Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Ajay Tripathi

Inspirational

0.6  

Ajay Tripathi

Inspirational

बुढ़िया! ....क्या बोझ?

बुढ़िया! ....क्या बोझ?

5 mins
14.6K


बैंक में पेंशन लेने वालों की लाइन लगी थी और टोकन बाँटे जा रहे थे. कैशियर बार-बार एक नाम पुकार रहा था पर कोई जबाब नहीं आ रहा था. तभी वह एक आदमी को इशारा कर कहता है-भाई साहब! ज़रा उस बुढ़िया को बुला दीजिऐ . बैंक में रक्खे सोफे पर वह वृद्ध महिला अपने नाम के पुकारे जाने से बेख़बर बैठी थीं. वह आदमी उन्हें कैशियर द्वारा उनके नाम पुकारे जाने की जानकारी देता है और जैसे ही वृद्ध महिला को पता चला की उनकी बारी आ गयी है उठ कर काउंटर की तरफ लपक पड़ी. कैशियर चार बातें सुनाता हुआ उन्हें उनकी पेंशन देता है और कहता है अगली बार किसी को ले कर आना नहीं तो पेंशन नहीं मिलेगी.

इस तरह बुढ़िया शब्द का संबोधन मुझे अटपटा सा लगा और सहसा मुझे अपने बचपन की घर के बगल वाले दोस्त की याद आ गयी. मैं उसके साथ खेलने के लिऐ  उसके घर जाया करता था. तभी एक दिन उसकी दादी गाँव से इलाज के लिऐ  आ गयी थीं और उनके साथ ही रहने लगीं थीं. वह मेरे लिऐ  जब तक रहीं एक रहस्यमयी चीज की तरह थीं. शायद उन्हें कैंसर हुआ था और उसी का इलाज कराने वह अपने शहरी बेटे के पास आई थीं.

उनका बिस्तर फ़्लैट के एक कोने में जहाँ टाइगर बँधता था वहाँ लगाया गया था और तखत के निचे उनका लोहे का संदूक रखा था. संदूक के ऊपर कपड़े की एक पोटली रखी गयी थी जो बाद तक हमारे लिऐ कौतूहल का विषय बन गयी थी की पोटली में क्या है? पर हम उस पोटली के पास नहीं जा सकते थे. हमें उनके पास जाने की मनाही की गयी थी. हम दूर से ही उन्हें देख सकते थे. वह पता नहीं क्यों बार-बार अपनी गठरी खोलती और उसमें कुछ टटोलती रहती थीं.. मानों कुछ खोज रही हों और फिर बंद कर देती थीं..........

वह सदा रामनामी जपती रहती थीं और जब रामनामी नहीं जपती थी तो पता नहीं क्या अकेले में ख़ुद से बड़बड़ाती रहती थीं. मैंने किसी को उनसे बात करते नहीं देखा सिवाय उस महरी के जो झाड़ू लगाने आती थी... वह बड़बड़ाते- बड़बड़ाते रोने भी लगती थीं... जबकि उन्हें कोई मारता नहीं था....उन्हें जब महाराज खाना देता है तो वह काफ़ी देर तक शून्यभाव से छत को देखती रहती है जैसे शून्य से कुछ खोजने की कोशिश कर रही हों...पर वह अभी बहुत दूर हो..

जब हम खेलते हुऐ  उस कमरे में पहुँच जाते हैं तो वह आँखों में ममता भर कर हमें देखती रहती हैं और जब कभी हम खेलते-खेलते उनके पास पहुँच जाते तो वह स्नेह से भरे अपने काँपते हाथ हमारे सर पर फेर देती थीं. हम तब नासमझ उस निस्वार्थ प्यार के मूल्य को समझे बिना अपने खेल में ही मग्न रहते थे और शायद तब दादी अतीत की गहराई में जाकर अपने बच्चों की मोहक स्मृतियों में फँस जाती थीं...

बीमारी के चलते शायद वह रोज़ नहीं नहा पाती थी जिससे उनके शरीर और कपड़े से दुर्गन्ध आती थी. उसके बर्तन अलग थे और दोस्त ने बताया था की दादी हमारा साथ खाना नहीं खातीं उनके लिऐ महाराज अलग से खाना बनाता है... एक दिन जब हम खेल रहे थे तभी उन्होंने हमें बड़े प्यार से बुलाया और हम दोनों को आधे-आधे पेड़े खाने को दिऐ और कहा- खाओ! .. तभी आंटी ने आकर हमारे हाथ झटक दिऐ जिससे पेड़े फ़र्श पर गिर गऐ और कहा – बच्चों को भी कैंसर लगवाओगी.. शरीर की तरह तुम्हारे दिमाग में भी कैंसर लग गया है..

घर जाकर जब मैंने अपने घर यह बात बताई तो मेरा दोस्त के घर जाना क्यों बंद करा दिया गया यह मैं आज तक समझ नहीं सका? मेरे माता-पिता को दोस्त की माँ की अभद्रता बुरी लगी थी या रोगी से मुझे दूर रखने का यह एक उपायमात्र था- यह मेरी लिऐ आज भी पहेली बना हुआ है.

इस घटना के बाद मेरा दोस्त मेरे घर खेलने आता था और उसका भी दादी के कमरे में जाना बंद कर दिया गया था. उसने मुझे बताया की दादी को आज माँ ने अपनी पुरानी साड़ी दी है जो पहले कामवाली बाई को दी जाती थी और दादी अब चीखती-चिल्लाती भी हैं जिससे मम्मी को सीरियल देखने में परेशानी होती है.. माँ कहतीं हैं सब नाटक है.....

एक दिन मैंने आंटी को माँ से दादी के विषय में बात करते हुआ सुना-ख़ुद तो ऑफिस चले जाते हैं और मेरे सर लालची और गँवार बुढ़िया को छोड़ जाते हैं..न सीरियल देखने देती है और ना ही आराम करने देती है...हर चीज़ को आँखें गड़ाकर देखती है और कान की बड़ी तेज़ है ..वैसे तो दिन भर चंगी रहेगी पर बेटे के आते ही बीमार हो जाऐगी और दुखड़ा रोना शुरू कर देती है.. आफ़त बनी हुई है... न मरती है, न माँचा छोड़ती हैं...

फिर एक दिन वह भी आया की जब मैं स्कूल से आया तो मुझे पता चला की दादी माँ मर गयी...सहसा मुझे स्मरण हो गया की यह सब ‘नाटक’ है और ऐसे लगा नेपथ्य का पर्दा गिर गया और नाटक का अंत हो गया....

.......................................................................................................................................

कभी-कभी तो मुझे विश्वास ही नहीं होता है की वह दादी बुढ़िया मेरे दोस्त के पिता की माँ थी...और यदि माँ थीं तो क्या माँ ऐसी ही होती हैं?...कभी वह बुढ़िया भी सभी माँ की तरह अपने बेटे के खाने-पीने और आराम करने का ख़याल रखती रही होगी और तनिक भी बेटे को चोट लगने पर उसके दिल के दो टूक हो जाते रहे होंगे और वह उन्हें अपने सीने से चिपका कर पूछती रही होगी की- मेरे लाल को कहाँ चोट लग गयी?...और बेटा भी माँ के इस स्नेहिल प्यार से अपना दर्द भूलकर हँस देता रहा होगा.

फिर ऐसा क्या हो जाता है की एक माँ तो अपने सभी बच्चों का ख़याल  रख सकती है पर सभी बच्चे बड़े होकर अपनी एक अदद माँ का ख़याल नहीं रख पाते? क्यों स्त्रियाँ अपने दस बच्चे पाल लेती हैं पर एक सास पूरे परिवार पर भारी पड़ जाती है? क्यों बूढ़ी हो चुकी दादी-नानी तिल-तिल कर दमघोंटू जिंदगी जीने के बाद भी अपने बच्चों से प्यार करना नहीं छोड़ती और बच्चे की गलती होने पर भी वह बहू की गलती निकाल देती हैं?   

क्या बुढ़िया रिश्तों की दुनिया से अवकाश प्राप्त प्यार के पेंशन के लिऐ  भटकती भिखमंगे की अवस्थाबोध लिऐ  दया की दरकार करती हुई ही होती हैं जो मेरे दोस्त की दादी हो गयी थीं. बहू की नज़रों में नौटंकी और बेटे की नज़रों में सिर्फ़ बजट बिगाड़ने वाली बन जातीं हैं...?

क्या मेरी माँ की भी ऐसी स्थिति होगी और हम बड़े होकर अपनी माँ को भूल जाऐंगे? यह यक्ष प्रश्न है जो सभी बेटों और बहुओं के सामने है.....

 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational