तुम न आए......
तुम न आए......
“पापा नहीं जाएंगे तुम्हारे पिता जी से बात करने, एक 25 साल की लड़की को किसी बेरोजगार के हाथों कैसे सौंपेंगे?” फोन पर बात करती हुई सलोनी रो पड़ी।“ मैं जानती हूँ, तुम ज़रूर कुछ कर लोगे, बहुत विश्वास है तुम पर, मैं किसी हालात में तुम्हारे साथ रह लूँगी, पर अब पापा को नहीं समझा पा रही हूँ, वो ज़िद पे आड़े हैं।“
“प्रकाश कुछ तो कहो।“ सलोनी की आवाज़ में आंसुओं की घरघराहट थी।
प्रकाश सुन रहा था कि नहीं , उसे सलोनी कि सिसकियाँ सुनाई दे रहीं थीं कि नहीं, ये पता नहीं।
पर जब उसने अपनी ज़बान खोली तो सलोनी के पैरों से ज़मीन खिसक गई।
“ तुम्हारे पापा मेरे बाउजी से बात करने नहीं आएंगे तो क्या बाउजी तुम्हारे यहाँ जाएंगे ? ऐसा भी होता है क्या? जितना तुम अपने पापा का सम्मान करती हो उतना ही मेरे लिए मेरे बाउजी का मान है।“ और उसने फोन काट दिया।
सलोनी को मानो सदमा सा लग गया । भला प्रकाश ऐसी बातें कैसे कर सकता था। इतने दिनों से वो जो भविष्य के सुनहरे सपने सलोनी को दिखा रहा था, अचानक किस दंभ ने उसके आत्म स्वाभिमान को ठेस पहुंचाया कि वर्तमान के इतने डरावने दृश्य से दर्शन करा दिया। कहाँ चूक रह गई थी सलोनी से ?
अरे सलोनी ने तो अपने पिता कि रूढ़िवादी सोच की परवाह न करते हुए भी उनसे सीधे प्रकाश के बारे में बात की थी। उस दिन कितना क्रोधित हुए थे उसके पिता। अपने पिता की सबसे लाड़ली और आज्ञाकारी संतान से उन्हें यह उम्मीद नहीं थी। कई दिनों तक बाप - बेटी में बात तक नहीं हुई थी। और एक दिन सीधे उन्होंने कह दिया कि मैं एक बेरोजगार लड़के के घर तुम्हारा रिश्ता लेकर खुद नहीं जाऊंगा, अगर उसमें हिम्मत है तो वो खुद आए और तुम्हारी ज़िम्मेदारी का आश्वासन दे, तो मैं सोचूंगा।
मगर प्रकाश ने तो आज आगे कुछ कहने का मौका तक नहीं दिया, आखिर उसे कोई फर्क भी क्यों पड़ता, उसने तो अपने घर वालों से अपने और सलोनी के रिश्ते की सच्चाई तक से अवगत नहीं कराया था ।
एक हफ्ते तक उनके बीच कोई बात नहीं हुई । सलोनी ने खाना-पीना तक छोड़ दिया था। घरवाले उसकी ये हालत समझ नहीं पा रहे थे। हॉस्पिटल तक जाने की नौबत आ गई थी। माँ का दिल तो सब जानता था, माँ ने सलोनी को समझाया कि जो वह चाहती है , उसके पापा नहीं होने देंगे, वो कभी अपनी अकड़ नहीं छोड़ेंगे। माँ ने सलोनी से कहा –“ जिस साधारण रूप के कारण तुझे कितने लड़के नापसंद कर के गए, उसके साथ इतना खूबसूरत नौजवान भला प्रेम पाश में क्यों फँसेगा? कभी सोचा है तूने? वो ज़रूर किसी और फायदे से तुम्हारे साथ जुड़ा है।“
सलोनी जानती थी कि माँ उसे जानबूझकर प्रकाश के खिलाफ भड़का रही है। मगर ये भी सच था कि सलोनी ने जितना प्रेम प्रकाश से किया था , उससे कहीं ज़्यादा वह अपने पिता से करती थी। बचपन से अपने पिता को वह अपना रोल मॉडल मानती थी। वो प्रकाश में हर वो खूबी देखती थी जो उसके पिता में थी। प्रकाश जितना देखने में आकर्षक था, उतना ही वह लोगों का चहेता था । वह हर समय लोगों की मदद करने को तैयार रहता था, जैसे कि उसके पिता थे। सलोनी के पिता कि तरह ही प्रकाश का सामाजिक दायरा भी काफ़ी बड़ा था। हरेक व्यक्ति जो उससे मिलता , उसके हंसमुख स्वभाव से दीवाना हो जाता था। वह नौकरी के लिए बड़े लग्न से प्रयासरत था , मगर शायद अब तक उसका वक्त नहीं आया था। एक मेहनती और जिम्मेदार इंसान भला सलोनी को क्यों नहीं भाता। सलोनी तो प्रकाश में अपने पिता की ही छवि देखती थी, इसीलिए वह उसकी तरफ खींचती चली गई थी। मगर सलोनी के पिता उसकी भावनाओं को समझना ही नहीं चाहते थे। अपने सोश्ल स्टेटस के आगे उनके लिए सालोनी की खुशियों का कोई मोल न था।
हफ्ते बाद जब सलोनी ने प्रकाश को फोन लगाया, सब कुछ सामान्य सा था, उसने अपनी तबीयत के बारे में प्रकाश को कुछ नहीं बताया था। सलोनी ने बताया कि उसके पापा उसके लिए रिश्ता ढूंढ रहे हैं । मगर प्रकाश ने उसे इस विषय पर कुछ नहीं कहा । उसने बताया कि उसे किसी इंटरव्यू और एक्जाम के सिलसिले में दिल्ली जाना है और वह कुछ दिनों तक उससे कांटैक्ट में नहीं रहेगा।
कई दिनों तक उनके बीच कोई बात न हुई। सलोनी का रिश्ता तय हुआ और शादी के दिन नजदीक आ गए। सलोनी ने कई बार प्रकाश को कांटैक्ट करने की कोशिश की । मगर कॉल अनरीचबल बता रहा था, उसने कई मैसेज भेजे , मगर कोई उत्तर नहीं आया। सलोनी अब भी इस इंतज़ार में थी कि प्रकाश कभी भी आकर उसके लिए समाज से लड़ बैठेगा । वह उसके पिता कि मना लेगा।
शादी का दिन सलोनी के इंतज़ार का आखिरी दिन था। वो बार बार अपने मन से यही सवाल कर रही थी-“ तुम न आए ..... , तुम क्यों न आए....?
शादी के अगले दिन विदाई के वक्त सलोनी को पता चला कि प्रकाश आया था.......... फूलों का गुलदस्ता लेकर.......
