मजहवी हो गयीं हैं महिलायें
मजहवी हो गयीं हैं महिलायें
सूरज मुझपे गुस्सा निकाल रहा था | मैं 47 डिग्री तापमान मे पका आम महसुस कर रहा था, सुबह के 11 ही बजे होंगे जब मै पसीनो में लथपथ यूपी सरकार की सरकारी बस सेवा का आनंद ले रहा था, बस में साफ़ साफ़ लिखा था ” जल्दी आपको है हमे नहीं , ड्राईवर को तेज़ चलने को ना कहे” बस में महिलाओं के लिए सिर्फ 6 सीटे ही आरक्षित थी | ये देख देख के मुझे पसीना कुछ ज़्यादा तेज़ ही निकल रहा था | बस के मीटर की सुई जैसे ही 50 को छूती वैसे ही बस अनूप जलोटा की तरह राग मलहार के सुर निकालने लगती | शायद मुझे गर्मी इसलिए भी ज़्यादा लग रही थी क्योंकि मैं महिलाओँ वाली सीट पे बैठा था | बस ने मुझे कौशाम्बी मेट्रो की सीढ़ियों पे जैसे ही उतारा मेरा ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, मुझे लगा जेसे मैने महिलाओं के ख़िलाफ़ जंग जीत ली हो, मेरे मन में अब सिर्फ ac की ठंडी हवा और जुल्फ लहराती छोटे कपड़ों वाली लड़कियों के ख़यालात आने लगे | हम मर्द भी छोटी छोटी ख़ुशियों के सपने देख के अपना मन बहला लेते हैं | मेट्रो की तरफ बड़ा नज़ारा बिलकुल वैसा ही था जिसके मैने सपने सजाये थे, मेरे मन से आवाज़ आई ” मुझे गर्मी का धन्यवाद करना चाहिए जो आज मैं मेट्रो सेवा का आनंद 2 गुना ले रहा हूँ | मेट्रो प्लेटफार्म पे आई मैं अंदर घुसा तो मुझे महिलाओं वाली सीट खाली दिखी | दिल ने कहा बैठ जा, और दिमाग़ ने हमेशा की तरह मना किया, उलझन ज़बरदस्त थी | मैं मेट्रो में महिलाओं वाली सीट पे बैठा था | मेरी नज़रे एक एक लड़की और महिला पे थी |दिल में सिर्फ ये ही था ये आके ना उठा दे, जैसे ही स्टेशन आता आँखें प्लेटफॉर्म पे खड़ी एक एक महिला को देखती और दुआ करती ये मेरे कोच में ना आये | स्टेशन आया और लड़कियों का ग्रुप मेट्रो के अंदर आया, मेरे चेहरे के भाव ऐसे बन गए जैसे ये रोहतक की लड़कियां हो, ग्रुप की एक लड़की सीट की ओर आई मुझे हार्ट अटैक होने ही वाला था, मेरी ज़िन्दगी का भूकंप तब थमा जब उसने मेरे साथ बैठे बन्दे को कहा आप उठ जाएँगे, मुझे बैठने दीजिये थोड़ी परेशानी है | ac मेट्रो में पसीनो की दास्ताँ मेरे डर की दास्ताँ कह रही थी, बाक़ी मर्द लोग महिलाओं वाली सीट पे ख़ुद को शाहरुख़ खान समझके अभिनय का प्रदर्शन कर रहे थे, कोई कुम्भकर्ण बना था, कोई ख़ुद को दर्द से घिरा दिखा रहा था, तो कोई कानो में ऊन् के गुल्ले ठोके हुए ग़ांधी जी के मार्गदशन ( बुरा मत सुनो)पे चल रहा था | जब सारे लोग इतना सब कुछ कर रहे हैं तो मैं भी तुषार कपूर की तरह अभिनय क्यों नहीं कर सकता था? मेरा दिल जैसे ही तुषार हुआ वेसे ही एक लड़की मेरे तरफ आई और मेरे तुषार कपूर की गर्दन पकड़ ली, और सीट से उठा दिया गया | मेरा मन मानो कितनी त्रासदियों में फसा हो उस वक़्त, क्या वो दूसरी जगह नहीं बैठ सकती थी? एक पूरा कोच उनका है, वहा चली जाती, पर नहीं रोब जो दिखाना है अपना, बहुत अकड़ आ गयी है इनमे, ख़ुद का नया मज़हब बना लो, मज़हबी कहीं की इससे अच्छा बस है | तभी साथ वाली लड़की ने कहा आपको जाना कहाँ है मेने स्टेशन बताया तो उन्हें भी वही जाना था जहा मुझे जाना था, हमने मंडी हाउस पे मेट्रो बदली और इस बार उसने मुझे अपनी सीट पे बैठने का ऑफर किया, और उसने कहा पिछली मेट्रो में मैं बैठी थी इस बार आप बैठ जाओ | कुछ देर बार दोनों मेट्रो से उतर गए मगर उसकी बात दिल से सोचने पे मजबूर कर गयी | हम लड़के ही हैं जो अलग अलग तरह की धारणा बना लेते हैं, मेट्रो में लड़कियों के लिए, मेट्रो की सीट ज़रूरतमंदो के लिए | लड़ने के लिए देश के नेता ही काफी हैं तो हम क्यों मेट्रो की सीट के लिए लड़े | अब मैं जब भी मेट्रो में सफ़र करता हूँ तो ज़रूरतमंदों का ख्याल रखता हूँ, और अभिनय की दुनिया के लोगो को सच कहने से भी नहीं चुकता | साथ ही मेरी धारणा भी ग़लत हो गयी की महिलाये मजहबी हो गयी हैं |