Dr Abhigyat

Drama Tragedy Action

3.6  

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Drama Tragedy Action

तीसरी बीवी

तीसरी बीवी

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अभी कल ही सबरे बूढ़ा नूर उसके पास आया था, ख़बर देने। भोरे ही उसकी बेटी को उसके मरद ने मारपीट कर घर से निकाल दिया। वह उसके यहां आ गयी। कड़ाके की ठण्ड में। शीतलहर ज़ोरों पर थी। पाड़े के लोग बंगला ख़बर काग़ज़ से यह जानकर दहल उठते कि लोग ठण्ड से मर रहे हैं। खासकर बूढ़ों की आंखों में एक अज़ीब सी कातरता थी और वे कुछ न कुछ खाते रहने की फ़िराक में थे। और कोई इन्द्रिय सुख भोग पाने की न कोई उम्मीद थी, न गुंजाइश न सामर्थ्य। सारी केन्द्रीयता जिह्वा के स्वाद में सिमट गयी थी।

खांवखांव खांसने की आवाज़ घरघर से उठती थी तो उनका अनवरत क्रम पाड़े के कोनेकोने की चीज़ों को उलट डालने को व्यग्र सा जान पड़ता था। कच्ची भित्तियां कांपती सी लगती थीं और टुटहे नाममात्र के दरवाज़ों, खिड़कियों, छप्परों और दरकी दीवारों से हवा का ठण्डापन उनकी नाक और सीने में गिजगिजे मोम सा व्याप्त था, जो खखारने और नाक सुड़कने की क्रिया को रसद पहुंचा रहा था। कोई दसबीर रुपया कहीं से किसी प्रकार झींटने के फेर में था और कहीं पा जाता तो चार औंस चूल्लू पीकर भाग मनाता और ऊपर वाले को धन्यवाद देता कि नशा कुछ देर क़ायम रहे।

युवक समूह बनाकर ताश खेलने में रमे थे और औरतें अपने बच्चों के पोंकने को लेकर परेशानी में उन्हें रहरहकर हींकती थी तो वे सियारों की तरह फेंकरने लगते थे या अपनी क्रिया को बदल कर उल्टियां करने लगते थे। कुछेक चूल्हों से उठता हुआ धुआं मौसम की नमी से ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाने की अवस्था में फैलाव की ओर उन्मुख था और उसका परिणाम था चारों ओर धुआं, धुआं और धुआं; जिससे परिवेश गढ़ही के जल में दृष्टिगोचर होते प्रतिबिम्ब से कुछ अलग नहीं लगता था।

खड़दह से अधिक दूर नहीं है यह बस्ती। बंगलादेश से आये पुराने शरणार्थी लोगों की यह बस्ती बरसों से लगभग एक सी थी। बरसात में घरों में पानी घुस जाता तो इक्केदुक्के बरतन और बच्चों द्वारा छोड़ी गयी काग़ज़ी नावें घरों में एक सी तैरतीं। पाड़े के लोगों का प्रमुख व्यवसाय आश्रित है लेदेकर कचरे पर। आसपास की मिलों में जाकर ये कचरा उठाकर लाते हैं उसमें से काग़ज़ के टुकड़े, कांच के टुकड़े, सुतलियां बीनकर कबाड़ी वाले साहूकार के यहां बेचते और उससे जीवन यापन करते हैं। जो इस व्यवसाय से संतुष्ट होने को तैयार नहीं हैं वे दुस्साहसिक कार्य करते हैं अर्थात् किसी प्रकार चोरीछिपे दरबानों को दसबीस रुपये देकर लोहे के टुकड़े कचरे में लपेटकर लारी में उठा लेते, जो स्क्रेप में पड़ा होता था, उन्हें औनेपौने दामों में बेचकर उससे अपने रंगीन सपनों की पूर्ति तालपुकुर रंडीपाड़े पहुंच जाते।

कुछ साल पहले तक टीटागढ़ भी गुलज़ार था, किन्तु अब वह बन्द हो गया। तब से यहां रेट बढ़ गया। पैसा टेंट में अधिक हो तो जुआ भी हो जाता है, पीना तो ख़ैर आम बात है।

कचरा मिलों में उठाने और बेचने तथा इस चोरी के माल पर सबका हक़ हो ऐसा नहीं है। और न ही मुनाफ़े पर बराबरी। मिल के ठेकेदार तो मिल की ओर से कचरा साफ़ कराने का पैसा लेते ही हैं, उनसे भी सौपचास लारी पीछे उगाह लेते हैं। लारी भाड़ा भी मिल प्रबंधन से अलग, उनसे अलग लेते हैं। दरबान गेट के भीतर घुसते ही पांचदस रुपये बेमतलब भी टान लेते हैं। जिधर भी जाओ, कोई न कोई पीछे लगा रहता है, कुत्ते हैं सब के सब। दिये बिना गुज़ारा नहीं। ठेकेदार के भरोसे कुछ पुसाने वाला नहीं। दरबान ही चाहें तो सौपचास की गुंजाइश कर देते हैं, सब दे दिलाकर। आख़िरकार जो गाड़ी पर माल लोड करते हैं उन कुलियों को भी तो बीसतीस रुपये देने पड़ते हैं।

मिल में काम करने वाले वर्करों की केंटीन का जूठा पत्तल इससे कम में उठाने को भला कोई क्योंकर तैयार हो। वह भी पाड़े के ही लोग उठाते हैं। बाहर के कुली पैसे भी अधिक लेते हैं और अपनी थोथी शान के ख़िलाफ़ समझते हैं। रास्ते में किसी न किसी पूजा का चन्दा और मार डालता है। कभीकभार अच्छा माल हाथ लग जाता है। सड़े चटों के बीच कुछ अच्छे चट, फटी हुई पोलीथिन, जंग खाये नटबोल्टू। इस काम में वर्कर भी साथ देते हैं मिल के। यह बात अलग है कि उनके पानपत्ते का भी ख़याल रखना पड़ता है।

हबीब को इस मंगल पाड़े का सरदार कहना अनुचित न होगा. दोदो बीवियों का पति। तीनतीन बच्चों का बाप। वही साहूकार के गोले से रुपये अपनी ज़िम्मेदारी पर लेकर आता है और मिल के ठेकेदारों से सम्पर्क करके माल उठाता है। शेष दिहाड़ी पर काम करने वाले ही हैं। जिस रोज़ काम होगा, नगदी पैसा उसी रोज़। कचरे से माल बछाई का काम पाड़े की औरतें करती हैं, दसदस रुपये लेती हैं।

सारा माल साहूकार ही ले लेता है बदले में हबीब को आमदनी का चौथाई हिस्सा मिलता है। कभी घाटा लग जाता तो हबीब का कुछ नहीं मिलता। साहूकार उसका मुनाफे में साझीदार होता घाटे में नहीं।

गत पांच दिनों से शीतलहर चल रही थी। हल्कीहल्की बूंदाबांदी और झुरझुरी हवा जो हाड़ तक कंपा देती थी। सूरज का अतापता न था। नूर तड़के ही उसके घर आकर अपना रोना रो गया था कि उसके घर बिछौनेओढ़ने का अभाव है। दोतीन चट किसी प्रकार मिल जायें तो वह इस कड़ाके की ठण्ड में अपना गुज़ारा कर लेगा। उसकी बेटी आ ही गयी तो इन्तज़ाम करना पड़ेगा उसके रहने का। उसका शौहर उसे अब रखेगा नहीं, मार कर सिर फोड़ दिया है सो अलग। वह रोतीबिलखती, आवेश और दुख में खाली हाथ झुलाती आ गयी है। पति के मना करने पर भी। अब वह उसे रखने से रहा।

नूर अपना फटा लेवा बेटी को दे देगा तो उसका अपना गुज़ारा कैसे होगा? कैसे बचेगा वह इस हड्डियों को बेधती ठण्ड से। हाथ बुरी तरह तंग है। खानेपीने की दिक़्कत है ऐसे में बिछौना कीनने की कौन सोचे? इस भयानक ठण्ड का मुक़ाबला वह एक रात भी कैसे कर पायेगा? उम्र भी तो हो चली है।

हबीब उसे आश्वासन देकर मिल गया कि उसके लिए काम चलाऊ चटों की व्यवस्था वह आज अवश्य कर देगा। इसके लिए यदि दोचारदस रुपये दरबान को देने पड़े तो भी। वैसे भी सड़े चटों के बीछ कुछ न कुछ काम के चट ज़रूर निकला ही आते हैं जो दोदो, तीनतीन रुपये में बिक जाते हैं। चटकलों की महिमा अपार है। यूं ही नहीं कहते थे अंग्रेज़ की यहां चट नहीं सोने की ईंट तैयार होती है।

लारी में माल लोड हो रहा था। हबीब परेशान था। उसकी नज़रें पत्तलों के ढेर में पड़े चटों पर थी लेकिन आज वे दुर्लभ थीं। उसका अलग कारण था। इससे पहले वह सड़े चटों को बड़े आराम से उठा लेता था लेकिन एक दिन पूर्व ही नया मैनेजर ट्रांसफर होकर आया है। एहतियात के तौर पर यह व्यवस्था दी गयी थी कि सड़े हुए चट भी अब बाहर नहीं जायेंगे बल्क़ि उन्हें मिल के बायलर में जला दिया जाये। बाहर जाने से मैनेज़मेंट की बदनामी होने का ख़तरा है। यह कहा जा सकता है कि अच्छेअच्छे चट बाहर जा रहे हैं। मैनेज़मेंट या तो इस पर ध्यान नहीं दे रहा है या फिर मिला हुआ है। ख़ास तौर पर ठेकेदार और दरबान डिपार्टमेंट को हिदायत दी गयी कि वे इधर पांचदस दिन सावधानी बरतें। किसी प्रकार भी चट बाहर न जाने पाये। बाद में सब जस का तस हो जायेगा। नये मैनेज़र को अभी अपनी धाक़ जमानी है। यह एक सामान्य सी पद्धति है। जब भी कोई नया मैनेज़र आता है तो इस तरह की सख़्ती बरती जाती है। छवि निर्माण के बाद घोटालों का दौर शुरू होता है। यूनियन भी चाहती है कि प्रबंधन की सख़्ती के लोग क़ायल हो जायें बाद में मिलबांटकर वे खाते रहेंगे।

हबीब के लिए यह घटना पहली बार न होते हुए भी सामान्य न थी। उसे नूर याद था। उसकी समस्याएं याद थीं। उसका अनुग्रह और दुआएं याद थीं। ठेकेदार के हटते ही नूर ने दस का नोट दरबान को थमाया और उसके नानुकुर करने पर थोड़े से ही चट उठाने का आश्वासान इशारे से देकर पत्तलों में कुछ चट दबा लारी पर चढ़ा दिया। दुर्भाग्य ऐसा कि किसी ने मेनगेट पर इसकी चुगली कर दी। लारी वहां पहुंची तो मामला पकड़ा गया।

ड्यूटी दरबान ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि मैं पेशाब करने गया था, उसी समय यह लारी पर उठाया गया होगा। हबीब पर ही सारा दोष आया। ठेकेदार मामला फंसा देखकर उस पर सबके सामने बिफर पड़ा'सूअर का बच्चा! चोरी करते हुए शरम न आयी। रहम करके तुमको काम पर रखा। उसका यह नतीज़ा। एक तो चोरी करेगा ऊपर से पचास रुपये मजूरी लेगा। तुम्ही जैसा लोगों के चलते बंगाल के सैकड़ों कलकारखाना पर ताला लग गिया।'

 और ठेकेदार ने जो बंद छाता हाथ में लिया था उसी से तड़तड़ दो छाता उस पर जमा दिया'ले जाओ। इस कुत्ते को और हड्डी पसली तोड़ कर थाने में दे दो। तब समझेगा चोरीचमारी क्या चीज़ है।'

दरबान डिपार्ट हतप्रभ था। आख़िर इस कारनामे से उसकी बदनामी कम न थी। जो गाड़ी लोड करा रहा था, उसे भी बचाना था। सो वे उस पर टूट पड़े। दरबान बिफरा'मा.., तुझे समझाया था कि नहीं कि एक सूत भी लोड नहीं होगा लारी पर। सब चट बांध कर धर देना होगा मिल में। उधर मूतने गया और इधर गाड़ी में घुसेड़ दिया। अब बम्बू गया समझे।'

ड्यूटी हवलदार ने अपनी मुस्तैदी झाड़ी'ठेकेदार साहब! आप जाइए। क्यों अपना माथा ख़राब करते हैं इन दो कौड़ी के लोगों के लिए। ऐसे ही लोगों के कारण आप जैसे शरीफ़ लोगों का नाम ख़राब होता है। मैं इसे ठीक से समझ लूंगा। बेटा वो पिटाई करूंगा कि बापबाप चिल्लायेगा।'

यूनियन के लोग इर्दगिर्द घेर कर तमाशा देख रहे थे। तमाम मज़दूर भी काम छोड़कर आ गये थे अपनाअपना। उन्हें देखकर हवलदार के आवाज़ में गर्मी बढ़ी। वह हबीब की कॉलर पकड़ कर उसे लगभग घसीटते हुए सिक्योरिटी आफ़िसर के आफ़िस में ले गया। गेट दरबान मज़दूरों को तितरबितर करने में लग गया। मज़दूर पक्षविपक्ष में बंट चुके थे और बतियाते हुए वहां से खिसक गये।

यूनियन नेताओं के चेहरे पर मुस्कान थी। उन्हें मैनेजमेंट के खिलाफ़ बोलने का मौका मिल गया था। प्रमाण मिल गया था कि मिल में अबाध चोरियां होती रहती हैं। यह इत्तफाक़ है कि एक मामला पकड़ा गया। कुछ लोग दरबान डिपार्ट की मुस्तैदी को सराह रहे थे तो कुछ लोग इसे छद्मचारिता करार देते हुए हबीब के पक्षधर थे।

देर तक सिक्योरिटी आफिसर के कमरे से बेंतों के चलने की आवाज़ आती रही और जब हबीब वहां से बाहर निकला तो लहूलुहान था। पुलिस को फ़ोन किया जा चुका था। वह आयी और उसे गाड़ी में बिठाकर यूं ले गयी जैसे वह कोई शातिर अपराधी हो।

थोड़ी देर बाद ठेकेदार मैनेजर के चेम्बर में था। वहां सिक्योरिटी आफ़िसर भी थे। ठेकेदार बोला'हुज़ूर हम आपके नौकर हैं। अंग्रेज़ों के ज़माने से चल रहा है हमारा काम। यह ख़त्म हो गया तो बाल बच्चे भूखे मर जायेंगे। दो पैसे जैसेतैसे कमाते हैं। झूठ नहीं बोलेंगे लेकिन अकेले नहीं खाते हैं। हूज़ूर लोगों की सेवा भी करते हैं। कोई सेवा का मौका हो तो बोलियेगा। हाज़िर रहेंगे।'

मैनेज़र के चेहरे पर मुस्कान थी। वे सिक्योरिटी आफ़िसर से मुखातिब हो बोले'बूढ़ा बहुत व्यवहारिक है।'

'हां साहब! डॉयरेक्टर साहब के यहां भी इसका आनाजाना है। स्थानीय राजनीति में भी इसकी गहरी पैठ है। यूनियन इसके इशारे समझती है। इसके मिल में बने रहने के कई फ़ायदे हैं। ...और फिर आप मिल में नयेनये हैं।' सिक्योरिटी आफिसर ने अपना पांसा फेंका।

'आप ठीक कहते हैं। यह आदमी काम का है। अरे सुनो बूढ़े। तुम्हारी मिल में कितनी लॉरी चलती है?'

'हुज़ूर, आपकी दया से चार हैं। कोई सेवा?'

'हमारा सामान अभी हावड़ा में है। पेक करके रखा है। उसे लाने सकेगा?'

'आर्डर कीज़िए हुज़ूर।'

'जो पैसा होगा भाड़ा का ले लीज़ियेगा। संकोच का कोई बात नहीं है। अच्छा, इस बारे में बाद में बात करेगा।' उन्होंने सिक्योरिटी आफ़िसर की ओर देखकर कहा। सिक्योरिटी आफ़िसर को भांपते देर न लगी। वे उठ खड़े हुए'मैं चलूं साहब। मुझे बहुत से काम हैं।' और वे बाहर निकल गये।

ठेकेदार ने बात पकड़ ली थी। बोला'हुज़ूर, पैसे का क्या सवाल है। आप ही का दिया खाते हैं। कोई देस से थोड़े न लेकर आये हैं। आपका मेहरबानी रहा तो सौ ग्राम सत्तू मिलता रहेगा।'

 और वह सलाम करके जाने को हुआ कि मैनेजर ने टोका'और सुनो। सामान लाने का तीन हज़ार का बिल बनाकर दे देना। मिल से वह पैसा मुझे मिल जायेगा। सामान पैकिंग में बहुत खर्चा हो गया।'

ठेकेदार मुस्कुराता हुआ बाहर निकला। मामला हल हो चुका था।

हबीब रात भर हवालात में रहा। ठण्ड में उसकी देह अकड़ गयी थी, हालांकि ठेकेदार उससे थाने में आकर मिला था और कम्बल की व्यवस्था करवा गया था। बोला'दिखाने के लिए तुम्हें डांटनाफटकारना ज़रूरी था, नहीं तो काम सदा के लिए बन्द हो जाता। फिर तुम्हारी रोजीरोटी कैसे चलती? घबराओ नहीं। कारोबार बचा लिया है और तुम्हें भी माफ़ी मिल जायेगी। दस दिन का वास्ते तुम दूसरा आदमी काम पर भेज दो अपने बदले। फिर सब मामले को भूल जायेंगे तो काम पर वापस आ जाना। तुम्हें सबेरे छोड़ दिया जायेगा। सब व्यवस्था कर दी है।'

इस बात ने जैसे संजीवनी का काम किया। हबीब सारी तकलीफ़ें भूल गया।

सुबह जब वह अपने घर लौटा तो उसने जाना कि नूर की बेटी रात को उसके घर आ गयी थी। नूर खुद पहुंचाने आया था। वह अपनी बेटी की परवरिश नहीं कर सकता और बिछौने भी तो नहीं हैं, भयानक ठण्ड में। इसीलिए उसकी बेटी अब हबीब की बीवी बनकर रहे उसी के साथ। नूर हबीब की दोनों बीवियों के हाथ जोड़ गया था। थोड़ी देर तक वे उससे न बोलीं। फिर रात को जब हबीब के थाने में धर लिये जाने की ख़बर मिली तो अपने दुख में उदास हो गयीं। नवांगतुक का विरोध करने का साहस बचा न इच्छा। हां दुख बांटने वाला एक और बढ़ गया था। नूर की बेटी रात भर हबीब के बिछौने में सुख की नींद सोयी।



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