जिंदगी तेरी मेरी कहानी
जिंदगी तेरी मेरी कहानी
रोहन हाथ मे बीयर की कैन थामे लगातार तेज कदमो से बढता जा रहा था, उसके हाथ मे ठंडी बियर थी लेकिन दिमाग बहुत गरम था। आज उसका उसका दिमाग गुस्से से नही बल्की दुख, परेशानी और बेबसी से गर्म हो रहा था, शायद इसलिये ही उसने यह ठंडी बियर ली थी। कभी- कभार दोस्तो के साथ छोड दे तो अमूमन वह शराब या बियर पीता नही है, क्योकी उसे वीयर भी बहुत जल्दी चढ जाती है।
उसके कदम बढते ही जा रहे थे, और दिमाग उससे भी तेजी से चल रहा था, दिमाग मे चल रही इसी हलचल के साथ रोहन अपने उस ठिकाने पर पहुंच गया, जहां इस अनजान शहर मे उसे कुछ अपनापन लगता था। यह नदी का पुल... जो उसे याद दिलाता था उसके गांव के पास से निकलते एक बरसाती नाले की जिस पर बने छोटे से पुल पर अक्सर अपने दोस्तो के साथ मस्ती करने जाया करता था, जहा पर वो सब बहुत सी शैतानीया बहुत सा बचपना करते थे, रोहन के लिये दोस्तो के साथ बिताये वो पल ही उसकी जिदगी का खजाना था, बस उन पलो को याद करने के लिये, कुछ पल के लिये अपने होठो पर मुस्कान लाने के लिये वह यहां खिचा चला आता था।
लेकिन आज बात कुछ और थी, मुस्कान तो आज उससे कोसो दूर थी, हां आँसू लगातार उसका साथ देने की कोशिश कर रहे थे बस वह ही जैसे तैसे उन्हे आंखो मै कैद किये हुए था। उसने बीयर कैन को ओपन किया अपनी आंखे बंद की और उसे अपने होठो से लगा लिया, गट-गट करके वह तेजी से बीयर पीने लगा जैसे वह एक अमृत है और उसे उसमे अपनी जिंदगी दिख रही है.
रोहन ने वीयर की कैन आधी खाली करके अपने मुह से हटायी, वह पुल की रैलिंग पर हाथ रखे हुए नीचे बहते पानी को देखने लगा, बहते पानी के साथ साथ उसके मन की हलचल भी और तेज हो रही थी, जिससे बचने के लिये उसने नशे का सहारा लिया था वह नशा ही उसे उन बातो के उन सवालो के और पास ला रहा था...... उसके कानो मे बार-बार कुछ शब्द गूंज रहे थे, कभी उसके माँ की सुबह की काल, “रोहन तेरी बहन के ससुराल वाले आने वाले हैं कुछ पैसे भेज दे, बडे वाले ने पैसे देने से मना कर दिया है...अब मेहमान आयेगे तो कुछ आव-भगत करनी पडेगी कुछ हाथ मे भी थमाना पडेगा...तू तो जानता है सरीता की ससुराल वालो को”। अगले ही पल पापा की बाते, “तेरे ताऊ जी बटवारे की बात कर रहे है, हमारा हिस्सा दाबना चाहते है वो, तू कुछ कर...’’ फिर रीना का चिल्लाना, “हां...नही करती मै तुमसे प्यार, हो कौन तुम... .जाओ...निकल जाओ मेरी जिंदगी से....” बॉस का पूरे आफिस के सामने कहना.. “तुम किसी काबिल नही हो, तुम कुछ काम नही कर सकते, तुम्हे अभी जाँब से निकालता हूँ... जाओ जाकर मजदूरी करो गवार कही के..”
‘औह... नही..नही..नही..’..रोहन ने अपना सर पकड लिया, जैसे इन सब बातो से उसका सर फटने वाला है.... वह हर तरफ से आती पेरशानी और उन परेशानीयो से ना लड पाने की अपनी बेबसी के आगे हार चुका था. उसकी आंखो ने अब आंसुओ को रोकने से मना कर दिया था, वह लगातार एक छोटे बच्चे की तरह रो रहा था, जैसे वह इस दुनिया के मेले मे खो गया है और किसी को उसकी कोई परवाह ही नही।
वह रोज-रोज की इस परेशानीयो से, इस अकेलेपन से थक चुका था लेकिन इनसे बचने का उसे कोई रास्ता नही मिल रहा था, तभी उसके सामने से एक बस आकर रूकी, किसी की अर्थी को लेकर जा रही थी बस, वह एक अंतिम यात्रा वाहन था। रोहन ने आंखे उठाकर उसे देखा, अपनी परेशानीयो से बचने की जद्दोजहद कर रहा रोहन एक शून्य की तरह उस बस को लगातार देखता रहा था, बस की साईड में एक लाईन लिखी थी, “मृत्यु कुछ की इच्छा है, बहुतो का आराम और सब परेशानीयो का अंत...” बस पर लिखी यह लाईन पढकर रोहन को अपनी परेशानीयो का अंत करने उनसे हमेशा के लिये मुक्ति पाने का रास्ता मिल गया, रोहन ने फिर से बियर की कैन मे एक घूंट मारा और बिना देर किये पुल की रैलिंग पर जाकर खडा हो गया...
उसने आंखे बंद की, और धीरे से बोला, “मृत्यु कुछ की इच्छा है, बहुतो का आराम और सब परेशानीयो का अंत, मेरी भी परेशानियो का अंत होगा मुझे भी इन चिंताओ से मुक्ति चाहिये...” इस वाक्य को दोहराते हुए वह अपनी सारी परेशानीयो को खत्म करने का कदम आगे बढाने लगा....
"अरे भाई क्या कर रहा है ये", पीछे से आवाज आयी, रोहन ने पलट कर देखा
दो तख्तो और पुराने बैरिंग से मिलाकर बनी एक हाथ से घसीट कर चलने वाली गाडी को घसीटा हुए एक फटेहाल भिखारी बार बार उसे आवाज लगा रहा था और वह लगातार उसकी तरफ बढता चला आ रहा था.
‘क्या है, क्या परेशानी है तुझे’.. रोहन ने गुस्से से कहा
‘भाई परेशानी मुझे नहीं तुझे है, मै तो तुझे यह बता रहा हूँँ..’ भिखारी ने कहा
‘तू रहने दे मुझे बताने को.. ये फालतू ज्ञान कही और दिखा.. चल निकल यहां से...’ रोहन ने उसकी बात बीच मे ही काटते हुए कहा..
‘अरे भाई सुन तो ले, मै कोई फालतू ज्ञान नही दे रहा हूँ, और जो तू कर रहा है मै उसके लिये तुझे नही रोक रहा हूँ, मै तो तुझे बता रहा हूँ की अगर तेरे को नीचे कूदना है तो थोडा आगे जाकर कूद, जहां पानी गहरा है, तेरा काम वहा बन जायेगा... अगर तू इस 40 फिट ऊंचे पुल से यहा कूदा तो नीचे पानी बहुत कम है, तेरा काम तो नही होगा लेकिन काम तमाम जरूर हो जायेगा.. तू मरेगा नही..बस तेरे हाथ पैर टूट जायेगे और फिर तू मेरी तरह ही हो जायेगा... और यार तेरी शक्ल से ही दिखता है की तू तो सही से भीख भी नही मांग पायेगा...समझा..’ भिखारी ने हँस कर कहा।
अब तक टेंशन मे डूबे रोहन को भिखारी की बात सुनकर हसी आ गयी, ‘ये तो तूने सही कहा की मै भीख तो नही माँग पाऊंगा, लगता है थोडा आगे ही जाना पडेगा” वह रैलिंग से नीचे उतरा उसने अपनी बीयर की कैन उसकी तरफ बढाते हुए कहा...’बियर पीयेगा...लेकिन झूठी है मेरी..’
‘अरे यार तुझे ये भी नही पता की शारब कभी झूठी नही होती... ला दे..वैसे भी सुबह से इस गाडी को और अपने आप को खीचते-खीचते थक गया हूँ, इस बहाने कुछ तो आराम मिल जायेगा..’ भिखारी ने कहा और उससे बीयर की कैन लेकर पीने लगा
दो घूट पीकर वह रूक गया...और रोहन की आंखो मे देखते हुए बोला, ‘अरे भाई तू तो अच्छा खासा लडका है, पढा लिखा भी है.. फिर क्यो मरने को टंगा हुआ था इस पुल पर...’
‘ये टेशन, ये लाईफ की परेशानियाँ मुझे जीने नही देती है दोस्त, मै हार गया हूँ, मै अब इनसे नही लड सकता...’ रोहन ने कहा.
‘अच्छा कितनी परेशानी है तुझे जो तू हार गया, तेरा घर भी होगा..परिवार भी होगा..आज नही तो कल कोई प्यार करने वाला भी होगा... है ना..’ भिखारी ने पूछा
‘हां, घर है, परिवार है.. लेकिन सब दूर है और लगातार दूर हो रहे है मुझसे....’ रोहन ने हल्की सी उदासी के साथ कहा...
‘भाई मुझे बचपन मे पोलियो हो गया..दोनो पैर बेकार तो घर वालो ने मुझे एक तरह से निकाल ही दिया.. एक बाबा को मुझे दे दिया और भूल गये। जब मैने होश संभाला तो खुद को फुटपाथ पर पाया... ना मेरे सर पर छत है, ना कोई अपना कहने वाला, और तो और भगवान ने मुझे खडे होने लायक भी नही बनाया। मै रोज हजारो गाली खाता हूँ, सैकडो लोगो से दुतकारा जाता हूँं, तुझसे सौ गुना ज्यादा पेरशानीयो का सामना करता हूँँ, लेकिन फिर भी मै जी रहा हूँँ, क्या है ना दोस्त जिंदगी है तो परेशानियाँ होगी ही... अब उनसे डरकर मर तो नही सकते, हां उनका सामना जरूर कर सकते हैं... किसी और के लिये ना सही हम खुद के लिये तो लड़ ही सकते हैं, और मै अपने लिये लड़ रहा हूँ, जब तक लडता रहूँंगा जब तक भगवान खुद मुझे ना बुलाये...लेकिन मै परेशानीयो से हार नही मानूंगा। तू भी एक बार लड़ने की कोशिश तो कर तेरे आंसू भी तुझसे दूर भाग जायेंगे और मुस्कान से फिर तेरी दोस्ती हो जायेगी...
अच्छा मै चलता हूँ, अब तू अपना सोच ले..की लडना है या मरना है....’ उस भिखारी ने कहा.. और अपनी छोटी सी गाडी को धकेलता हुआ आगे बढने लगा।
रोहन उसे जाता हुआ देखता रहा... उसने अपने हाथो से अपने आंसुओ को पोछा और जोर से चिल्लाया... “हाँ मेरे दोस्त मे मै लडूगां”।
उस भिखारी ने पलट कर देखा और मुस्कुराकर उसकी तरफ हाथ हिलाया और बोला “मै जानता हूँ तू कायर नही है, तू लडेगा और जीतेगा भी..”
रोहन ने भी धन्यवाद के तौर पर हाथ हिलाया.. हाथ हिलाते हुए उसने महसूस किया की उसके आंसू सूख चुके है और उसके हाठो पर मुस्कान आ गयी है..
जिंदगी जीने का सबक सीख कर, आँसुओ को पीछे छोडकर रोहन वापस अपने घर की तरफ चल दिया, उसकी सब परेशानियों का अंत हो चुका था, क्योकी वह उनसे लडना सीख गया था और अपनी जिंदगी अपने अंदाज मे जीने का तरीका भी...।
अरुण गौड़
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