी अच्छी चल रही थी  और मीरा काफी खुश थी I पर आइये आज मैं आपको हमारे सोसाइटी के एक और पहलु से वाकिफ करवाता हूँ क्योंकि इस दुनिया में मीरा जैसी खुशहाल औरतों  के आलावा कई ऐसी भी औरतें  और उनकी कहनियां है जो आपको झकझोड़ देंगी!
हमारे शहर में  रामनवमी की धूम थी I जगह जगह लोग झंडे लेकर "बजरंग" "बजरंग" चिल्ला कर अपने उत्साह को ज़ाहिर कर रहे थे तो इन शोर गुल और भीड़ में कुछ औरते अपने सिर पर लकड़ी के फ्रेम पर चारो तरफ सजी लाइट्स को ढो रही थी जिन्हें शायद अंग्रेजी में decorative light bearers कहा जाता हैI अक्सर मैंने कई बारातों में इन औरतो को एक लाइन में चलते हुए भारी भरकम  डेकोरेटिव लाइट्स को सर पर ढोते देखा है I हैरत की बात है की कितनी स्ट्रांग होती होंगी ये महिलायें जो लगातार घंटो यह काम करने के बावजूद इनके चेहरे पर कहीं भी दर्द का नामोनिशान नहीं दिखता है I

'शांताबेंन' यही नाम था उनका जो भीड़ के बीचोबीच धक्का मुक्की से बचते और अपने लाइट्स को भी बचाते बिसर्जन के जुलुस में धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी I उम्र तकरीबन 50 साल के आस पास होगी और चेहरे और हाथो कीे झुर्रियां यह साफ़ इशारा कर रही थी  कि  अपनी ज़िन्दगी के कई मोड़ उन्होंने देखे होंगे I 5 मिनट का ब्रेक मिला था उन्हें I वो भीड़ के बीचो बिच खड़ी हांफ रही थी ..भीड़ में से मेरी नजर अचानक उनपे गयी तो देखा पसीने से  लथपथ थी वो I..सोचा एक बार जाकर पानी के लिए पूछ लूँ I आखिर इंसानियत नाम की भी तो कोई चीज़ है! फिर हिचकिचाते हुए पास जाकर, इतने शोरगुल में, मैंने उनसे ऊँची आवाज़ में पूछा "माँ जी कहा के हो आप जमशेदपुर से ही हो?" थोड़ी देर मेरी  शक्ल देखने के बाद उन्होंने जबाव दिया "हाँ जुगसलाई" फिर मैंने कहा "बहुत देर तक आपको यह काम करना पड़ता होगा न I शाम 4 से रात 11 बज जाते होंगे"? उन्होंने कहा "हां आप तो देख ही रहे है न भीड़ में चलते हुए कई घंटे लग जाते है" .."यह आपका रोज का काम है?" मैंने पूछा I उन्होंने कहा "हाँ लगन के टाइम पे ज्यादा" I उनका जबाव सुनकर मेरी उत्सुकता थोड़ी और बढ़ी और मैंने झट से पूछ लिया "काफी देर से देख रहा हु बहुत मुश्किल है आपका काम ..कितने मिलते है आपको दिन के?" मेरी तरफ देख कर  मुस्कुराते हुए उन्होंने जबाव दिया "डेढ़ सौ रूपये"!  ये सुनकर 2 मिनट तक मैं कुछ और न पूछ पाया ..मेरी आवाज़ मेरे गले में ही रुक गयी थी I और उनका दर्द मैं मेहसूस कर रहा था और अब जैसे कुछ और पूछने की मेरी हिम्मत नहीं थी I

मुझे नहीं पता आप और मैं जब अपने उम्र की हाफ सेंचुरी लगा चुके होंगे, तो कहाँ होंगे, क्या कर रहे होंगे I शायद रिटायर होकर अपने परिवार के साथ किसी हॉलिडे वेकेशन पर हो I पर 50 की उम्र में महज़ डेढ़ सौ रूपये के लिए अपने सिर पर भारी भरकम डेकोरेटिव लाइट्स ढो कर, दूसरे की नयी ज़िन्दगी में रौशनी बिखरने वाली इन महिलाओं का जीवन किसी चुनौती से कम नहीं, जो हर दिन पूरे परिवार के खाने के लिए इतना कड़ा संघर्ष कर रही है

"शांताबेंन" जैसी औरतो के लिए अपना खुद का कोई त्यौहार नहीं होता I बस दूसरे के घरों  में शादी इनके लिए किसी त्यौहार से कम भी नहीं, जो इनके रोजगार से जुड़ा हुआ     है I  यानि लगन खत्म तो घर बैठो..5 मिनट का ब्रेक खत्म हुआ और शांताबेंन आगे बढ़ गयी I पर हमें बहुत कुछ सीखा गयी!


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