अब न हो निराश तू
अब न हो निराश तू
अब न हो निराश तू
पराजय देख ली है तेरे डर ने
अब न हो हताश तू
विजय जीत ली ह तूने खुद से।
घने जंगल में फंसी
हर जानवर से लड़ी तू
निर्भया बन चमकी
आज है जीत गई तू।
लांघ लिया उस रेगिस्तान को
तपती रेत में जली तू
फिर उस तपन को कम किया
अपनी अंतर-ज्वाला से
जो शोले भभक्ते है तेरी
रगों में आज उबाल से।
अब न हो निराश तू
पराजय देख ली है तेरे डर ने
अब न हो हताश तू
विजय जीत ली तूने खुद से।
तैरना तूने सीख लिया
समंदरों के बीच से
पार कर लिया अड़चनों को
सिर उठा अब गर्व से।
पैरों पर अपने खड़ी तू
है खुद के परिश्रम से
सुनीता, किरण, सिंधु
बन दिख दिया है
की चली तू निरंकुश।
अब न हो निराश तू
पराजय देख ली है तेरे डर ने
अब न हो हताश तू
विजय जीत ली तूने खुद से।
बनी तू माँ, बहु, बेटी
और सहधर्मचारिणी
किया पूरा हर कर्तव्य चाहे
सपने चढ़े तेरे बली।
आगे बढ़ अकेले ही सही
सूर्य एक है आकाश में
नजाने गुज़री कितनी सदी
उज्जवलित होते ब्रह्मांड में।
अब न हो निराश तू
पराजय देख ली है तेरे डर ने
अब न हो हताश तू
विजय जीत ली तूने खुद से।