Tanu Bhargava

Inspirational

4.8  

Tanu Bhargava

Inspirational

उसकी सुरक्षित वापसी

उसकी सुरक्षित वापसी

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मैं एक ऐसी घटना का वर्णन यहां कर रही हूं जिसमें मेरे पति अरविंद ने मुख्य भूमिका निभाई थी। यह घटना हमारी विवाह-पूर्व - जुलाई 1994 की है। यह घटना एक रोमांचक कहानी से कम नहीं है और इस कहावत को चरितार्थ करती है 'Truth is stranger than Fiction' ट्रुथइज स्ट्रेंजर दैन फ़िक्शन । वह एक पढ़ी-लिखी संभ्रांत परिवार की युवती थी। उसके पिता एक सेवानिवृत्त राज-पत्रित अधिकारी थे तथा ससुराल पक्ष में श्वसुर एक सिविल कांट्रेक्टर थे और उसके पति व जेठ भी उन्हीं के संग कार्यरत थे। पति उसे बहुत चाहते थे और जेठ भी उसकी बौद्धिकता से प्रभावित होकर अंग्रेजी भाषा का और अधिक ज्ञान देने के लिए पढ़ाया करते थे। किंतु सासू मां से उसकी पटरी नहीं बैठी और वे उसे बहुदा जली-कटी सुनाया करती थी। वे उसे यह भी कहती थी कि वह दुनिया की सबसे खराब महिला है।

एक दोपहर जब सास बहू दोनों घर में अकेले थे तब दोनों में ऐसी ही खटपट हो गई और वह रोष में आकर तथा मौका देख कर घर से निकल पड़ी- एक अंजान डगर की ओर। वह ऑटो में बैठकर बस स्टैंड आ गई तथा सामने जो बस खड़ी थी उसीमें बैठ गई। वह बस जयपुर से दिल्ली जा रही थी। कंडक्टर से उसने दिल्ली का टिकट ले लिया।

अरविंद भी उसी बस में दादीजी की बरसी के अवसर पर चाचाजी के घर दिल्ली जा रहे थे।बरसी में सम्मिलित होने के लिए मम्मी पापा दो-तीन दिन पहले ही जा चुके थे और अरविंद 1 दिन पूर्व जा रहे थे। मिडवे पर जब गाड़ी रुकी तो सभी यात्री नीचे उतर गए। युवती अपने गंतव्य के बारे में चिंतातुर तो थी ही, उसने अरविंद में सज्जनता का अंश देख कर बात करने का साहस किया और पास आकर पूछने लगी आप क्या करते हैं? अरविंद ने बताया कि वह मालवीय इंजीनियरिंग कॉलेज जयपुर में बीटेक अंतिम वर्ष का छात्र है। इस पर युवती ने बताया कि उसकी बुआ के लड़के भी वहां बीटेक फाइनल ईयर के छात्र हैं तथा उसका नाम भी बताया। जब अरविंद ने कहा कि हां वह उसे जानते हैं तो युवती को 'डूबते को तिनके का सहारा मिला'। अंतराल के बाद जब सभी यात्री बस में बैठे तो युवती अरविंद के पास ही आकर बैठ गई। बस रवाना होने पर सभी यात्री कौतूहल भरी निगाहों से देख रहे थे कि जो युवक-युवती अब तक अंजान थे और अलग-अलग बैठे हुए थे, अब साथ बैठकर जा रहे हैं। युवती ने अपने घर से निकल आने की बात भी अरविंद से साझा की और दिल्ली निकट आने पर उसने पूछा क्या आपके चाचाजी एक रात्रि के लिए उसे अपने घर पर ठहरने देंगे? अरविंद ने मौन रह कर ही एक तरह से अपनी स्वीकृति दे दी। दोनों ऑटो में बैठ कर चाचा जी के घर आ गए। रात्रि के लगभग 9:00 बजे थे पापा और चाचाजी अगले दिन की पूजा का सामान लेने हेतु बाजार गए हुए थे। घर पर मम्मी और चाचीजी ही थी। अरविंद ऑटो वाले से रुकने को कह कर घर के अंदर गए और मम्मी से बोले कि आप जरा बाहर चलें और बाहर आकर कहा कि मम्मी आप इन्हें अंदर ले चलें। युवती को ड्राइंग रूम में बिठाकर अरविंद ने अंदर जाकर मम्मी व चाचीजी को उस युवती की सारी बातें बताई कि वह किस तरह घर में झगड़ा होने पर इस तरह बाहर निकल आई है। दोनों का ह्रदय युवती के लिए करुणा एवं उपकार की भावना से भर गया। मम्मी ने उसे अपने हाथ से शरबत पिलाया और कहा कि अब तुम स्नान आदि कर लो। स्नान से पूर्व उसने गले की सोने की चेन साथ में लाए हुए ₹600 तथा अपनी पढ़ाई की कॉपी मम्मी को संभाल के रखने को दे दी। जब पापा और चाचाजी बाजार से घर आए तो उन्हें सारी बातें बताई गईं जिससे उनका मन भी करुणा एवं उपकार की भावना से भर गया किंतु जो पहला दायित्व नजर आया वह यह था कि किसी तरह फोन पर उसके ससुराल में सूचना दे दी जाए। युवती ने बड़ी मुश्किल से फोन नंबर दिया और कहा कि आप केवल मेरे पति को यहां बुला दो। चाचा जी दिल्ली में पंजाब नेशनल बैंक के क्षेत्रीय प्रबंधक के पद पर थे। उन्होंने फोन पर उसके ससुर को अपना परिचय दिया और बताया कि किस तरह उनकी बहू, भतीजे अरविंद को बस में मिली थी और उसके साथ सुरक्षित मेरे घर पर आ गई है। उन्हें यह भी बताया कि उसकी बुआ का लड़का अरविंद के साथ ही इंजीनियरिंग कॉलेज का विद्यार्थी है। अब आप उसे लेने के लिए शीघ्र आ जाइए और अपना घर का पता व फोन नंबर भी बता दिया।

भोजन का समय होने पर युवती से भी भोजन करने का आग्रह किया जब वह नहीं मानी तब चाची जी ने उसके पास बैठकर एक-एक कौर बड़े प्यार से खिलाया। रात्रि को मम्मी ने उसे अपने साथ ही सुलाया, वह सोई तो नहीं किंतु मम्मी की छाती से चिपक कर रातभर रोती रही। मम्मी ने उसे ढांढस बंधाया की सब ठीक हो जाएगा।

प्रातः लगभग 6:00 बजे कॉल बेल बजी तो देखा की कार में से उसके ससुर, पति, जेठ व उसकी बुआ का लड़का जो अरविंद का सहपाठी था, उतरे हैं। उनको कमरे में बैठाया गया तथा चाय पान कराया गया। उधर युवती से मम्मी ने कहा कि बेटा तुम्हारे पति तुम्हें लेने आ गए हैं तुम नहा धोकर जलपान कर लो। मम्मी ने सब आगंतुकों को खूब खरी-खोटी भी सुनाई, पापा ने लिखित में उनसे सुपुर्दगीनामा यह लिखा कर लिया की वह युवती को अपने संरक्षण में ले जा रहे हैं तथा आइंदा उसकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखेंगे। विदाई के समय का दृश्य बड़ा कारुणिक था। युवती को कार में बैठाते समय चाची जी ने कहा कि बेटा तुम्हारा 1 दिन का पीहर यह भी रहा।

अगले दिन बरसी के बाद मम्मी पापा व अरविंद भी जयपुर लौट गए। 1 सप्ताह बाद युवती के माता-पिता घर पर अपना कृतज्ञता ज्ञापन करने आए और इस बात का आभार जताया कि उनकी पुत्री को अरविंद ने बचा लिया। लगभग 1 माह बाद जब मम्मी पापा अपने सांध्य-कालीन भ्रमण से लौट रहे थे तो उन्होंने दूर से ही देखा कि घर पर एक मोटरसाइकिल रुकी है जिस पर से एक युवक- युवती उतरे हैं। पास आकर देखा तो पाया कि यह वही युवती और उसका पति थे। दोनों हर्षोल्लास से भरे एक युगल दंपति थे और और उनसे मिलने आए थे।

मम्मी पापा को उस दिन एहसास हुआ कि उनके पुत्र अरविंद ने जीवन में कितना सार्थक कार्य किया। यदि उस दिन उसे अरविंद का साथ ना मिला होता तो दिल्ली में रात्रि के अंधकार में वह किस गर्त में जा गिरती- यह सोच कर आज भी मन कांप उठता है। 


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