जीवन की जद्दोजहद
जीवन की जद्दोजहद
जीवन की जद्दोजहद में
पता ही नहीं चला कि
कब छोटे से बड़े हो गए
गरीबी की आँच पर सिकते
सिकते समय से पहले ही
हम कच्चे से पक्के हो गए
बेहिसाब दर्द था हिस्से में
लेकिन माँ के आँचल में जा
पहले से भी अच्छे हो गए
गरीबी और दर्द की नुमाइश
न की कभी भी बाजार में
ख़ुशियाँ ढूंढ ली अपने ही
आस पास बसे छोटे से संसार में
न धूप सताई न गर्मी ने देह झुलसाई
भूख प्यास से होकर बेपरवाह
जीवन के रण में न पीठ दिखाई
कैसे माता का ऋण चुकाऊं
मजदूरी कर मुझ को पाला
कम है चरणों में भी जो उसके
मैं नतमस्तक हो जाऊं
माना मुझ को ज्ञान नहीं
पर सुन ले ओ जिंदगी
मेरे सर पर आशीर्वाद है मेरी माँ का
तेरा मुझको हराना इतना आसान नहीं
आज ये वादा मेरा खुद से है
गरीबी और दर्द से नाता तोड़ दूँगा
माँ के आँचल से मिला जो स्नेह
उस आँचल को ख़ुशियों से भर दूँगा