नारी के रूप हज़ार
नारी के रूप हज़ार
खिलखिलाती-सी हँसी नन्हीं-सी परी की,
उसको देखते ही किसी की खुशी ना थमी थी|
जब घर आये थे उसके नन्हे से कदम,
सब यही पूछते वो है किधर|
बढ़ते वक्त ने उसे बड़ा कर दिया,
अपने कदमों पे खड़ा कर दिया|
जब नन्हीं परी से वो नारी बन गयी,
तब ज़िन्दगी उसकी कहानी बन गयी|
चूल्हे-चौके के बीच धुंधली उसकी हँसी हो गयी थी,
जो उसकी आँखे नम कर गयी थी|
दूसरों के राह पर चलती जा रही,
और अपने को भूलती जा रही|
भूखी सो जाती अपने बच्चों के लिये,
सब कुछ कर जाती उनके लिये,
वो नारी माँ है|
सबका बढ़ाती सम्मान,
कभी ना गिराती किसी का मान,
ऐसी नारी बहू है|
रखती अपने भाई का ख्याल,
और करती उससे बेशुमार प्यार,
ऐसी नारी बहन है|
मम्मी की प्यारी,
और पापा की दुलारी है,
ऐसी नारी बेटी है|
एक नारी के हज़ार रूप है,
उनकी ये कला क्या खूब है|
कभी ना दुखाओ उनका दिल,
पता नहीं बाद मे मिले ना फिर|
उनके बगैर ज़िन्दगी एक सज़ा है,
वही तो जीने की वजह है|