Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Mani Pritam

Thriller

4  

Mani Pritam

Thriller

टूटती हुई मूरत

टूटती हुई मूरत

5 mins
115


आज फिर पुरे चार साल बाद सुखे पत्ते की सर्सराहट उतपन्न हुई थी तब मुझे एहसास हुआ की वो आई है। "आज कुछ खास है क्या ?नहीं तो इतने सालों बाद उसे मेरी याद क्यूं आती। मैं महसूस कर पा रहा हू ,इस वक़्त वो दबे पाव आकर मेरे सामने खड़ी है और मैं तब तक अपनी आँखे नहीं खोलूंगा जब तक की वो मुझे पुकारेगी नहीं। "अरे आज ये कैसी उदासी है उसकी आंखो मे जिसे मैंं समझ नहीं पा रहा ,बस सूरज की किरणो में चमकते उसके आँसू मुझे बेचैन कर रहे है। लगता है आज बहुत सी शिकायत उसके पास मुझसे करने कोलेकिन वो कहे तो सही कुछ कहती ही नहीं। । जानते है मैं क्या सोच रहा हूँ कहा रही वो इतने साल,पिछ्ले दफ्फे जब यहा आई थी तो कोई और भी था उसके साथ ,जो मुझसे मिलने नहीं बस इसके साथ भर आया था । जब तक वो मेरे सामने खड़ी रही थी। तब तक मैंं उसी इन्सान को एकटक देखता रहा था ,जाना पहचाना सा था वो ""ओह्ह क्या करू माफ़ कीजियेगा झूठ बोलना मेरी आदत नहीं। सच तो ये है की मैं उस इन्सान को अच्छी तरह से जानता हू "जॉन कहते थे सभी उसे। गूड़विल जॉन। ये भी तो उसे इसी नाम से पुकारती है।     

एक बात पुछूआप ये नहीं समझ पा रहे है ना की इस औरत से मेरा क्या रिश्ता है ,हाँ इसी औरत से जो मेरी नजरो के सामने सर को झुकाये खड़ी है ये मेरी माँ है "कैरोलिन "। इसी नाम से पुकारता हूँ मैं इसे। जाने क्यूं कभी माँ नहीं कह पाया वैसे मेरा नाम है "माईक माईक बेन्जमीन। मैं वही माईक हूँ। जिसकी माँ को उससे ये शिकायत है की मैं उसे अचानक ही क्यूं छोड़ गया था,हाँ इस औरत को मैंने मेरे अपनो से अबतक यही कहते तो सुना है। अब भला आप ही कहिये क्या कोई बेटा अपनी माँ से जुदा होना चाहेगा और वो भी बिना बताये। कभी कभी तो हंसी आ जाती है की क्या सच मे इसे नहीं पता की उस रात मेरे साथ क्या हुआ था ये भी तो थी उस रात मेरे कमरे मे अपने गूड्विल जॉन क साथ ""जब उसने एक चौदह साल के लड़के की सांसो को रोक दिया था। "तकिये से मुह दबा कर" और तब मेरे बेजान पड़े शरीर के पास आकर इसने यानी मेरी माँ ने मुझ से कहा था। । ।

मेरी माँ ने धीरे से मुझसे कहा था, "मुझे माफ़ करना मेरे लाल मैं तुम्हे कैंसर से हर रोज थोड़ा थोड़ा मरते नहीं देख सकती। ,'ओह माँ '

    तुम नहीं जानती, जब तुम मुझसे ऐसा कह रही थी ना   

  तब मैं भी तुमसे कुछ कहने की कोशिश कर रहा था, माँ तुम मुझसे हमेशा पूछती थी ना की जब मैं अपने पिगी बैंक मे पैसे नहीं रखता तो फिर भी उसे अपने सिने से क्यूं लगाये रखता हूँ क्युंकि मैं उसके अंदर अपनी उन चिठीयों को रखता हूँ जो मैंने हर रोज लिखे है,' तुम्हारे लिये। तबसे जब से मुझे ये पता चला की मुझे कैंसर हैः हर रोज तुमसे अलग हो जाने की बेरहम तकलिफ मे,हर रोज तुम्हारे साथ अपना एक एक पल बिताये जाने की अविरल चाह मे। सोचता था,हर पल तुम्हारे साथ कैसे रहू क्युंकि जब भी तुम मुझे अकेला छोड़ती थी "मुझे बेहद कष्ट होता था माँ। सोचा करता कोई अपने आप को भला अकेला कैसे छोड़ सकता है ,क्युंकि मुझमे मेरा क्या है माँ ?

मेरे मुझ से लेकर तुम्हारे तुम तक, सब तुम्हरा ही तो है। उस इन्सान को तो बस तुम ही जानती हो जिसका मैं अंश हूँ क्युंकि ना तो मैंने उस इन्सान के बारे मे तुमसे कुछ पूछना चाहा और ना ही तुमने कभी उसके बारे मे बात की कोशिश की। खैर छोड़ो ''उसके बारे मे क्या सोचना, जिसे कभी देखा ही नहीं 'लेकिन एक सच कहू माँ 'तू जिसे भी कहती ना ,मैं उसे अपना पिता मान लेता" भले ही वो "गूड्विल जॉन" ही क्यूं ना हो लेकिन मैं जब तक कुछ मानता तुम मुझे आजाद कर चुकी थी।

" अब तुम मेरे सामने खड़ी हो अकेली,अपने गुनाहो के बोझ लिये इस विराने मे जहाँ मेरा शरीर दफन है। ,जबकी सच तो ये है की मैं तुम्हारे सामने कब से बैठा हूँचुपचाप। जिसे तुम महसूस तक नहीं कर पाओगी। 'ये सब सोचते -सोचते अचानक ही मेरी नज़र उसके चेहरे की तरफ चली गयी है ,वो अब भी रोए जा रही है। उसके आंखो के आँसू रुक नहीं रहे है। ,जाने क्यूं वो अपनी नजरो को झुकाये चुपचाप ऐसे मुड़ गयी है जैसे सच के आलवा भी कुछ जानती हो। ;'"सोचता हुँ अब मैं भी जाकर सो जाता हूँ। "लेकिन'' लेकिन एक शोर सुनाई दे रही है एक मौन शोर। । लगता है कोई नया मेहमान आया है इस "कब्रगाह मे"।

हाँ, मैं सही हूँ । कुछ लोग एक ताबूत के साथ इस कब्रिस्तान मे दाखिल हो रहे है। जबकी कैरोलीन ,इसाह मसीह के उस टूटी हुई मुर्ति के पास जाते जाते रुक गयी है जो कब्रिस्तान के मुख्य दरवाजे क पास है। मेरी माँ मेरी नजरो के सामने से दूर होती जा रही है,कैसे बताऊँ 'कैसे बताऊं उसे की 'मैं यहाँ हुँ 'बस वो मुझे देख नहीं पा रही । जि चहता है की जाकर उसे कह दू माँ तुम हर रोज यहा क्यूं नहीं आती। "कह दू  'कह दू क्या? हाँ जाता हुँ; ।  ये क्या? लगता है मैंने अपने पैर से ठोकर मारकर कुछ तोड़ दिया है। ये येये तो मेरा पिगी बैंक है"जिसमें मैंने अपनी चिठिया रखी थी::"मेरी चिठिया बिखर गयी है और तितर- बितर

होकर इधर -उधर उड़ रही है। ये यहाँ कैसे आ पहुँची?कौन लाया है इन्हे?

तभी मेरी नज़र करोलिन की ओर गयी है। मैं हैरान हूँ वह मुझे देख सकती है ,वो मुझे ही देख रही हैएकटक। "भीड़ कब्रगाह मे दाखिल हो चुकी है वे लोग ताबूत को उठाये मेरी ही कब्र की ओर बढते चले आ रहे है। उस भीड़ मे मैं किसी को नहीं जानता सिवाय "जॉन" के ,जो फुट-फुट कर रो रहा है। मेरी आँखे दो दृश्य एक साथ देख रही है । "पहली ,करोलिन' जो मुझे देख कर फुट-फुट कर रोए जा रही है और दुसरी ताबूत को कन्धे पर  उठाये कुछ लोग मेरी ओर बढ़ रहे है।

 तभी बेपरवाह हवा के एक झोके ने उस चिठी के परतो को खोल कर रख दिया है जिस पर साफ-साफ लिखा है। "मुझे माइक बेन्जमीन की कब्र मे दफनाना जॉन "मुझे मेरे बेटे की कब्र मे दफनाना •••••••••••••••••••••••समाप्त


Rate this content
Log in

More hindi story from Mani Pritam

Similar hindi story from Thriller