हिंदी चीख रही है
हिंदी चीख रही है
लोगों सुनो ज़रा सा हिन्दी चीख़ रही है;
जनमानस की भाषा हिन्दी चीख़ रही है।
एक ज़माना था जब राजकुमारी थी;
हिंदवासियों को यह जान से प्यारी थी।
सूर कबीर के दोहों में इठलाती थी;
प्रेमचंद के किस्सों की शहज़ादी थी।
बदल गई परिभाषा हिन्दी चीख़ रही है;
जनमानस की भाषा हिन्दी चीख़ रही है।
मृदुल भाषियों की पहचान ये हिंदी थी;
आन थी शान थी और सम्मान ये हिंदी थी;
हिंदवासियों का अभिमान ये हिंदी थी;
और खुशियों का ख़ियाबान ये हिंदी थी;
वक़्त अब ऐसा आया हिंदी चीख़ रही है;
जनमानस की भाषा हिंदी चीख़ रही है।
अपने अंदर झांको फिर अंतर देखो;
यहीं कहीं हैं 'पंत' व 'जयशंकर' देखो;
झूठी शान से तुम ऊपर उठकर देखो;
'दिनकर' की कविताओं को पढ़कर देखो।
भारत भाग्य विधाता हिंदी चीख़ रही है;
जनमानस की भाषा हिंदी चीख़ रही है।