दस्ताने
दस्ताने
मेरे दस्ताने कहीं खो गये,
जिनमे दोनों हाथ दिया करते थे..
वो सिरहाने कहाँ गये,
जिनपे सर रखके सो लिया करते थे!
वो बसों मे सफ़र, वो रिक्शे की सवारी..
कभी दूर तक पैदल भी चला करते थे!
वो गोलगप्पे की दुकान पे खड़े हो जाना,
वो गाल फुलाकर, नज़रें मिलाना,
कभी कभी तो हज़ारों की भीड़ मे,
ज़ोर से हंस दिया करते थे..
मेरे दस्ताने कहीं खो गये,
जिनमे दोनों हाथ दिया करते थे!
लंबी रातों को, बातों से छोटी कर देना,
जाग जाग कर, आँखों को मोटी कर देना,
और फिर दफ़्तर मे, सामने बैठकर तुम मेरे,
हल्की सी नींद लिया करते थे..
मेरे दस्ताने कहीं खो गये,
जिनमे दोनों हाथ दिया करते थे!
कभी रज़ाई से, कभी तकिये से लड़ाई,
तेरे बिना कहाँ ज़िंदगी मुझे ले आई,
हज़ार लफ्ज़ भी, जहाँ तुम सुन नहीं पाते,
कभी सिर्फ़ नज़र से, समझ लिया करते थे..
मेरे दस्ताने कहीं खो गये,
जिनमे दोनों हाथ दिया करते थे!