बाहर सपनों से निकले हम
बाहर सपनों से निकले हम
गीत
बाहर सपनों से निकले हम
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बाहर सपनों से निकले हम,
फिर गाँवों की ओर चलें हम।
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ये सपने माया ममता के,
गले घोटते हैं समता के।
क्यों जाएं फिर वहां छले हम,
फिर गाँवों की ओर चलें हम ।।
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बड़े बड़े हम मकां छोड़कर,
खोली में आ गए दौड़कर ।
दडबों में दिन रात गले हम ,
फिर गाँवों की ओर चलें हम ।।
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पांवों में छाले सबके हैं ,
खाने के लाले सबके हैं।
लगें काम पर शाम ढले हम,
फिर गाँवों की ओर चलें हम।।
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दुर्घटना बस एक घटना है।
देकर साक्ष किसे कटना है।।
क्यों डालेंगे हार गले हम?
फिर गाँवों की ओर चले हम ।।
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दादा दादी नाना नानी,
साथ रखें तो हैं अज्ञानी।
गहरे थे पर अब उथले हम,
फिर गाँवों की ओर चलें हम।।
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कौन पड़ोसी किसका साथी ,
दीपक है "अनंत" बिन बाती।
पर हित में कब यार जले हम ,
फिर गाँवों की ओर चलें हम।।
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अख्तर अली शाह "अनंत" नीमच