The Stamp Paper Scam, Real Story by Jayant Tinaikar, on Telgi's takedown & unveiling the scam of ₹30,000 Cr. READ NOW
The Stamp Paper Scam, Real Story by Jayant Tinaikar, on Telgi's takedown & unveiling the scam of ₹30,000 Cr. READ NOW

Mani Pritam

Thriller

4  

Mani Pritam

Thriller

गुलाब का एक बेरंग फूल भाग-2

गुलाब का एक बेरंग फूल भाग-2

4 mins
303


मैंने एक नजर भर पूरे बगीचे को देखा"कहीं कुछ नहीं था।

सिवाए बर्फ की सफेद चादर के, जिन पर पड़े मेरे पैरों के निशान धीरे-धीरे ही सही, अब ऐसे मिट रहे थे। 

"जैसे मैं यहां आई ही नहीं थी"

 लेकिन उस दिन वह भी तो नहीं आया था ।कम से कम मेरी आंखों के सामने तो नहीं , जिस दिन मैं तेज कदमों से चलते हुए इस बगीचे में दाखिल हुई थी

" जिस दिन मुझे डॉक्टरेट की उपाधि मिली थी"

" जिस दिन मिर्जा, मुझे अपने घर वालों से मिलाने वाले थे।

जिस दिन वह मेरे साथ नहीं आ पाए थे ," मुझे अकेले आना पड़ा था" "जिस दिन मेरा इंतजार बेहद लंबा होने वाला था "

और जिसकी तारीख थी 23 जनवरी 1990 ।उसी दिन मैंने उस इंसान को इस बेंच पर बैठे देखा था, उसके हाथों में गुलाब के खूबसूरत फूलों का गुच्छा भी था। लेकिन वह फूल मुरझा गए थे शायद"

 जिसे वह अपनी हाथों में लिए, बेसब्री से किसी का इन्तजार कर रहा था।

 साथ ही साथ कुछ बुदबुदा भी रहा था। मानो किसी से पहली बार मिलने वाला हो और उसकी तैयारी कर रहा हो। मैं उसे नजरअंदाज करते हुए बेंच के इस कोने पर आकर बैठ गई थी।" मिर्जा के इंतजार में"

 जहाँ इतने सालों बाद,आज एक बार फिर आकर बैठी हूं ।

लेकिन आज इंतजार मिर्जा का नहीं है "।

"है तो बस उसी का ,जिसने मुझसे अपनी पहली और आखिरी मुलाकात के अंत में कहा था" मुझे पता है एक दिन तुम मुझे ढूंढते हुए जरूर आओगी और मैं तुम्हें उस दिन यही मिलूंगा।"इसी बेंच पर,,,,गुलाब के इन्हीं बेरंग फूलों में"। 

जबकि मैं साफ-साफ देख सकती थी गुलाब के फूलों का रंग लाल था ।जिसे उसने अपने हाथों में पकड़ रखा था ।और आज जब देख रही हूं तो सिवाए सुनेपन के ,इस बगीचे में कुछ नहीं है एक पंछी भी नहीं। "है तो बस कपकपाती हुई हवाओं की सर्सराहट और खून जमा देने वाली सर्द, जो मुझे अंदर तक कपां रही थी ।

 जिसे मै पिछले तीस सालों से अपने अंदर महसूस कर रही हूं।"अकेली"

 लेकिन इस सुनेपन और इन कापती हुई हवाओं की सरसराहट के बीच कुछ और भी है, जो घुला सा लगता है।" एक डर" और "एक गुमनाम सी खामोशी"

" मैं बेंच के इस सिरे पर बैठी हुई, बेंच के उस हिस्से को देख रही हूं"

जिस पर एक पत्ता पेड़ से टूटकर नाचता हुआ ,अभी-अभी आ गिरा है। "वैसे ही जैसे, आज से पूरे तीस साल पहले"एक पत्ता "टूट कर जमीन पर आ गिरा था ।

पत्ता ज्यादा बड़ा नहीं था, लेकिन उस खामोशी में इतना बड़ा जरूर लग रहा था, जिससे मैं अपनी नजरें नहीं हटा सकी थी।

तभी अचानक "वह"उठ खड़ा हुआ था ।और उस टूटे हुए पत्ते को अपने पैरों से कुचल कर आगे जाकर खड़ा हो गया था।'और मैं' बस उसे ही देखती जा रही थी।

" कुछ पल के लिए ही सही लेकिन उस पल लगा था। कि जैसे "मिर्जा " मेरे अंदर कहीं नहीं थे। सबकुछ जैसे खाली था। तभी उसकी एक आवाज ने मुझे टोका था।

" तुम्हारी आंखें बेहद प्यारी हैं शायद यह तुम नहीं जानती" एक अजनबी से ऐसी बातों के लिए मैं तैयार नहीं थी ।मैं कुछ कहती उससे पहले ही उसने परिस्थितियों को संभालते हुए कहा,, माफ कीजिएगा "आप मुझे नहीं जानती! लेकिन मेरा इरादा आपको परेशान करने का बिल्कुल नहीं है, मैं तो यह सब उसे कहना चाहता हूं ,जो मुझसे मिलने आने वाली है।फिर उसने अपने आप में बुदबुदाते हुए कहा "न जाने कहां चली गई है, जबकि उसे पता है की मैं परेशान हो जाऊंगा "खैर "आती ही होगी। इतना कहकर वह बुदबुदाता हुआ बगीचे के मेन गेट की तरफ आगे बढ़ गया था,और मैं टुकुर- टुकुर गुलाब के मुरझाए हुए उन फूलों को देखती रही थी ,जो इस बेंच पर ऐसे पड़े थे ,मानो सदियों से वही रखे हो। 

कुछ देर बाद जब वह पीछे मुड़ा तो उसके चेहरे पर परेशानी की कुछ बूंद साफ झलक रही थी।

उसने आते ही कहा "मुझे गुलाब के फूल अच्छे नहीं लगते,लेकिन सुधा को बेहद अच्छे लगते हैं "।

" गुलाब या लाल गुलाब क्या अच्छा नहीं लगता? मैं अचानक ही पूछ पड़ी थी फिर मेरी नजरें उसके होठों पर जाकर ऐसे ठहर गई थी जैसे मै उसके बोलने का इंतजार कर रही होऊ ।

फूल"गुलाब का लाल फूल" अच्छा नहीं लगता,,,,उसने सपाट शब्दों में कहा था ।

" ऐसा क्यों" बिना किसी दिलचस्पी के ही मैंने पूछ भर लिया था। पर कुछ पल बाद ही मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह मेरी बेरुखी को भाप गया हो।"

जारी है


Rate this content
Log in

More hindi story from Mani Pritam

Similar hindi story from Thriller