वो कहती थी “ज़िन्दगी खूबसूरत है

वो कहती थी “ज़िन्दगी खूबसूरत है

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उसे तो जीना आता था , कैसे मान लूँ मैं कि वो चली गयी है और वो भी खुदख़ुशी से। कहा तो करती थी वो कि, उसकी ज़िन्दगी उसकी अपनी मर्ज़ी से चलती है, लेकिन भगवान की मर्ज़ी के ऊपर अपनी मर्ज़ी को रखती ऐसी तो नहीं थी वो। जो लड़की रोज ज़िन्दगी की नयी परिभाषाएं रचती थी, वो ज़िन्दगी और उसे जीने के अर्थ को कैसे भूल सकती है। लोग कहते हैं, ज़िन्दगी के हर पल को ऐसे जियो जैसे वो आखिरी है, उसके उल्टा वो कहती, हर पल को ऐसे जियो जैसे वो पहला है| कोई कारण पूछ लेता तो कहती, तुम्हें कोई काम करने में जितना मज़ा पहली बार में आता है, उतना क्या आखिरी बार में आ सकता है और सामने वाले के कुछ बोलने से पहले ही बोल देती “नहीं आ सकता|” वो कहती थी कि “आखिरी बार में या तो उस काम को आखिरी बार करने का दुःख होगा या वो ख़ुशी कि चलो आखिरकार मुक्ति मिल रही है इस काम से”। ऐसी ही कई और बातें थी उसकी जो उसे दुनिया से अलग रखती थी। उसकी नज़रों से देखी गयी ज़िन्दगी हमारी नज़रों से देखी गयी ज़िन्दगी से बहुत अलग और बहुत ज़्यादा खूबसूरत थी , फिर मैंने तो उस ख़ूबसूरती को उसके साथ पिछले कई सालों से देखा और मुझे ये विश्वास नहीं होता कि वो अपनी बनायी खूबसूरत दुनिया को छोड़ कर चली गयी “इतने आसानी से|” वो कहती थी ये ज़िन्दगी , ये दुनिया ,सब कुछ इतना खूबसूरत है यहाँ, मैं आसानी से इसे छोड़के नहीं जाउंगी , भगवान लेने आएंगे तो पहले उनसे लड़ूंगी कि या तो ये ज़िन्दगी इतनी खूबसूरत नहीं बनानी थी या फिर मुझे लेने नहीं आना था। उसकी माँ कहा करती थी उससे कि मत किया कर इतनी बड़ी – बड़ी और अजीब बातें, जिस दिन तूँ खुद इन बातों से मुँह फेर लेगी ना तब लोग सवाल करेंगे और तेरे पास जवाब नहीं होंगे| आज हैं सवाल कई, लेकिन जिसके पास जवाब थे वो छोड़कर जा चुकी है। वो ऐसी थी कि जिसके सामने मुस्कुरा दे उसे भी ज़िन्दगी से प्यार होने लग जाये ठीक वैसे ही जैसे उसे था , उसकी मुस्कान थी ही इतनी निश्छल, कोई बनावट नहीं। उसकी मुस्कान उसके चेहरे के लिए कोई मुखौटा नहीं बल्कि आईना थी और उस आईने में उसके आलावा दूसरे भी उसकी सच्चाई को देख भाव के नाम पर उसके साथ सिर्फ दो ही भाव रहते थे या ख़ुशी या गुस्सा| अजीब तो लगता है, लेकिन उसे गुस्सा आता था उन लोगों पर, जो ज़िन्दगी को नहीं समझते थे , वो कहती थी हर झूठ….. हर फरेब….. हर धोखे का एक ही कारण है कि ज़िन्दगी अभी समझ ही नहीं आयी ह पिछले दो दिन में मैं जब भी उसे मिली उसे बार – बार गुनगुनाते हुए सुना–

“जीने के लिए सोचा ही नहीं दर्द सँभालने होंगे,

मुस्कुराएं तो मुस्कुराने के क़र्ज़ उतारने होंगे..." कल उसने कहा था मुझसे कि उसे ज़िन्दगी के फलसफों पर , ज़िन्दगी की सादगी पर , उसकी ख़ूबसूरती पर वहम होने लगा है। तब मुझे लगा कि जो मन ये सब सोच रहा है ना वो दार्शनिक मन है, साथ में सकारात्मकता और सच्चाई को समेटे हुए,शांत होने के बाद ये वहम दूर हो जायेगा और फिर से उसका मन कहेगा कि ज़िन्दगी खूबसूरत है और यही वो कहकर गयी हम सबको, लेकिन हमेशा से अलग अंदाज़ में| वो बोली ” ज़िन्दगी खूबसूरत है लेकिन इसमें ज्यादा मत उलझना और इस ख़ूबसूरती को देखने के चक्कर में गन्दगी देखना मत भूलना , कहीं ऐसा न हो कि तुम कमल को देखने में इतना खो जाओ कि तुम्हे वो कीचड़ ही ना दिखे जिसको छुपाने के लिए वो कमल वहां विराज खेर !! उसे जाना था , वो चली गयी। अफ़सोस बस ये रह गया कि जिसने जिंदा रहने तक सबको ज़िन्दगी के मायने समझाए, उसने दूसरों को एक भी मौका नहीं दिया, उसे ज़िन्दगी को समझाने का| मैं या शायद और भी कोई उसे कहना चाहते होंगे कि, ज़िन्दगी सिर्फ ख़ुशी नहीं देती , ये ज़िन्दगी दुःख भी देती है ताकि हम आने वाली ख़ुशी को और ज़्यादा महसूस कर सकें| हाँ ज़िन्दगी जीने के लिए दर्द को भी संभालकर रखना पड़ता है , मुस्कुराने का क़र्ज़ भी उतारना पड़ता है, लेकिन उस क़र्ज़ की कीमत इस ज़िन्दगी से ज्यादा नहीं है, क्योंकि इस दुनिया में चाहे जितने दुःख हो , जितने भी दर्द मिले , आखिर में तो ज़िन्दगी खूबसूरत ही रहनी है।


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