क्या माँगा था क़ुदरत ने..
क्या माँगा था क़ुदरत ने..
बन्द दरवाज़ों के पीछे छुपे
चेहरे की उनींदी आंखे,
माथे पर सिलवटें,
ओ दिलों में तेज धड़कनें
बयाँ करती है बेबसी हमारी
कि क्या माँगा था कुदरत ने हमसे
और हमने क्या दिया उसे ?
ना कुछ दे सके हम उसे
मग़र छीन सब कुछ लिया
अब हिस्से में हमारे सिर्फ ओ सिर्फ
खौफ़ का साया बचा है, ओर
बयाँ करती है बेबसी हमारी
कि क्या माँगा था कुदरत ने हमसे
और हमने क्या दिया उसे ?
वक़्त अब भी है निगेहबानों,
संभलो, और बदल जाओ
वरना ना होंगी इन
चेहरे की उनींदी आंखे,
माथे पर सिलवटें
ओर दिलों में धड़कनें,
होंगे सिर्फ बन्द दरवाजें
जो बयाँ करेंगे बेबसी हमारी
कि क्या माँगा था कुदरत ने हमसे
और हमने क्या दिया उसे ?
