वो सामने वाली खिड़की
वो सामने वाली खिड़की
आज पार्टी ख़त्म होते होते काफी देर हो गयी. नम्रता अपने थके कदमों को मन ही मन गिनती हुई अपने बेड तक जा पहुँची . पर ना जाने क्यूँ नीद उसकी आँखों से कोसो दूर थी. बहुत कोशिश के बाद भी जब नीदं नही आई तो वो उठकर फिर से उस खिड़की के पास जा पहुंची. ये कोई नई बात नही थी, अक्सर ही नम्रता रातों में एक सुकून भरी नींद को तलाशा करती. पर ना जाने कितने सालों से ये तलाश सिर्फ अकेले अपने बंगले के चारदीवारियों को गिनने में गुज़र जाती, और अंत में उसे उन दवाइयों का सहारा लेना ही पड़ता.
अगर देखा जाए तो कोई कमी नही थी उसकी ज़िन्दगी में. पति, बच्चे, पैसा, बंगला, गाड़ी सब तो था उसके पास बस एक चीज़ की कमी थी.. सुकून .
एक वक्त ऐसा भी था जब नम्रता अपने पूरे परिवार के साथ एक छोटे से घर में रहती थी. उनका वो सिंगल बेडरूम किराया का घर उस वक्त उसे बहुत खलता. बच्चे महंगे इंग्लिश स्कूल में नही जा पाते थे. स्कूटर पे बारिश के दिनों में कहीं जाना एक मुसीबत ही थी. पर आज उसके बच्चे विदेश में पढाई कर रहे है, पति का अपना कारोबार पैसे की बारिश कर रहा था. किसी चीज़ की ज़रुरत महसूस होने से पहले ही वो चीज़ हाज़िर हो जाती पर अब एक साथ बैठ कर उन चीज़ो का मज़ा लेने को कोई नहीं था.
कभी बारिश होती तो नम्रता अपने हांथों को बूंदों से भींगा कर वापस उस एहसास को महसूस करने की कोशिश करती जब वो और रमेश बच्चों को स्कूटर पे बैठाकर कहीं घूमने जाते ओर बारिश उन्हें अपने बूंदों से सराबोर कर जाती. तब रमेश बड़े प्यार से नम्रता को कहता “मेरी रानी आज पानी में गीली हो गयी” तब नम्रता चिड कर जवाब देती “रानी या नौकरानी?”
“एक दिन आएगा मैडम जी कि आप को मैं किसी चीज़ की कमी नहीं रहने दूंगा”.
पर नम्रता को कहाँ पता था कि वक्त ऐसे भी करवट बदल लेगा.
पति कारोबार में व्यस्त और बच्चे अपने ऐशो आराम में तो फिर सुकून कहाँ से मिलता. बच्चे बहुत दिनों बाद विदेश से वापस इंडिया आयें है पर उनके पास माँ के पास बैठने को पांच मिनट भी नही. ये पार्टी वार्टी तो बस दिखावा थी. पार्टी खत्म और सब अपनी अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त.
एक बार फिर नम्रता अपनी सुकून को तलाशती उस खिड़की के पास जा बैठी. जाने अनजाने ही वो खिड़की नम्रता को अक्सर ही अपने पास खींच लाती. वो ना जाने किसका घर है खिड़की के उस पार . नम्रता उस खिड़की से उस घर में झाँका करती थी. एक छोटा सा झोपडी नुमा घर. तीन बच्चे अक्सर ही वहां आधे कपड़ों में अजीब अजीब से खेल खेलते दिख जाया करते. कभी कोई पिल्ला तो कभी कोई पुरानी सी टायर. ये सब उनके खिलोने ही तो थे. वो रंगबिरंगी सारी पहेने उनकी माँ दिन भर ना जाने किन किन कामों में व्यस्त दिखती थी. तीनों बच्चे दिन भर माँ के पास ही मंडराते. पति रोज शाम में आते ही खाट लगा कर बैठ जाता है और बीच बीच में बच्चों को आवाजें देता रहता है.
ओह्ह एक दर्द सा होता है. काश..
चलो फिर सोने की कोशिश करती हूँ..
दिन भर काम करते करते सुनीता का बदन अब जवाब देने लगा था. तीन तीन बच्चों को संभालना और ऊपर से २ घर चौका बर्तन का काम. पति रोज सुबह कहीं न कहीं मजदूरी का काम खोजने निकल पड़ता. जब कभी किस्मत ने साथ दिया तो उसकी कमाई ठीक ठाक हो जाती पर कभी कभी उसे खाली हाँथ ही लौटना होता. जब भी पति जल्दी घर आ जाता तो सुनीता का मन घबड़ा जाता कि कहीं आज फिर खाली हाँथ तो वापस नही आ गया. बहुत मेहनत करने के बावजूद आमदनी इतनी नही थी कि घर की सारी ज़रूरतें पूरी हो सके. अब तो बस भगवान् ही सहारा था. बच्चे पेट भर खा सके इसलिए सुनीता ने भी काम शुरू कर दिया. एक मिनट भी आराम का नसीब नही था. बिस्तर पर पड़ते ही सुनीता बेसुध हो जाती. अचानक ही रोने की आवाज़ ने उसको नींद से जगा दिया. ५ साल का बेटा बैठा रो रहा था.
“क्या हो गया?” सुनीता ने नींद में ही पुछा.
“माँ भूख लगी है. दीदी ने आज रोटियां कम बनायी थीं .”
माँ का दिल बेचैन हो उठा. आज आटा कम था. ओह्ह! मैं फिर भूल गयी. अब क्या करूं?
अब इतनी रात में खाना कहाँ से दूँ? वो उठ कर अपने बदन को लगभग खींचते हुए घर के बाहार आ गयी .
आज पूरे दो दिनों से पति को कोई काम नही मिला , वो खाली हाँथ ही वापस आ जाता है. अब बारिश के दिनों में काम मिलना भी तो आसान नहीं.
“अब मैं कमाऊं तो पति और बच्चों को खिलाऊं , थोडा और मेहनत कर ले तो हमारी मुसीबत थोड़ी कम हो जाये. बारिश के दिन भी मुसीबत ही लेकर आते हैं. छत पे प्लास्टिक भी डालनी है पर मालकिन ने एडवांस देने से मना कर दिया. गुस्सा ही हो गयी.पिछले महीने भी तो एडवांस लिया था.” मन ही मन कुढती हुई सुनीता अपनी किस्मत को कोसने लगी.
सामने वाले बंगले की उस खिड़की से अब भी रौशनी आती हुयी दिख रही थी. शाम से काफी शोर शराबा मचा था वहाँ. उस खिड़की के पीछे ना जाने कितना कुछ आज खाने को होगा. शाम से फैली खाने की खुशबू तो उसके पास भी आई थी पर उसके किस्मत में ये सब कहाँ.
कितनी आसान होगी ज़िन्दगी उस खिड़की के पार जहाँ रोज़ रोटी को नही तरसना पड़ता होगा. हर एक ज़रुरत की चीज़ के ख्वाहिश में महीनों इंतज़ार नही करना होता होगा. बड़ी तमन्ना थी सुनीता की उस खिड़की के पीछे की ज़िन्दगी से एक लम्हा चुरा लेने की.
उस बंगले से आती वो रौशनी उसके घर की लाइटों का काम करते थे. काम करते करते वो अक्सर ही उस खिड़की से उस बंगले के अन्दर झाँका करते थी. ज्यादा कुछ देख पाना तो मुमकिन ना था पर हाँ एक दिन जरूर वो उस बंगले के अन्दर देखना चाहती थी. वो बड़ी बड़ी गाड़ियों में जाते हुए उनको निहारा करती. उनके महंगे चमकीले कपडे ऐसे लगते जैसे उन्होंने आसमान से सारे तारे तोड़ लिए हों..
वहां एक मैडम जी हैं जो उसे अक्सर ही दिख जाती है.
“ पता नही क्या सोचती होगी ? सोचना क्या है ?हमारी गरीबी का मन ही मन मज़ाक उड़ाती होगी. उसने कभी ऐसे गरीब लोग देखे नही होंगे. भगवान् ने उसकी सारी मुराद पूरी कर दी और हमारे हिस्से में न जाने क्यूँ सिर्फ इंतज़ार ही लिख दिया. जिसका पति इतने पैसे कमाता हो भला उस औरत को ज़िन्दगी में क्या कमी हो सकती है. ? “
“माँ कुछ मिला क्या? बड़ी भूख लगी है.” बेटे ने फिर आवाज़ दी.
“अभी आई “
“सच ही तो है ज़िन्दगी के सारे सुख और आराम उनके लिए ही तो हैं जिनके पास पैसा है. ये चाँद सितारे भी उनके ही हैं. चलो आज उनके गेट के बाहर पड़े प्लेट की जूठन ही उठालूँ... “
काश...