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झरोखों से आती चाँदनी

झरोखों से आती चाँदनी

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विनय ने रवि को अपनी तरफ खींच लिया इतने करीब कि किरण भी कभी रवि को इतने पास महसूस नहीं किया था। पास के खिड़की के झरोखों से चाँदनी पलंग के बिस्तर पर छिटक रही थी। 

       किरण आफिस से घर लौटी तो देखा रवि बिस्तर पर पड़ा कराह रहा है। उसके आस-पास कोई नहीं है विनय भी नही, काम करने वाली बाई शाम को चली गई लेकिन विनय को तो रूकना था घर पर।  वह आस-पास कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। कहीं वह आफिस तो नहीं चला गया। तुरन्त मोबाइल पर नंबर लगाया, बिज़ी बता रहा है। उसे विनय पर बहुत गुस्सा आया। 

सुबह ही तो बात हुई थी कि आज वह आफिस से छुट्टी लेंगे। रवि विनय और किरण का इकलौता बेटा है। उसकी तबियत एक सप्ताह से खराब है, बुखार उतर नहीं रहा है। डॉक्टर का इलाज चल रहा है। 

         सुबह से ही दोनों में इस बात का झगड़ा चल रहा है कि आज घर पर कौन रहेगा। किरण तीन दिन से आफिस नहीं जा रही है। उसने विनय से कहा- ''आज तुम घर पर रूक जाओ, मेरी अर्जेंट मिटिंग है इसलिए मुझे आफिस जाना पड़ेगा।'' विनय ने भी हाँ कर दी। फिर आफिस कैसे चले गये।

          पाँच साल का रवि पिछले एक सप्ताह से बुखार से पीड़ित है। वो चाहता है कि, मम्मी उसके पास रहे, उसकी देखभाल करे, और खूब बातें करें। वह पापा के उतने करीब नहीं था जितना मम्मी से।

         विनय किरण की इच्छा पूरी करने के लिए रवि को घर तो ले आए थे किन्तु वह उसे पिता का प्यार नहीं दे पाते थे। ऐसा नहीं है कि वे रवि को पसंद नहीं करते, पर उसे दिल से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।  उसे आज भी याद है कि वे दोनों बच्चे के लिए कितना तरसते थे। कितने मंदिरों पर माथा टेका पर कोई फायदा नहीं हुआ।

         एक दिन किरण सीढ़ियों से गिर पड़ी थी और उसे गंभीर चोट आई। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। चेकअप के बाद डॉक्टर ने विनय को बताया कि अब उसकी पत्नी कभी माँ नहीं बन पायेगी।''

विनय यह सुनकर सन्न रह गया। एक पल के लिए उसे लगा कि उसके पाँव जमीन के भीतर धसती चली जा रही है और वह अंधकार के बीच डूबते जा रहा है। वह यह जानता था कि किरण के शरीर में परेशानी है, पर उसके मन में एक उम्मीद जरूर बची थी। जो एकाएक डॉक्टर की बातों से उसे चौका दिया और वह भीतर से एकदम टूटने लगा।

कुछ ही दिनों में किरण ठीक हो गई और वह अस्पताल से घर आ गई। लेकिन किरण डाक्टर की बातों को अनायास स्वीकार नहीं कर पा रही थी लेकिन इस सच को उसे जीवन की आखरी साँस तक स्वीकार करना ही है।

      समय के साथ समझौता कर एक दिन दोनों ने यह फैसला किया कि किसी बच्चे को गोद लेंगे। किरण की खुशी के लिए विनय भी तैयार हो गया। अनाथालय में जाकर पूरी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद चार साल के लड़के को गोद ले लिया। बच्चे को पाकर दोनों बहुत खुश हुए।

शुरू के दिनों में समय कैसे निकला उन्हें पता ही नहीं चला। सुबह से रवि को तैयार कर स्कूल भेजना फिर स्वयं दोनों दफतर जाने की तैयारी करते थे। एक साल यूँ ही बीत गया। एक दिन एकाएक रवि की तबियत बिगड़ गई। डॉक्टर को दिखाने के बाद भी वह स्वस्थ नहीं हो पा रहा है। किरण परेशान होने लगी थी। 

        एकाएक यही सब बातें वह सोचती रही तभी अचानक रवि की पुकार से वह चौक पड़ी। रवि नींद से जागा है। किरण उसके पास बिस्तर पर बैठ गई- ''हाँ बेटा मैं आ गई हुँपापा तुम्हें छोड़कर चले गए हैं।''  यह कहकर वह रवि के माथे का चूमने लगी। माथा तब भी बुखार से तप रहा था। तभी अचानक विनय का फोन आ गया। पूछने पर मालूम हुआ कि आफिस से  फोन आने पर वह रवि को समझाकर चले गये थे। किरण सोच रही थी कि क्या उसने बच्चे को गोद लेकर गलती की है। विनय के व्यवहार में बदलाव देखकर वह मन ही मन डरने लगी थी कि अब विनय पहले जैसे उसे प्यार नहीं करता उससे दूर-दूर रहता। विनय को समय पर कोई चीज नहीं मिलती तो वह उखड़ जाता और सारा दोष किरण पर डाल देता। एकाएक आज वह सोचने लगी कि आज वह विनय से इस बात का खुलासा कर लेगी कि क्यों विनय उससे दूर-दूर रहता है। आखिर उसने रात में बिस्तर पर सोते समय विनय से पूछ ही लिया- ''विनय! तुमसे एक बात पूछनी है। बहुत दिनों से सोच रही थी पर मन में साहस नहीं जुटा पा रही थी।''  विनय किरण के पास ही पलंग पर लेटा था दोनों के बीच में रवि सो रहा था। विनय किरण की तरफ देखकर आश्चर्य चकित होकर पूछा- ''ऐसी कौन सी बात है जो तुम मुझसे पूछना चाहती हो और पूछने से घबरा रही हो? सब कुछ ठीक ही तो चल रहा है। क्या तुम्हें कोई प्राब्लम है अपने नौकरी में कोई परेशानी।''  किरण आश्वस्त होकर बोली- ''मेरे आफिस का नहीं यह प्राब्लम हम दोनों का है रवि को लेकर।''

''रवि को लेकर? तुम उसकी बीमारी के बारे में सोच रही हो, तुम बिल्कुल मत सोचो उसे वायरल फीवर है। हफ़्ता-दस दिन में बुखार उतर जाएगा और वह ठीक हो जाएगा।'' विनय उसे आश्वस्त करता है।

''लेकिन विनय! तुम्हें रवि से कोई प्राब्लम तो नहीं है।''

''अचानक तुम इस तरह के सवाल मुझसे क्यों कर रही हो। क्या रवि मेरा बेटा नहीं है। मेरा खून नहीं है तो क्या हुआ। हम दोनों ने उसे बेटे के रूप में अपनाया है। उसे प्यार करते हैं, वह हम दोनों का भविष्य है, बूढ़ापे का सहारा।''

एकाएक विनय की बातें सुनकर किरण फफककर रो पड़ी। विनय किरण की आँखों में आँसू देखकर चकित होकर पूछा-''तुम्हें क्या हो गया है किरण तुम पहले तो ऐसी नहीं थी। तुम मन ही मन क्या सोच रही हो मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।''  तभी किरण विनय के हाथों को अपने हाथों में रखकर बोली- ''यह बात सच है कि रवि के आने से हम दोनों के जीवन में काफी बदलाव आया है। मैं तुम्हें पहले जैसे समय नहीं दे पाती हूँ। मेरा पूरा समय तो रवि के साथ उसकी देखभाल में लग जाता है। शायद यही वजह है कि इन दिनों तुम्हारे और मेरे बीच फासले बढ़ते गये। लेकिन विनय तुम यकीन करो तुम्हारे प्रति मेरा प्यार कम नहीं हुआ है। मैं तुम्हें आज भी पहले की तरह चाहती हुँ।''  यह कहकर किरण विनय के और करीब जाना चाहती है, तभी दोनों के बीच सोया रवि नींद में करवट बदलने लगता है। किरण ने रवि के मस्तक को छुआ तो देखा बुखार उतर चुका था। वह खुश हुई। रोज उसे रात में ही बुखार चढ़ता था। लेकिन आज उसका माथा ठंडा था। अब उसके शरीर से वायरल फीवर उतर गया है। विनय ने रवि को अपनी तरफ खींच लिया इतने करीब कि किरण भी कभी रवि को इतने पास महसूस नहीं किया था। पास के खिड़की के झरोखों से चाँदनी पलंग के बिस्तर पर छिटक रही थी।


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