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Harsh Maheshwari

Abstract

5.0  

Harsh Maheshwari

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फिर भी मुस्कुरा रहे थे

फिर भी मुस्कुरा रहे थे

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वक़्त तो सभी देखते हैं 

पर एक वक़्त हमने भी देखा जब हम

भीड़ में धक्के खा रहे थे।


जो मिल रहा था चुपचाप खा रहे थे,

बिना बोले सब कुछ सहे जा रहे थे,

वो माँ का प्यार, वो पिता की डाँट।

 

लिया करते थे सारे सुख दुःख बाँट,

दूर होके अपनों से, उनकी याद में,

सो नही पा रहे थे, पर क्या बताऊँ 

फिर भी मुस्कुरा रहे थे।


पुरानी यादों के सहारे जीते जा रहे थे,

बचपन के दोस्त आज भी याद आ रहे थे,

कुछ अनोखी पहेलियाँ हम भी सुलझा रहे थे,

नए लोगों संग, नया परिवार बना रहे थे।


तकलीफ़ तो होती थी,

पर क्या बताऊँ 

फिर भी मुस्कुरा रहे थे ।


मोटी किताबों का ज्ञान लिए,

हम दुनिया को बता रहे थे,

निकले तो थे सपनों को पूरा करने,

पर भटके रास्तों को भुला रहे थे।


मुश्किलें तो आयी थी बहुत,

पर क्या बताऊँ 

फिर भी मुस्कुरा रहे थे।


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