STORYMIRROR

SHALINI SINGH

Drama

3  

SHALINI SINGH

Drama

तुम जवाब जानती हो!

तुम जवाब जानती हो!

3 mins
243

" तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी ?", लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है," आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"

उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जबाब का इंतजार हो उसे।जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या ?

" संदली !, क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं ?", प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।

" जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।", मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।

" कैसी हो ?क्या चल रहा है आजकल ? ", जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।

" बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज- पढ़ाई....", संदली ने जबाब दिया।" आप सुनाइये।"" बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।", चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।

" अरे वाह ! क्या सीख रही है इन दिनों ?", संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई।

(युँ बातों की गहराई जानने के लिए अक्सर कुछ ना समझने का ढोंग भी एक कहानीकार की प्रतिभा का स्वरूप है !)

"बेटी, मेरी समझ से एक आदमी की सिखते रहने की न कोई उम्र है न सीमा तो बस हिंदी साहित्य से निकलकर आजकल मै अंग्रेजी पोएट्री स्लैम का हिस्सा बन रही हूं ताकि आज की पीढी़ को भी अपने अनुभव बखुबी बयां कर सकुं !

संदली अचानक ही गहन चिंतन में डुब गई, उसके चेहरे के भाव, अतित के कुछ पन्ने उकेर रहे थे !

"बाबा, मुझे कॉलेज मे प्रवेश मिल गया है, समस्या ये है कि आपको तो पता ही है कि मेरि साहित्य के प्रति अभिरूचि भाषा की सरहद तय नहीं कर पाती है ! "

"क्या हुआ बेटी" ,जानकी के सवाल पर संदली को याद आया अब बाबा वहां नहीं है, वो हो भी कैसे सकते हैं !

"जिंदगी तजुरबों का सार है, हम रोज कुछ नया पाते हैं और कुछ पुराना छोड़ जाते हैं, बेहतर है यह है कि हम किसी एक अनुभव को अपनी जिंदगी ना बना लें !" जानकी ने संदली के चेहरे के भाव परख लिए थे !

"बेटा, जज्बात बयां करने के तरीकों से ज्यादा महत्वपूर्ण है जज्बातों की गहराई, भाषा तो बस एक माध्यम है, और मुझे गर्व है मेरी बेटी को माध्यम और मर्म के बीच का फ़र्क पता है ! " पिताजी की ये बात संदली के जह्न मे आज भी ताज़ा है वह मुस्कराई इस बार बिना दिखावट के !

जानकी और संदली के बाबा एक ही प्रकाशन के लिए काम करते थे, जानकी हिंदी कहानीकार थी और उनकी रचनाएं आम जनता की समझ में मनोरंजन का ज़रिया, जबकी उनमें छिपे भाव एक बुद्धजीवि के लिए प्रेरणा स्त्रोत; संदली के पिताजी तथ्यों के फनकार थे जिनकी बातों का पता नहीं पर भाषा हर किसी को समझ आती थी !

उस दिन उन्होंने अपनी सरल भाषा में कुछ शब्द झाप दिए थे माध्यम और मर्म की पैरवी पे, किसे पता था उनकी यह सोच संदली के जीवन का सबब बन जाएगी !

"उस रात बाबा घर नहीं लौटे !" संदली अब खुद को रोक न पाई और जानकी की गोद में सिर ऱख रो पड़ी !

" आंटी, क्या बाबा की सोच गलत थी, क्या मर्म का महत्व माध्यम के आधारहीन है ? क्या आप सबके होते हुए भी मै अकेली हूँ ? "

जानकी के पास इन सवालों का कोई सीधा जवाब न था, हालांकी अंग्रेजी पोएट्री स्लैम में जाने का उसका जज्बा दुगना हो चुका था !

संदली के सिर पर हाथ फेरते हुए जानकी ने कहा, "बेटी तुम जवाब जानती हो !"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama