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Nitesh Kamboj

Inspirational

4.0  

Nitesh Kamboj

Inspirational

अपराजित

अपराजित

2 mins
23.1K


 

(1)

अंग है अलग एक 

हौसला बुलंद है,

ज़िन्दगी को जीने का 

ये भी एक ढंग है । 

 

गिरा ज़रूर था वो मुश्क़िलों से जब भिड़ा,

हिम्मतें बटोरकर वो दिक्कतों से फिर लड़ा,

जोश और जुनून का स्तर जब ज़रा बढ़ा,

हौसला बुलंद कर वो हो गया था फिर खड़ा । 

 

ज़िन्दगी न जीने के कारण अनेक थे 

पर जीने की वजह बस एक ही थी बहुत

 

जो उसे चला रह थी,

ज़िन्दगी सिखा रही थी,

और यह बता रही थी

 

कि ज़िन्दगी विडंबना है, ज़िन्दगी संघर्ष है,

ज़िन्दगी को जीतने में अनंत अपार हर्ष है । 

 

(2)

अंग है अलग एक 

हौसला बुलंद है,

ज़िन्दगी को जीने का 

ये भी एक ढंग है । 

 

ज़िन्दगी के वृक्ष पर विडंबनाऐं थी बड़ी,

उस वृक्ष की जड़ों में थी मुश्किलें अधिक अड़ी,

 

ज़िन्दगी की राह में कंटकों का ढेर था,

उस ढेर में अटका हुआ पीड़ाओं का फेर था । 

 

वो कंटकों की राह पर था चल पड़ा.

मुश्क़िलों के मोड़ से था वो मुड़ा,

शूल के त्रिशूल को था सह रहा,

रक्त की वो धार सा था बह रहा,

मन ही मन में ख़ुद से था वो कह रहा 

 

त्याग दे तू ज़िन्दगी को ज़िन्दगी में क्या पड़ा,

ज़िन्दगी का बोझ क्यों तू देह पे लिऐ खड़ा । 

 

देह से तू भार को अब यहीं उतार दे,

व्यथा की इस अथक प्रथा को अब यहीं तू मार दे,

मुश्क़िलों से मुक्त हो, ज़िन्दगी को थाम दे,

पीड़ाओं की श्रृंखला को अब यहीं विराम दे । 

 

खड़ा हुआ निकल पड़ा वो प्राणों को फिर त्यागने,

एक नयी सी ज़िन्दगी में फिर दोबारा जागने । 

 

प्राणों को है त्यागना, मन में ये ख्याल था,

मुरझाऐ से मन में पर अब भी एक सवाल था

 

कि मुश्क़िलों  से मुक्ति चाहिऐ तो प्राणों को क्यों त्यागना,

क्यों ज़िन्दगी की उलझनों से दुम दबाऐ भागना । 

 

जो ज़िन्दगी ही मुश्क़िलों  से मुक्त हो

उस ज़िन्दगी का ज़िन्दगी में मोल क्या,

जिस ज़िन्दगी से पीड़ाऐं ही लुप्त हों

उस ज़िन्दगी का ज़िन्दगी से तोल क्या । 

 

खड़ा हुआ निकल पड़ा वो मुश्क़िलों  से जूझने ,

ज़िन्दगी के उत्तरों को ज़िन्दगी से बूझने । 

 

ज़िन्दगी के पन्नों को जब धैर्य से पढ़ा,

ज्ञान के प्रकाश में वो फिर कदम-कदम बढ़ा । 

 

ज़िन्दगी से जूझता वो पीड़ाओं को पी गया,

ज़िन्दगी की चाह में वो ज़िन्दगी को जी गया । 

 

जोड़-जोड़ साहसों को हिम्मतें भी फिर बढ़ी,

डगमगाया न वो अपनी मंज़िलों से फिर कभी । 

 

अंग है अलग एक 

हौसला बुलंद है,

ज़िन्दगी को जीने का 

ये भी एक ढंग है ।

 


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