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अनजान

अनजान

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मेरा नाम न जाने कोई।

इन संकरी गलियों में, 

विशालकाय राहों में,

बस्ती, गांव, शहरों में,

सहमा-सा, अकेला चलता हूं,

मेरा नाम न जाने कोई।

सुबह को जागा सूरज,

किरणें बिखेरने को तैयार,

परंतु मेघों के काले जाल में,

फंसा बैठा, डरा हुआ,

उस सूर्य के समान हूं,

मेरा नाम न जाने कोई।

गुलाब तोड़ने गया महबूब,

उसके रंग से आकर्षित, 

कांटो से अनजान,

किलों में उलझा, 

खून से लथपथ,

गुलाब समान दोगली दुनिया में,

उस महबूब का साथी हूं,

मेरा नाम न जाने कोई।

उफनती लहरों के समक्ष,

असीम समुद्र के बीच खोया मांझी,

भयभीत, चिंतित, उदास,

ज़मीन की तलाश में भटकता,

लहरों से हारने पर खामोश,

इस खामोशी में रहता हूं,

मेरा नाम न जाने कोई।

मैं गुमनाम हूं, बेनाम हूं,

करोड़ों की इस सल्तनत में,

इकलौता ही अनजान हूं,

अकेला मगर कोई डर नहीं,

मैं एक ही, हजारों समान हूं,

तू थाम हाथ या छोड़ दे,

पर मैं न इस पथ से हिलूं,

चलता रहूं उस दिन की तलाश में,

जब मेरा नाम,

जाने हर कोई, जाने हर कोई।


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