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PRAVIN MAKWANA

Inspirational

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तेग बहादुरजी : शीश बलिदान

तेग बहादुरजी : शीश बलिदान

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शांति, क्षमा, सहनशीलता के गुणों वाले गुरु तेग बहादुरजी ने लोगों को प्रेम, एकता व भाईचारे का संदेश दिया। उनके जीवन का प्रथम दर्शन यही था कि धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है।विश्व इतिहास में धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। गुरुवार (9 अप्रेल) को तेग बहादुरजी की जयंती (प्राचीन मत से) है।सिख धर्म के नौवें धर्म-गुरु सतगुरु तेग बहादुरजी का जन्म बैसाख पंचमी संवत 1678 (ई. 1621) को अमृतसर में गुरु हरगोबिंद साहिबजी के घर हुआ। 


गुरु तेग बहादुरजी के जन्मोत्सव को गुरु तेग बहादुर जयंती के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने मुगलों के नापाक इरादों को नेस्तनाबूद किया और खुद कुर्बान हो गए। गुरु तेग बहादुर सिंहजी द्वारा रचित बाणी के 15 रागों में 116 शबद श्री गुरुग्रंथ साहिब में संकलित हैं। गुरुजी ने धर्म की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया और सही अर्थों में हिंद की चादर कहलाए।बाल्यावस्था से ही वे संत स्वरूप, गहन विचारवान, उदार चित्त, बहादुर व निर्भीक स्वभाव के थे। धर्म के सत्य ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए गुरु तेग बहादुरजी ने कई स्थानों का भ्रमण किया।किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। 


उनके जीवन का प्रथम दर्शन यही था कि धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है। शांति, क्षमा, सहनशीलता के गुणों वाले गुरु तेग बहादुरजी ने लोगों को प्रेम, एकता व भाईचारे का संदेश दिया।गुरु तेग बहादुरजी ने देश व धार्मिक स्वतंत्रता के लिए कई कुर्बानियां दी लेकिन वे अपने निश्चय पर हमेशा अडिग रहे। इसी सिलसिले में जब वे दिल्ली की ओर जा रहे थे तो रास्ते में मलिकपुर रंगड़ा गांव में सरहिंद के सूबेदार ने उन्हें बंदी बना लिया। औरंगजेब तब दिल्ली से बाहर था। चार महीने तक गुरु तेग बहादुरजी सरहिंद की जेल में रहे। जब औरंगजेब दिल्ली आ गया तो गुरुजी व उनके साथियों को दिल्ली लाया गया। इसके बाद उन पर भयंकर अत्याचार का दौर शुरू हुआ।तीन दिन तक उन्हें व उनके शिष्यों को पानी तक नहीं दिया गया। दिल्ली की कोतवाली के पास गुरुजी व उनके शिष्य लाए गए। पहले भाई मतिदास को आरे से चिरवाया गया। जब औरंगजेब का इससे भी मन नहीं भरा तो भाई दयालदास को खौलते पानी में डाला गया। 


गुरू तेग बहादुर औरंगजेब के सामने नहीं झुके और अपने शिष्यों के अद्भुत बलिदान का गुणगान करते रहे। इसके बाद भाई सतीदास के बदन पर रूई लपेट कर आग लगा दी गई। गुरुजी ने उसके बलिदान को धन्य-धन्य कहा। शिष्यों के बलिदान के बाद गुरु तेग बहादुरजी ने अपना शीश बलिदान कर दिया। दिल्ली में शीशगंज गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुरजी के उस महान बलिदान की स्मृति को आज भी ताजा कर देता है।


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