सपना या हकीकत
सपना या हकीकत


न जाने क्या हुआ है आज सपना को कि सुबह से आँखें बरसे ही जा रही हैं हालाँकि मौसम बारिश का है लेकिन आसमान बिलकुल खुला हुआ है बादल एक बार भी झूम कर नहीं बरसे हैं धरती तप रही है सूरज आग उगल रहा है हरियाली पीली हो रही है पंछियों को देखो कैसे गर्मी से व्याकुल हैं और मोर नाचना भूल कर एक कोने में बैठे हैं बरखा के इन्तजार में, कि बारिश आये और वे अपने खूबसूरत पंख फैला कर नाचे लेकिन इस सूखे हुए मौसम में सपना की आँखों में बाढ़ सी आयी हुई है आत्मा तक धुल धुल कर पवित्र हो गयी है वैसे आत्मा तो पवित्र ही होती है लेकिन शायद उससे एक गलती हो गयी थी शायद पाप हो गया था कि उसे राज से बेइन्तिहाँ मोहब्बत हो गयी उसने जानबुझ कर तो कुछ भी नहीं किया सब अनजाने में हुआ शायद प्रेम अनजाने में ही होता है, जब तक जानते समझते हैं तब तक बहुत देर हो जाती है और तब हम अपने भी नहीं रहते ! कलेजा यूँ लग रहा था जैसे कोई काटे दे रहा है कोई उसके साथ छल करता रहा उसके विश्वास को ठगता रहा और वो मासूम सी सब लुटाती रही आज जब उसे हकीकत का भान हुआ, तब उसकी बंद आँखें खुली, आँखे क्या खुली अँधेरा सा ही छा गया ! राज तुम तो मुझसे बड़ी बड़ी बातें करते थे फिर ….खैर गलती तो सब उसकी ही है उसे बखूबी याद है जब उस दिन मंदिर में जल चढाने के लिए गयी थी, पास की दुकान से प्रसाद ख़रीदा और अपने पर्स से पैसे निकाल कर दे रही थी तभी उसके मोबाईल की घंटी बज उठी, अरे यह किसका फोन है अननोन नंबर समझ कर उसने काटना चाहा लेकिन फिर न जाने क्या सोच कर उठा लिया शायद किसी का जरुरी फोन हेलो,
जी हेलो,
पहचाना नहीं उधर से आवाज आयी !
हम्म, सपना कुछ सोचती हुई बोली !
हम्म्म क्या ? अरे मैं राज बोल रहा हूँ राज कुछ नाराज सा होता हुआ बोला !
ओह्ह अरे आप, जी नमस्ते, कैसे हो आप ? सपना एकदम हड़बड़ा कर बोली !नमस्ते जी , राज ने कहा, चलो पहचान तो लिया !
जी हाँ, क्यों नहीं, ! कहते हुए सपना मन ही मन बड़बड़ाई ! अभी उसे राज से मिले बमुश्किल चार दिन भी नहीं हुए और इसके मन में मेरे लिए इतनी बेतकल्लुफी, हे भगवान , कैसे कैसे लोग होते हैं दुनिया में, खैर जाने दो यूँ सोचती हुई ही मंदिर की सीढियाँ चढ़ने लगी ! आज मंदिर में बहुत भीड़ थी, सो वो वही बेंच पर बैठ गयी तभी फिर फोन की घंटी बजी ! वही नंबर था, मतलब राज का , उसने सेव तो अभी भी नहीं किया है चलो बात करने के बाद कर लुंगी जी, सपना ने फोन उठाकर कहा !
कहाँ हो तुम, क्या मंदिर में ?
जी हाँ, आपको कैसे पता चला ! उसने अपनी नजरे इधर उधर घुमाते हुए कहा, कहीं वो यही न हो !
अरे मंदिर के घंटे की आवाज साफ सुनाई दे रही है ! हम्म ! लगता है बड़ी आस्तिक हो ? जी हाँ, थोड़ी बहुत !
अच्छी बात है आस्तिक होना, श्रद्धा रखना !
हम्म
क्या तुम्हे पता है आज मैं तुम्हारे घर की तरफ से निकला !
मेरे घर की तरफ से, ?
लेकिन क्यों ?
क्योंकि मेरा घर उधर ही है !
अच्छा !
हाँ यार,
वैसे मैं आपको कल कालेज में आकर थैंक्स कहने ही वाली थी क्योंकि मेरे पास तुम्हारा नंबर नहीं था लेकिन अब आपका ही फोन आ गया तो थैंक्स !
थैंक्स
वो किसलिए और रही अगर नंबर की बात तो वो मेरे पास भी नहीं था कहते हैं न ढूढ़ने से भगवन भी मिल जाते हैं तो तुम्हारा नंबर कौन सी बड़ी बात है ओह्ह राज, वैसे आज तुमने मुझे रैगिंग से बचा लिया था न …
तुम तो बेकार में डर रही थी !कुछ नहीं होता, शायद इसीलिए मंदिर में आयी हो ?
अरे नहीं नहीं मैं तो आती रहती हूँ !
अब तुम्हें बिलकुल भी डरने की जरुरत नहीं है मैं हूँ न तुम्हारे साथ ,
अच्छा
हाँ बिलकुल !
वो क्यों ?
अरे यार, अरे तुम मेरी दोस्त हो ,अपने यार के लिए तो आसमान से तारे भी तोड़ कर ला सकते हैं और तुम पूछती हो वो क्यों ? राज की यह बात सुनकर उसे खुद पर बड़ा गर्व सा हो आया कोई एक बार मिलने के बाद भी आपको इतना अपना कैसे मान सकता वो भी कालेज का सबसे होशियार और टॉपर लड़का ,शायद अपनापन इसी को कहते हैं और जहाँ अपनापन होता है वहां पर कोई तकल्लुफ नहीं होता ! अपनेपन के रिश्ते पिछले जन्मों का फल होता है ! एक बार नानी कहानी सुना रही थी तो कह रही थी , हम सब का पिछले कई जन्मों का रिश्ता है तभी तो हम सब एक दूसरे को इतना चाहते हैं, सच में नानी कितना प्यार करती थी जो भी बात मुंह से निकालो फ़ौरन पूरी करती थी और महीने भर की छुट्टियों में नानी को खूब परेशान करने पर भी कभी डांटती नहीं थ अरे कहाँ खो गयी सपना !
नहीं नहीं, कहीं भी तो नहीं ! सपना एकदम से चौंकती हुई सी बोली ! आज राज के इस प्यार ने उसे नानी की याद दिला दी थी ! उनकी बातें और उनका प्यार एक ज़िंदगी के समान था ! अच्छा चलो, अब तुम पूजा कर लो सपना !
कितना अच्छा लग रहा था यूँ राज का बार बार सपना कहना ! सच में जब कोई नाम लेकर पुकारता है तो कितना अपनापन सा महसूस होता है ! उसे नदिया के पार वाला वो गाना याद आ गया, गूंजा रे, चन्दन, चन्दन ! जब कोई पुकारे लेकर नाम हो ! वो जल्दी जल्दी पूजा करके घर आ गयी अब उसके जीवन में खुशियों की बौछार हो गयी थी ! सच में प्रेम से बड़ा कोई सुख नहीं ! राज कितना प्यार करता था उसे, उसका वश चले तो वो उसे जमीं पर पाँव तक न रखने दे ! कब दिन महीने सालों बरसों में बदलते गए ! पर उनके प्रेम में कोई भी कमी नहीं आयी, पढाई पूरी हो गयी थी, अब उन्हें अपने पांवों पर खड़े होने के लिए आगे की पढाई करनी थी लेकिन सपना चाहती थी , राज उससे शादी करने के बाद आगे की पढाई करने शहर जाए पर राज ने साफ मना कर दिया !नहीं, पहले पढाई. फिर शादी, तुम समझो, प्रेम और शादी में बहुत अंतर होता है, प्रेम में तो भूखे भी रह सकते हैं लेकिन शादी के बाद भूखे गुजारा नहीं होगा !
अरे यह क्या कह रहे हो तुम, मेरा दिल मत दुखाओ, वो जार जार रोने लगी !
राज की आँखे भी नम थी लेकिन वो सपना की कमजोरी में पढ़कर अपने जीवन को ख़राब नहीं करना चाहता था, राज चला गया और सपना अकेली हो गयी,तन्हा , उसकी नम आँखों की नमी कभी नहीं सूखती, लाख कोशिशों के बाद भी हिम्मत नहीं आती ! मानों जीवन ख़त्म सा हो गया हो, ज़िंदगी में अंधेरापन छा गया, कहीं भी रौशनी की एक किरण भी फूटती नजर नहीं आ रही थी आखिर वो निढाल सी बिस्तर पर पड़ गयी, जिस्म बेजान हो गया था ! हाथ में किताबें देखकर पापा भी कुछ नहीं कह पाते थे हालाँकि वे समझ रहे थे, सपना निराश है ! उस दिन शाम के समय पर जब पापा ने चाय के लिए सपना आओ चाय लो ! आज मैं तुम्हारे लिए अजंता की शाप से समोसा लेकर आया हूँ पहली बार में जब सपना ने कोई जवाब नहीं दियसपना, पापा ने फिर एक बार आवाज लगायी !
हाँ आती हूँ, इस बार सपना ने बेमन से उत्तर दिया !
उतरा, उदास चेहरा लेकर अगर पापा के सामने गयी, तो पापा न जाने क्या समझेंगे, उसने अपने चेहरे पर हल्का सा पावडर लगाकर आँखों में काजल लगाया और चेहरे पर नकली मुस्कान ओढ़ कर पापा के पास आकर बैठ गयी हालाँकि अंदर से मन बहुत भारी हो रहा था लेकिन ऊपर से ख़ुशी का दिखाबा करती हुई सपना बोली, अरे पापा, आप आज अजंता के समोसे लाये हैं ? मेरे फेवरेट ! और एक समोसा उठाकर खाने लगी !पापा के सामने इतना नार्मल होने की कोशिश करने पर भी उसकी उदासी उनको दिख गयी, क्यों ? पापा को सब पता चल जाता है? कैसे? समझ नहीं आता है कभी कभी ! माँ का रोल भी पापा ने निभाया है शायद इसीलिए सपना!
सपना,जब उन्होंने यह कहा सुनो सपना, लग रहा है रात भर आजकल सो नहीं रही हो ? क्या इतनी पढाई कर रही हो या कोई और बात है ? क्या कहे वो पापा से की राज चला गया उसे इन्तजार का उपहार देकर या फिर धोखा, छल करके ! खैर…
नहीं नहीं पापा, ऐसी तो कोई भी बात नहीं है, बस आँखों में शायद इंफेक्शन सा हो गया है जिसकी वजह से आँखों में लालिमा हो गयी है ! सपना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया !
चलो ठीक है, समोसा खाओ, चाय पियो और आराम से पढाई करो ! किसी भी तरह की फ़िक्र करने के लिए मैं अभी जिन्दा बैठा हूँ, कहते हुए पापा ने उसकी तरफ बड़े स्नेह से देखा कितना प्यार करते हैं पापा, उसे जरा सा भी उदास या परेशान नहीं होने देते, हमेशा अपना सहारा दे देते हैं और राज जिसे उसने अपना सब कुछ मान लिया, वो उसे यूँ कमजोर कर गया ! मानों जिस्म की जैसे सब शक्ति ही ख़त्म हो गयी हो, दर्द का रिस्ता हुआ समंदर आँखों से बहने को उतावला हो गया ! वो जोर से चीख कर कहना चाहती थी राज तुम बेवफा हो, हाँ तुम बेवफा हो ! तुम्हें ईश्वर भी माफ़ नहीं करेगा !क्या सोचने लगी सपना बेटा ? कुछ नहीं, बस यूँ ही ! अच्छा पापा, मैं अपने कमरे में जा रही हूँ एग्जाम के सिर्फ १५ दिन ही बचे हैं हाँ हाँ ठीक है लेकिन कमरे में क्यों ? छत पर चली जाओ, थोड़ी खुली हवा में मन भी खुश रहेगा ! कमरे में उदासी आती है ! अरे, यह पापा क्या कह रहे हैं ? क्या उनको सब पता तो नहीं चल गया ? हाँ पापा आप ठीक ही कह रहे हो, मैं छत पर ही जाती हूँ वाकई छत पर आकर मन को बड़ा सकूँ सा हुआ ! खुली हवा में स्वांस लेते हुए उसने देखा नीम का पेड़ झूम झूम कर लहराते हुए उसके आने की ख़ुशी मना रहा है, छोटी छोटी हरी पीली पत्तियां थिरक रही है हवा के बजते हुए साज पर ! वो हमेशा ही इस नीम के पेड़ के पास आकर सकूँ का अनुभव करती थी अपने मन की सब बातें कहकर हलकी हो जाय करती थी ! आज भी उसे बहुत अच्छा लगा ! राज देखना एक दिन तुम स्वयं लौट आओगे, तुम्हें मेरे प्रेम की खुशबु मेरी तरफ खींचे लिए आएगी ! उसकी तरफ से मन हटाकर अब पढाई कर ली जाए सोचते हुए उसने किताब खोल ली लेकिन किताब खोलते ही उसमें हर शब्द में राज का चेहरा नजर आने लगा उफ़ क्या करूँ मैं ? कहाँ जाऊं ? कि तुम्हारी यादों से मुझे मुक्ति मिल जाए ! तुम इतने निर्मोही कैसे हो सकते हो राज, आखिर कैसे ? सपना बहुत जोर से चीख चीख कर रोना चाहती थी लेकिन उसने अपनी चीख को हलक में ही दबा लिया और आँखों से बैठे आंसुओं को पोछते हुए कहा, नहीं अब और नहीं बिलकुल नहीं, उसे पढ़ना है आगे बढ़ना है, यूँ रो रो कर तड़प तड़प कर जान नहीं देनी है उसे हर हाल में इस बार यह जवाब पाकर ही रहनी है अपने पापा को वो सब देना है जिससे उन्हें ख़ुशी मिले ! वे अपने सारे सुख भूलकर उसे खुशियां दे रहे हैं ! उसे भी अपने पापा को कभी दुःख नहीं देना है कभी भी नहीं ! एक्जाम हो गया और सपना को बैंक में p o की जब भी मिल गयी सारे सुख जीवन में लहलहाने लगे थे फिर भी राज की चाहत उसे तड़पाकर दुःख के सागर में धकेल देती आखिर इस दिल को कैसे समझाया जाए किस तरह से, दिल को समझा लेना इतना आसान तो नहीं है ! बैंक के अपने केबिन में बैठी हुई सपना चाय के सिप ले और रह रह कर राज की याद तड़पा रही थी , क्या राज ने उसके साथ सही किया ? क्या उसे इस तरह से जाना चाहिए था ? क्या कोई और रास्ता नहीं हो सकता था ? क्या प्रेम को जब चाहो तब ठुकरा दो और जब चाहो तब निभा लो , राज तुमने मुझे बेपनाह दर्द दिया है , ज़िंदगी भर का दर्द ! तभी उसे सामने से राज आता दिखा, अरे यह क्या है ? क्या वो सच में है या कोई भ्रम है सपना देखो मैं आ गया और इसी बैंक में तुम्हारे बराबर वाले केबिन में ? हाँ बिलकुल सच मैं इसलिए ही गया था वापस आकर फिर कभी न जाने के लिए….
दोनों की आँखों में मुस्कुराते आंसू बह निकले थे लेकिन अब निर्णय सपना के हाथ में था , जब उसके दुःख में राज शामिल नहीं हो सका तो अब उसकी ख़ुशी में उसे शामिल होना है या नहीं ? जो शख्श आँखों में आंसू और दिल में दर्द भर गया क्या जरुरी है की अब वो उसे ख़ुशी देगा सपना कुछ तो बोलो ? सपना को खामोश देखकर राज ने कहा ! सपना ने ऊँगली में पहनी अपनी एंगेजमेंट रिंग को अपनी उँगली में घुमाते हुए कहा लेकिन मेरा तो यहाँ से ट्रांसफर हो गया है ! राज कभी उसकी अंगूठी और कभी उसके मासूम चेहरे पर खिली हुई व्यंग्यपूर्ण मुस्कान को देखता रह गया !