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टेढ़ा है पर मेरा है

टेढ़ा है पर मेरा है

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यह जिंदगी भी कितनी अजीब होती है खासतौर पर लड़कियों के लिए, जन्म देने वाले माता पिता, पालपोस और पढ़ा लिखा कर अपनी बेटी को अपने ही हाथों किसी पराये पुरुष के हाथ सौंप कर निश्चिन्त हो जाते हैं, बस उनका कर्तव्य पूरा हुआ, बेटी अपने घर गई, गंगा नहाए।

मीनू ने भी अपने माँ बाप का घर छोड़ कर अपने ससुराल में जब कदम रखा तो उसका स्वागत करने उसकी सासू माँ दरवाज़े पर खड़ी थी। हाथ में आरती की थाली लिए, उसकी आरती उतारी गई, अपने पाँव से चावल से भरे लोटे को उल्टाने के बाद मीनू ने आलता भरे पाँवों से घर के दरवाज़े के अंदर कदम रखा, घर के भीतर कदम रखते ही उसने दरवाज़े की तरफ देखा, ”अरे यह क्या घर का मुख्य दरवाज़ा टेढ़ा।” उसे क्या पता था कि उसका अब कितने टेढ़े लोगों से पाला पड़ने वाला है, ख़ैर जब शादी के बाद की सारी रस्में पूरी हो गई तो प्रेम उसे घुमाने मनाली की सुंदर वादियों में ले गया। अल्हड़ जवान लडकी की भाँती कल कल करती ब्यास नदी ने उसका मन मोह लिया और उपर से शहद से भी मीठा प्रेम का प्रेम रस, ऐसा लगने लगा जैसे अनान्यास ही सारी खुशियाँ उसकी झोली में आन पड़ी हो, परन्तु यह सब खुशियाँ कुछ ही दिनों की मेहमान थी। ससुराल में पतिदेव, सास ससुर के साथ साथ बड़े भैया, भाभी, नन्द, छोटा देवर सबको खुश रख पाना मीनू के लिए एक चुनौती भरा कार्य था।

एक जन खुश होता तो दूसरा नाराज़, सब की सोच अलग, खानपान अलग, उसे कभी किसी के ताने सुनने पड़ते तो कभी किसी की डांट फटकार, लेकिन एक बात तो थी उसके पति प्रेम सदा एक मजबूत ढाल बन कर उसके आगे खड़े हो जाते और बंद हो जाती सबकी बोलती, किन्तु मीनू के लिए इस सबसे भी कठिन था अपने प्यारे पतिदेव प्रेम को समझना, उसे पता ही नहीं चल पाता कि उसकी किस बात से उसके पिया रूठ जाते और उन्हें मनाना तो और भी मुश्किल हो जाता था।

दिन, महीने, साल गुजर गए। अब मीनू इस घर के हर सदस्य को अच्छी तरह जान चुकी थी। बहुत मुश्किलों से गुजरना पड़ा था उसे अपने ससुराल में सबके साथ सामंजस्य स्थापित करने में, लेकिन अपने पतिदेव को समझ पाना, उफ़ माँ अभी तक उसके लिए टेढ़ी खीर थी, भगवान् ही जाने, सीधे चलते चलते कब किस दिशा करवट मोड़ ले, मीनू इसे कभी समझ नहीं पाई, चित भी अपनी और पट भी अपनी, खुद ही अपना सामान रख कर भूल जाना तो उनकी पुरानी आदत है, चलो आदत है तो मान लो, लेकिन नहीं प्रेम जैसा सम्पूर्ण व्यक्तित्व वाला इंसान गलती करे, ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता।

पूरी दुनिया में कुछ भी घटित हो जाए उस सबके लिए ज़िम्मेदार है तो सिर्फ और सिर्फ मीनू, लेकिन दुनिया में जो सबसे प्यारी है तो वह भी तो सिर्फ और सिर्फ मीनू। अपने पतिदेव के ऐसे व्यवहार के कारण न जाने कितनी राते रो रो कर गुजारी थी मीनू ने। न जाने क्यों प्रेम, मीनू की हर बात को उल्टा क्यों ले लेता, वह कुछ भी कहती तो प्रेम ठीक उसके विपरीत बात कहता, कहीं से भी वह उसके साथ तालमेल नहीं बिठा पाती। हारकर चुप हो जाती। शायद यह उसका अहम था या फिर कुछ और परन्तु जैसा जिसका स्वभाव होता है उसे शायद ही कोई बदल पाता हो|

प्रेम दिल का बहुत अच्छा इंसान होते हुए भी पता नही क्यों मीनू के जज़्बात को नही समझ पाया। वह मीनू से बहुत प्यार करता था लेकिन अपने ही तरीके से। काश प्रेम, मीनू को समझ पाता, उसके मन में उमड़ते प्रेम के प्रति, बह रहे प्यार के सैलाब को देख पाता। यह सब सोचते सोचते मीनू की आँखे फिर से भर आई।

आज पच्चीस साल हो गए उनकी शादी को, वैसा ही प्रेम और वैसा ही उसका स्वभाव, अब तो घर में बहू भी आ गई जिसने भी आते ही प्रेम से कहा, ”पापा इस घर के टेढ़े दरवाज़े को बदलवा दो, यह देखने में अच्छा नही लगता।”

चौंक पड़ी मीनू, हँस कर कहा, ”बेटा,कोई बात नहीं, यह टेढ़ा है पर हमारा अपना है।”


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