कोरोना कर्मवीर
कोरोना कर्मवीर
आज फ़िर निकला हूँ घर से मैं
हाल-ऐ-दुनियां बताने को...
देखता हूँ इन सूनी राहों को,
इन सन्नाटों और वीरानों को,
सोचता हूँ हुआ ऐसा क्या ?
जो खा गया बाज़ारों को...
क़यामत आयी है इस जहां में,
कोई कह रहा था शायद वहां पे..
सोचा चलो देखते हैं इसे भी,
इन हौसलों के आगे बड़ी कहाँ ये...
देखा जब इस बियाबां में जाके
दिखे सिर्फ वो चंद लोग मुझे..
बचा रहे थे ज़िंदगियाँ जो तमाम,
जिनमें ख़ुद को मैंने पाया मुझे..
क्या मिला हमें दाँव पर लगा खुद को,
देख पाएं अपनों को हम और हमें वो,
बस.. बस इसी चाहत में लग गए बचाने ज़िंदगियाँ,
फिर हमें शाबासी दे या दे गालियां वो..
हम से तुम हो, तुम से हम हैं,
ये बात ही सिर्फ़ समझाने को,
आज फ़िर निकला हूँ घर से मैं,
हाल-ऐ-दुनियां बताने को ।