Renu Gupta

Drama Inspirational

5.0  

Renu Gupta

Drama Inspirational

तपस्या

तपस्या

15 mins
719


"मौली... पकौड़े थोड़े और करारे सिकवाओ और थोड़ी चटनी भी और दो इधर।" मौली के पति राजन ने उसे आवाज लगाई।

 "मम्मा, मुझे पालक के पकौड़े खाने हैं," मौली का बेटा बोल पड़ा।

 हाँ भई मौली, हमारे प्रिंस के लिए पालक के पकौड़े बनवाओ। और हमारी बड़ी लाड़ो की क्या फरमाइश हैI "मम्मा, मम्मा, मुझे तो आज आपके हाथ का हलुआ खाना है। इतने दिन हो गए, आपने हलुआ नहीं बनाया।" मौली की बड़ी बेटी नव्या बोल पड़ी।

"हाँ भई मम्मा, आज तो हलुआ भी बनवा ही दो। और हमारी नन्ही परी का क्या खाने का मूड है भई?" राजन ने लडिय़ाते हुए सबसे छोटी परी से पूछा और परी ने तुतलाते हुए जवाब दिया, "मम्मा, मम्मा, मुझे तो ठंडा ठंडा छेक पीना है।’‘ अरे भई, मौली हमारी लाडली को मैंगो शेक पीना है, चलो भई, सबके लिए मैंगो शेक भी बनवा दो लगे हाथों। और अब तुम भी यहाँ बैठकर तसल्ली से पकौड़े खा लो। कब से एक पाँव पर हमारी फरमाइशें पूरी करने में लगी हुई हो।

"हाँ जी, आती हूँ, बस जरा रामदीन को बता दूँ क्या करना है," प्रसन्न मनसे मौली बोली थी।

वह बेहद खुश थी। राजन चहकते हुए बच्चों से लडिय़ा रहे थे। यही तो चाहिए था उसे। राजन और बच्चों की खिलखिलाहट से गूँजता उसका छोटा-सा आशियाना। लेकिन कितने तप-तपस्या के बाद पूरी हुई थी उसकी यह दिली ख्वाहिश। खा-पीकर बच्चे अपने-अपने कमरों में जा चुके थे। राजन स्टडी में अपने काम में व्यस्त हो गए थे। और अनायास ही वह सोचने लगी, दस साल, पूरे दस साल लगे थे उसे अपने जीवन के उलझे छोर सुलझाने में। और बरबस ही बीते दिनों की कसैली यादों के सैलाब में वह एक तिनके की मानिंद बहती चली गई थी।

राजन से जब उसकी शादी हुई थी, तब वह कितनी खुश थी। ऊंचे, नामी, बेहद रईस खानदान के पुरखों के जमे-जमाए जूट के व्यापार का स्मार्ट, सुदर्शन वारिस राजन हर कुँवारी लड़की के दिल की धडक़न था। न जाने उसे कैसी लड़की की तलाश थी? वह अपनी बहन से कहता, "मुझे तो ऐसी लड़की की चाहत है, जिसे देखते ही मेरे दिल में घंटी खनके, हाँ यही है वह, जिसके साथ मुझे अपनी ज़िंदगी गुजारनी है।" न जाने कितनी लड़कियों के रिश्ते ठुकरा चुका था वह अभी उस एक की तमन्ना में। मौली वह भाग्यशाली लड़की थी, जिसका अपूर्व भोला-भाला मासूम सौंदर्य देखते ही उसके मन में तरंग उठी थी, हाँ, यही वह है जिसके चेहरे को वह दिन-रात, सोते-जागते, अपने सामने देखना चाहता थाI मौली थी भी लाखों में एक। गोरा चिट्टा, संदली रंग और तीखे-मोहक नाक-नक्श। तनिक मुस्कुराती तो उसके चेहरे पर पड़े मोहक डिंपल्स से नजरें हटाए नहीं हटतीं।

नियत वक्त पर मौली भव्य विवाह समारोह के बाद दुल्हन बन पायल छनकाती हुई राजन के विशालकाय बंगले में आ गई थी। 

विवाह के बाद पूरा एक माह एक खुशनुमा ख्वाब की मानिंद गुजरा। हनीमून के लिए दोनों ड्रीम सिटी पैरिस गए थे। पैरिस के हसीन शहर में एक दूसरे के प्रति प्यार की सौ-सौ कसमें खाकर एक दूसरे के अंतरंग सान्निध्य में करीब दस दिन बिता मौली और राजन मगन मन घर वापिस लौटे थे। मौली ने राजन की गृहस्थी संभाली थी।

युवा मौली के आकर्षण पाश में बंधा राजन महीने दो महीने तो वक्त पर घर आ जाता और मौली को समय देता। लेकिन समय बीतने के साथ मौली के साथ वक्त गुजारने की राजन की चाहत की लौ मंदी पड़ने लगी थी।

राजन स्वभाव से एक हार्डकोर वर्कोहलिक था। अपने काम का शिद्दत का जुनून था उसे, जिसमें डूब कर उसे दीन-दुनिया का होश तक न रहता।

 साल बीतते-बीतते मौली उसके जीवन की प्राथमिकताओं की लिस्ट में बहुत निचले पायदान पर आ गई थी। सो उसका रुटीन बहुत जल्दी विवाह से पहले के ढर्रे पर आ चुका था।

सुबह नौ बजे जो वह घर से निकलता तो दोपहर के खाने पर मात्र पौन-एक घंटे के लिए घर में घुसता। और पूरे समय मोबाइल से चिपका रहता। मौली की तरफ तो आँख उठाकर भी नहीं देखता। हाँ-हूँ के सिवाय उससे कुछ बातें न करता।

मौली एक भरे-पूरे परिवार की पाँच भाई -बहनों में सबसे छोटी घर भर की लाडली बेटी थी। बेहद अल्हड़, शोख, बातूनी और मजाकिया स्वभाव की चुलबुली मौली अपने मायके की रौनक थी। बात करने बैठती तो अपनी दिलचस्प बातों की ऐसी मनभावन चुटीली फुलझड़ियाँ छोड़ती कि हँसी का समां बंध जाता। लेकिन विवाह के बाद राजन के तीन मंजिले विशाल बंगले में अकेले नौकरों की पलटन के साथ उसका दम घुटकर रह जाता। शादी कर दूसरे शहर में आई थी तो इस शहर में कोई सहेली भी न थी, जिससे बातें कर वह जी हल्का कर सके। बस फोन पर माता-पिता, भाई-बहनों और सहेलियों से बातें कर लिया करती।         

साल बीतते-बीतते एक नन्ही-सी प्यारी-सी गदबदी गुडिय़ा उसकी गोद में आ गई थी। अब उसकी देखभाल में उसका अधिकांश समय बीतने लगा था। लेकिन पति की अपने प्रति उदासीनता और व्यापार के काम के प्रति उसकी गंभीर प्रतिबद्धता बदस्तूर दिनों-दिन बढ़ती गई थी, जो उसे भीतर ही भीतर खाए डालती। लाख कोशिश करती कि राजन उसे अपना समय दे, उससे हँसी-चुहल करे, उससे अपने सुख-दुख साझा करे। सही मायनों में ज़िंदगी के सफर में हमराज बन उसके साथ कदम से कदम मिला कर चले। लेकिन राजन न जाने किस मिट्टी का बना था। वह मौली को तनिक अटेंशन न देता। कभी नहीं सोचता कि जो लड़की सिर्फ और सिर्फ उसके लिए अपना घर-बार, माता-पिता सब कुछ छोडक़र आई है, उसकी हँसी-खुशी का दारोमदार उसके ऊपर है, उसकी उम्मीदों, अपेक्षाओं पर खरा उतरना उसका महत दायित्व है।

बस गनीमत यह थी कि राजन अपनी बेटी को बहुत चाहता था। उसकी जान थी बेटी में। जब भी घर पर रहता, नन्ही बिटिया को ढेर दुलार करता।

यूँ पति के दो मीठे बोल और साहचर्य को तरसती मौली की ज़िंदगी पति के ठंडे और शुष्क व्यवहार के साथ खिंचती जा रही थी। अभी कुछ दिनों से राजन की एक और आदत उसके लिए बहुत दु:खदाई बन गई थी। विवाह के कुछ ही समय बाद राजन शाम को काम से घर लौटने के बाद ड्रिंक करने लगा था। उसके कुछ खास दोस्त शाम होते ही घर आजाते और फिर उनकी महफिल देर रात ही उठती। और फिर नशे में खाना खाने के बाद उसे नींद के अलावा कुछ न सूझता। गाहे बगाहे मौली से रात के अंधेरे में रिश्ता बनता भी तो बेहद मशीनी ढंग से। मौली का अन्तर्मन सदा प्यासा रेगिस्तान ही बना रहा था, उसमें कभी पति के प्यार के फूल महके गमके ही नहीं।                     

राजन के अपने प्रति इस रुक्ष व्यवहार से आहत मौली दिन रात कुढ़ती और आँसू बहाती। लाख समझाती राजन को कि वह रोज दोस्तों के साथ शराब की महफिल न जमाए। उसे और बच्ची को अपना वक़्त दे। लेकिन राजन पर उसके कहे का रत्ती भर असर न होताI यूँ ही साल दर साल बीतते गए थे। मौली की गोद में दो फूल और खिले थे। राजन की अपने प्रति बेरुखी से मौली के अन्तर्मन में असंतोष का दावानल सतत धधकता रहता। लाख समझाने के बावजूद राजन अपने ढर्रे पर ही चलता रहा था। मौली ने हर तरह से उसे समझा बुझा कर देख लिया था, प्यार से, मनुहार से, गुस्से से, खुशामद से, रो कर, झगड़ कर। लेकिन राजन न जाने किस मिट्टी का बना था, उस पर उनका कोई असर न होता।                          

वक्त यूँ ही मौली को पल-पल सौ-सौ दंश देता आगे बढ़ रहा था। मौली के विवाह को दस वर्ष होने आए थे। कल उसकी शादी की दसवीं एनीवर्सरी थी। कल ही मित्र मंडली में किसी ने उससे यह बात छेड़ी थी और जवाब में राजन ने कहा था, "अरे भई, कल हमारी शादी को पूरे दस बरस हो जाएंगे।" तभी एक मित्र बोल पड़ा था, "तो जोरदार पार्टी दे रहे हो ना? कल तो पार्टी हो जाए।" फ्रेंड्स के जाते ही राजन मौली से बोला था, "मौली क्या कहती हो? कल कर लें शानदार सेलिब्रेशन। अरे भई दस बरस हो जाएंगे हमारी शादी को। धूम धड़ाका तो बनता है इस खुशी में। बताओ कौन से होटल में बुकिंग करवानी है?"

लेकिन राजन की इस बात से मौली के तनबदन में आग लग गई थी और उसने गुस्से में तमक कर उस पर तंज कसते हुए जवाब दिया था, "मैं तो भूल ही गई थी राजन कि मेरी तुमसे दस साल पहले शादी हुई थी। मुझे तो पूरी तरह से फेरों के वक्त लिए गए वचन याद हैं लेकिन तुम्हें तो शायद उसका एक शब्द भी याद नहीं। फेरों के वक्त क्या कहा था पंडितजी ने कि हम दोनों अब दो शरीर एक प्राण हैं। आपके दुख-सुख मेरे और मेरे आपके। लेकिन क्या मेरे सुख-दुख वास्तव में आपके हो सके? मैं अकेली गृहस्थी संभालती हूँ, बच्चे संभालती हूँ, घर-बाहर के सारे काम करती हूँ। लेकिन क्या आप कभी मेरे पास तसल्ली से बैठ कर प्यार के दो शब्द बोलते हैं? कभी शाम को मुझसे पूछते हैं, मेरा सारा दिन इस बंगले की दीवारों में कैद कैसे बीता। मेरी दुनिया बस घर और बच्चे ही हैं। क्या पत्नी होने के नाते आपके समय और आपके प्यार पर मेरा कोई हक नहीं? कभी-कभी तो मुझे डाउट होने लगता है कि मुझे आप अपनी पत्नी भी मानते हैं या नहीं? सुबह से शाम तक बस अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं। मुझसे अपनी कोई बात साझा नहीं करते हैं। ना ही बच्चों की तरफ कोई ध्यान देते हैं। उनकी पढ़ाई-लिखाई, आउटिंग, एक्टीविटीज, हारी-बीमारी, दवाई सबकी जिम्मेदारी मेरी है। सिर्फ फेरे लेने और बच्चे पैदा करने का नाम शादी नहीं होता। लेकिन मैं यह सब किससे कह रही हूँ, उस इंसान से जो सिर्फ अपने लिए जीता है, अपनी ही आशा, अपेक्षाओं, ख्वाहिशों को पूरा करने में ज़िंदगी की सार्थकता समझता है। सॉरी राजन, मेरे खयाल से हमारी शादी एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं। सो इसे मनाने का कोई सवाल ही नहीं। मैं आज आखिरी बार आपसे यह कह रही हूँ, कोई होटल में बुकिंग मत करवाइएगा। मैं ऐसे झूठे सेलिब्रेशन में हर्गिज शामिल नहीं होने वाली, कान खोल कर सुन लीजिए।’‘

"तुम तो सठिया गई हो, तीन-तीन प्यारे बच्चे हैं तुम्हारी झोली में। मन चाहा खर्च करती हो। डायमंड से लदी हुई हो, इतनी शानदार कोठी में रहती हो। नौकर-चाकरों की फौज है घर में। और तुम्हें क्या चाहिए? अरे यह सब नहीं होता तो ये बच्चे क्या आसमान से टपक पड़े? बेबात की टेर छेड़ रखी है। अरे कितनी औरतों को तुम्हारे जैसी ज़िंदगी नसीब होती है? मैं तो अपने बिजनेस में बिजी रहता हूँ, कहो तो सब छोड़-छाड़ कर तुम्हारे पल्लू से बंध कर रह जाऊं? अजीब पागलपन है," राजन ने जवाब दिया थाI    

जिसके प्रत्युत्तर में मौली बिफर कर रोते हुए बोली थी, "मुझे आपकी ज़िंदगी में साझेदारी चाहिए। आपका वक्त चाहिए, शाम को घर आयें तो मेरे साथ चाय की चुस्कियों पर दिन भर की बातें एक दूसरे से शेयर करें। घर में इंट्रेस्ट लें, मुझ में इंट्रेस्ट लें, बच्चों में इंट्रेस्ट लें। लेकिन मैं यह किससे कह रही हूँ। उस इंसान से जिसके लिए रुपया, पैसा, डायमंड, साड़ी गहने, घर, प्रॉपर्टी, गाड़ी, नौकर ही खुशियों का दूसरा नाम है। मेरे लिए इनका कोई मोल नहीं। आप पत्थर दिल हैं राजन," और मौली सुबकते हुए भीतर चली गई।

अगले दिन कोई पार्टी नहीं हुई थी। सारा दिन मौली ने अकेले उदास बिताया था और राजन के लिए तो वह एक आम दिन से अलग कुछ था ही नहीं। उसे आज तक याद है, वह दिन, जिस दिन उसके हाथ राजन को सही रास्ते पर लाने का एक ब्रम्हास्त्र लगा था। उस दिन बड़ी बेटी के स्कूल में एनुअल फंक्शन था और उसी दिन उसे बेस्ट स्टूडेंट का अवॉर्ड मिलना था। उसने एक हफ्ते पहले ही राजन से कह दिया था, "राजन, इस बार नव्या के स्कूल के एनुअल फंक्शन में जरूर चलना है, उसे बेस्ट स्टूडेंट का अवॉर्ड मिलने वाला है।" उस वक्त तो राजन ने उससे कह दिया था कि वह नियत वक्त पर स्कूल जाने के लिए आ जाएगा। लेकिन शाम को ही उसका एक जिगरी दोस्त उसे खींच अपने घर दारू पार्टी में ले गया था और विवश मौली को अकेले ही बेटी के साथ स्कूल जाना पड़ा था। स्कूल जाने से पहले नव्या खूब रोई थी यह कहते-कहते, "पापा ने प्रॉमिस किया था, फिर वह क्यूँ नहीं आए? कभी मेरी पेरेंट टीचर मीटिंग में भी पापा नहीं आते। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता मम्मी।                          

बेटी के रोने ने मौली को बेहद उदास कर दिया था। स्कूल के ऐनुअल फंक्शन में सभी बच्चे हँसते-बतियाते अपने अपने मम्मी-पापा के साथ आए थे। और दूसरी ओर नव्या का आँसुओं से मलिन चेहरा देख कर सारे वक्त उसके हृदय में नश्तर चुभते रहे थे और पूरे वक्त वह अपनी ज़िंदगी के खोखलेपन पर विचारमग्न रही थी। और व्यथित मन गुस्से से भभकते हुए आँसुओं को सायास रोके बैठी रही थी। 

और फिर घर पहुँच राजन को देखते ही अदम्य गुस्से से फनफनाती हुई मौली ने बच्चों के सामने ही राजन के सामने रखी हुई शराब की पूरी की पूरी बोतल अपन हलक में उडेल ली थी। राजन बस कहता ही रह गया था, "अरे...यह क्या कर रही हो, नशा हो जाएगा।" लेकिन उस दिन मौली पर जैसे चंडी सवार थी। उसने राजन की एक न सुनी और पूरी बोतल खत्म करके ही दम लिया था। और फिर नशे में बेसुध होकर सो गई थी।

मौली के यूँ शराब पीकर सो जाने के बाद राजन को ही उस दिन बच्चों को खाना-पीना खिला कर सुलाना पड़ा था।

उस दिन के बाद से मौली करीबन रोजाना ही राजन के मित्रों के आने से पहले ही उसके बार से शराब की एक बोतल लेती और खूब सारी पीकर बेसुध सो जाती। और विवश राजन को बच्चे संभालने पड़ते। इस तरह उसके घर में मित्र मंडली का रोज-रोज महफिल जमना लगभग बंद सा हो गया था। राजन उसे लाख समझाता, "मौली, यूँ रोज इस तरह ड्रिंक करके तो तुम अपनी हेल्थ चौपट कर लोगी। तनिक बच्चों की तो सोचो, तीनों बड़े हो रहे हैं, उन पर कितना गलत असर पड़ेगा।"

लेकिन हमेशा मौली का एक ही जवाब होता, "जब आपको मेरी और बच्चों की कोई परवाह नहीं है तो क्या मैंने ही देखभाल का ठेका ले रखा है? आप मेरी बात नहीं मानते तो मैं भी आपकी बात नहीं मानूंगी।"

आए दिन यूँ मौली के ड्रिंक कर गृहस्थी से मुँह मोड़ सो जाने पर घर में हंगामा मचता। उस वक्त बड़ी बेटी नव्या करीब नौ साल की थी, उससे छोटा बेटा सात साल का था और सबसे छोटी परी पाँच साल की थी। तीनों ही नासमझ थे और राजन अकेले ही तीनों को संभालते-संभालते हलकान हो जाता।

लगभग पाँच-छह महीने उनके घर यही ड्रामा चलता रहा। इसका असर यह हुआ था कि अब राजन शाम को घर पर ही रहने लगा था। वह बच्चों को जान से ज्यादा चाहता था। उसकी यही कमजोरी उसकी दुखती रग बन गई थी। उसमें इतनी समझदारी थी कि उसने बच्चों को नौकरों के भरोसे कभी नहीं छोड़ा।                            

 मौली की इस हरकत से बच्चों की पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ने लगा था। पहले जहाँ नव्या मौली की मेहनत से क्लास के टॉप बच्चों में गिनी जाती थी, वहीं पिछले एग्जाम में बड़ी मुश्किल से पास हो पाई थी। मौली भांप गई थी कि बच्चे राजन की कमजोरी हैं, वह चाहे उसकी जितनी उपेक्षा करे, बच्चों की बेकद्री नहीं करेगा। सो दिन में भी मौली पहले की तरह बच्चों को नहीं पढ़ाती। धीरे-धीरे राजन की शाम को घर या बाहर दोस्तों के साथ ड्रिंक करने की आदत ना के बराबर रह गई थी।

अब मौली के शाम को ड्रिंक करके सो जाने के बाद विवश राजन बच्चों को पढ़ाता, उनसे बातें करता। मौली को भी अमूमन रोज समझाता, "मौली, क्यूँ अपनी हंसती-खेलती दुनिया को शराब पीकर बर्बाद करने पर तुली हुई हो? देखो, मैंने तो अब ड्रिंक करना बिल्कुल ही बंद कर दिया है। रात को घर पर ही थोड़ी-बहुत पी लेता हूँ। प्लीज तुम भी पीना बंद कर दो।"  लेकिन उसके जवाब में मौली एक ही बात उससे कहती, "मैं ड्रिंकिंग तब बंद करूँगी, जब आप मुझे अपनी ज़िंदगी में एक पत्नी का सही हक दोगे, सही मान दोगे। मैं आपसे कोई चाँद-सितारे तोड़कर लाने के लिए नहीं कह रही न, मैं तो सिर्फ यह चाहती हूँ कि आप अपनी शाम बस मेरे और बच्चों के साथ बिताएं हंस-बोल कर। मेरे बच्चों का बचपन आपके समय और अटेंशन के बिना मुरझा कर रह गया है। मैं आपके अटेंशन और समय के बिना दिन-रात कलपती रहती हूँ। मेरी बस छोटी-सी ख्वाहिश है कि आप मेरे साथ फुरसत की चंद घड़ियाँ हँस-बोलकर सुकून से बिताएं। इसमें बेजा क्या है, बताएं? ईश्वर का दिया हमारे पास सब कुछ है। वो धन-दौलत, जिसके लिए दुनिया तरसती है, ईश्वर ने हमें छप्पर फाड़ कर दी है। कमी है तो बस एक हमारी ज़िंदगी में एक दूसरे की साझेदारी की। प्लीज राजन, प्लीज, यह आदत छोड़ दो। उस दिन एनुअल फंक्शन के दिन नव्या कितना रोई है आपकी वजह सेI"                                

और मरता क्या न करता, राजन को मौली के इस हठ के सामने झुकना पड़ा था। और धीरे-धीरे बहुत कोशिशों के बाद वह अपनी शामें घर पर ही मौली और बच्चों के साथ गुजारने लगा था। अब वह मौली और बच्चों के सोने के बाद थोड़ा-बहुत अकेले में ड्रिंक करने लगा था। सायास मौली में अधिक इंट्रेस्ट लेने लगा था। उस पर पहले से ज्यादा ध्यान देने लगा था। उसकी इच्छाओं, अनिच्छाओं की कद्र करने लगा था। ऑफिस से लौट कर मौली और तीनों बच्चों के साथ चहक भरी बातचीत अब उसे अच्छी लगने लगी थी। परिवार के साथ समय बिताना उसके काम का स्ट्रेस मिटाने में मददगार होने लगा था। अब वह भरसक प्रयास करता मौली और बच्चों की उम्मीदों पर खरा उतरने की। शादी के इतने सालों बाद मौली का उसके और बच्चों के प्रति समर्पित प्यार और लगाव का गहराई से अहसास करने लगा था। उसका अपने प्रति बेशर्त प्यार को पहचानने लगा था। धीरे-धीरे उसे अहसास होने लगा था कि उसकी वजह से मौली और बच्चों ने कितना दुख पाया थाI

अब वह पहले वाला राजन न रहा था। मौली के साथ हल्की-फुल्की बातचीत में रस लेता। बच्चों को स्कूल के लिए तैयार होने में मदद करता। विभिन्न अवसरों पर उनके स्कूल भी जाता। उनके साथ पिकनिक, सिनेमा, सैर-सपाटा जाता। उसे अब अहसास हो चला था कि ये छोटी-छोटी खुशियाँ जीवन में कितना मायने रखती हैं। कभी-कभी उसे अफसोस होता कि उसने दस सालों तक मौली और बच्चों की झोली इन खुशियों से अपनी नादानी से खाली रखी। मौली ने उसके और बच्चों के प्रति अपने समर्पित लाड़-दुलार, परवाह से उसकी बरसों से सोई सुप्त भावनाओं को जगा दिया था। अब वह पहले वाला राजन न रहा था।

मौली राजन के इस कायापलट को देख बेहद खुश थी। अपने छोटे से घोंसले को पति और बच्चों की खुशनुमा चहक से गुलजार देख फूली न समाती। कि तभी राजन ने उससे पूछा, "अरे भई! क्या बात है, कुछ हमसे भी तो शेयर करो।" और बीते दिनों की भूल-भुलैया में अटकती-भटकती मौली वापिस वर्तमान में लौट आई थी और उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया था, "बस सोच रही थी, कितनी साधना के बाद मैंने तुम्हें पाया है। यूँ ही हमेशा मेरी ज़िंदगी को अपने प्यार से सराबोर रखना।" और दोनों एक दूसरे की आँखों में आँखें डालकर मुस्कुरा उठे थे। फिज़ा में प्रीत नेह का मदमस्त सुरूर घुल गया था।


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