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Rishabh Agarwala

Abstract

5.0  

Rishabh Agarwala

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शुक्रिया

शुक्रिया

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वह रात थी नशे में,

तारे भी टिम टिमा रहे थे।

जाम पीकर, मदहोशी में यूं,

एक नई दास्तां सी सुना रहे थे।।


थे डूबे हम गम में,

बस तारों की सुनते जा रहे थे।

जाम पीकर, अपनी इन नम आंखों से,

समझे, आसमान को, नशे में जा रहे थे।।


मुस्कुराहट की खोज में,

हम सारा वक़्त अंधेरे में बिता रहे थे।

तारों से बातें करके,

खुद से नज़दीकियां बढ़ा रहे थे।।


और तारों का बेहतर शुक्रगुजार हूं मैं,

क्यूंकि,


चांद की रोशनी के साए में,

वह हमें हमारी परछाई से मिला रहे थे।

और इन्हीं सब तारों के बीच में,

वह हमें चांद बनना सिखा रहे थे।।


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