यादों का जेठ
यादों का जेठ


जेठ का माह अभी एक पक्ष दूर था लेकिन चिलचिलाती धुप से मानो ये धरती कपोला भट्टी में परिवर्तित हो गयी हो हर जगह सिर्फ तपस, आग की बरखा, फाइनल सेमिस्टर का परीक्षा भी सर पे तांडव करने के लिए अपनी सभी कलाओं से लैस था बस थी नही तो हमारी तयारी, होती भी कैसी ? हम जी भी तो रहे थे अपने बनाए प्रेम के दूसरे संसार में, इंजीनियरिंग तो परिवार वालों के खुशी के लिए कर रहे थे और कर रहे थे एक दूसरे के संग जिंदगी के कुछ अमूल्य पल को बटोरने मे, वैसे ही जैसे निर्माणशील गोल गुबंद लाइब्रेरी के पास जामुन के पेड़ के नीचे छोटे छोटे बच्चे जामुन बटोरने संग भविष्य के लिए कुछ मीठे यादों को संयोज रहे थे । वहीं पेड़ के पास कार्नर पे शंकर शुद्ध इंजीनियरिंग ईटिंग शॉप था जहाँ हम संग घण्टो-घण्टो बीताया करते थे । अक्सर हम लगभग दो मिनट की मैग्गी से शुरुआत कर आधे घण्टे की पिज्जा तक जाते थे बीच का टाइम वन बॉय टू कट्टिंग चाय लेते थे जहां मैं उसके नाखून से लेकर बालों तक का वर्णन विद्यापति के श्रृंगार रस पदावली से करता था और वो मेरी बातों में खो अपने आप को नायिका समझ लेती थी और अपने प्यार को एलिज़ाबेथ बर्रेट
ब्राउनिंग की तरह प्यार को एक आयाम देना चाहती थी। प्रेम हमारा विश्वास था जिसे हम नाप सके, महसूस कर सके, जी सके जो हमारे लिए एक पागलपन ही था। लेकिन इस पागलपन की भी एक हद थी जो एक चरण बिंदु पे जा कर समाप्त हो गयी। वैसे मैंने अपने दिल में उसके लिए कालिदास का प्रेमालय तो बना लिया था लेकिन वो मेरी विद्योत्तमा नही बन पायी। जिसका परिणाम फाइनल परीक्षा के बाद रिजल्ट में आया ग्रेस मार्क्स ले के हम इंजीनियरिंग तो पास कर लिए लेकिन प्रेम विषय जो हमरा पहला धेय्य था उसमे हम पास नही हो पाए, उसकी शादी हो गयी और वो विश्वामित्र के जीवन में मेनका बन कर रह गयी सिर्फ समाज की रूढ़िवादिता के कारण और अन्ततः हम दोनों को ही प्रेम ग्रन्थ के एक विषय से ऑडिट लेना पड़ा। कहते
”प्रेम में दो मन का मेल होना जरुरी होता है दो तन का नही”
बस इसी आस के साथ शांत हार चुप बैठ गया की वो सदैव मेरी कहानी की रानी रहेगी। इसके बाद अपने मन से उसके यादों को दिल और दिमाग से खत्म करने के लिए क्लासिक की तरह उसको रेगुलर जला रहा था शायद इसलिए इसबार यादों का जेठ माह बहुत ज्यादा ही गर्म है।