Renu Gupta

Drama

4.3  

Renu Gupta

Drama

स्वविवेक

स्वविवेक

6 mins
621


उफ कितना डर गई हूं मैं... विजय के शराब के गोदाम के अहाते में हर ओर जहरीली शराब पीकर मरने वाले मजदूरों की लाशें बिछी हुई देखकर। अभी तक जिंदगी में दो बार बेइंतेहा डर का अहसास हुआ है।


 एक आज और एक बार उस दिन, जब विजय और उसके साथी मुझे मंदिर से जबरन उठाकर ले आए थे, विजय के आलीशान घर में। उस दिन मोटी चादर में लिपटा मेरा शरीर धौंकनी-सी चलती सांसों को झेल रहा था और आज एक बार फिर भय के अतिरेक ने मेरे रोम-रोम को जकड़ लिया था। सायास किसी तरह अपनी उखड़ती सांसों को संभालने का प्रयास करते हुए मैं गली में लगभग दौड़ती हुई आकर अपने कमरे में घुसी और वहां की चिर परिचित सुकून भरी छांव में अपने पलंग पर कटे वृक्ष की भांति गिर पड़ी थी। उफ...विजय मेरे पति, मेरे जीवन के सबसे सुखद अध्याय के साझीदार। उनके व्यक्तित्व का दूसरा पहलू इतना वीभत्स, इतना घृणित हो सकता है, मेरी सोच से परे था। तो उसकी इस आन, इस शान के पीछे उसका शराब का अवैध व्यापार है। छि...शराब...सोचकर ही मुझे मितली-सी हो आई थी। विजय की इस घृणित असलियत ने क्षण भर में मेरे सोने के संसार को जलाकर राख कर दिया था। क्या विजय की यह घृणास्पद वास्तविकता जानकर मैं उसके साथ पहले की भांति सुखद जीवन साझा कर पाऊंगी?


 विजय के सान्निध्य के शुरुआती दिन तो बेहद दहशत और खौफ में गुजरे थे। शुरू-शुरू में उसके सामने आते ही भय से मैं छुई-मुई के पत्तों सी अपने आप में सिकुड़ जाती थी और मेरी जुबान तालू से चिपक जाती थी लेकिन विजय ने अपना धैर्य नहीं खोया था। उसने मुझे शुरू से अपनी पलकों पर बिठाकर रखा था। उसने मेरे साथ अपनी एक दूर की बेसहारा वृद्धा रिश्तेदार को मेरे साथ रख छोड़ा था, जो सदैव मेरे साथ बनी रहती थी। मैं उन्हें अम्मा कहा करती थी। उन्होंने ही मुझे धीरे-धीरे विजय के स्वभाव, उससे जुड़ी हर बात बताई थी, जिससे धीरे-धीरे विजय मेरी जिंदगी में एक खास जगह बनाता गया था। जब विजय मुझे उठवाकर लाया था, मैं मात्र सोलह वर्ष की अल्हड़ किशोरी थी। विजय ने भी मुझे अपना बनाने में अपना धीरज नहीं खोया था। वह मुझसे अत्यंत स्नेही भाव से बातें करता और समय-समय पर मेरे लिए अच्छे-अच्छे फैशनेबल कपड़े, गहने, चॉकलेट, आइसक्रीम लाया करता। विजय के शराब के व्यापार के अतिरिक्त अम्मा ने मुझसे उससे संबंधित कोई बात नहीं छिपाई थी। इसलिए वक्त के साथ मैं विजय की ओर आकर्षित होती गई थी और करीब एक वर्ष तक एक ही छत के नीचे रहने के उपरान्त जब अम्मा ने मुझसे पूछा था, ‘बिटिया, तुम देख ही रही हो, विजय कितना भला इंसान है। तुम्हें कितना चाहता है। तुम्हारे मुंह से बात निकली नहीं कि झट पूरी कर देता है। बताओ बिटिया, क्या तुम उससे शादी करोगी? तुम्हें वह बहुत सुखी रखेगा।’


 और कुछ देर सोच समझ कर मैंने कह दिया था, ‘हां अम्मा, विजय से शादी करने में मुझे कोई ऐतराज नहीं है।’


 और विजय की तो मानो मुंह मांगी मुराद पूरी हो गई थी। मेरी अपूर्व सुन्दरता ही मेरे दुर्भाग्य का कारण बनी थी। जब से उसने मुझे एक दिन मेरे घर के पास वाले मंदिर में देखा था, वह मेरे अप्रतिम सौंदर्य पर मुग्ध हो गया था और उसी क्षण उसने मुझे अपना बनाने का प्रण ले लिया था। और जब उसे पता चला कि मेरे माता-पिता का एक सडक़ दुर्घटना में निधन हो चुका है और मैं अपने गरीब मामा-मामी के घर एक अनचाही मेहमान बनकर रह रही हूं, उसने अपने कुछ अंतरंग दोस्तों द्वारा मुझे उठवाने की योजना बना ली थी।


 नियत वक्त पर विजय के कुछ साथियों ने इस काम को अंजाम दे दिया था। एक दिन जब मैं मुंह अंधेरे मंदिर जा रही थी, उन लोगों ने मुझे उठा लिया था। शुरू-शुरू में तो मैं बहुत रोई-तड़पी थी, लेकिन कुछ ही दिनों में मैंने यह सोचकर संतोष कर लिया था कि मुझ जैसी बिन मां-बाप की गरीब रिश्तेदारों पर अनचाहा बोझ बनी लडक़ी के लिए विजय से बेहतर लडक़ा मिलना असंभव प्राय था। यही सोचकर मैंने अपने प्रारब्ध से समझौता कर लिया था। पिछले एक वर्ष के दौरान जब मैं विजय के घर पर रही थी, उसने मुझसे कभी कोई बेजा हरकत नहीं की थी। इसलिए मेरे भावुक किशोर मन में भी उसके मोहाकर्षण का बिरवा फूट निकला था। लेकिन आज विजय की वास्तविकता जानकर मुझे अनुभव हो रहा था कि विजय से विवाह कर मैंने अपने दुर्भाग्य को न्योता दिया था। शुरू से ही मुझे शराब और शराब पीने वालों से सख्त नफरत थी। मैंने अपने पिता के घर कभी किसी को शराब पीते नहीं देखा था। मुझे अपने माता-पिता से सुसंस्कार विरासत में मिले थे और मुझे चाह थी तो सिर्फ एक भले, सच्चरित्र और ईमानदार जीवनसाथी की लेकिन यहां तो हर कदम पर जिंदगी की बिसात पर मुझे सिर्फ मात ही मात मिल रही थी


और फिर आज तो हद ही हो गई थी। आज जब मैं सुबह उठी तो अगले कमरे से आते मंद स्वरों से मैंने भांप लिया था कि कोई बड़ी घटना घटी है। विजय के अनेक संगी-साथी घर पर जमा थे और हर किसी के चेहरे पर तनाव और बेचैनी के स्पष्ट चिह्न झलक रहे थे और मुझसे लाख छिपाए जाने पर भी मैंने अखबार में विजय के शराब के ठेके पर जहरीली शराब से मरने वालों की विस्तृत खबर पढ़ ली थी। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि विजय शराब जैसी चीज का व्यवसाय करता था। अम्मा ने एक बार बस यह बताया था कि अगली गली में विजय का हार्डवेयर का सामान रखने का एक बहुत बड़ा गोदाम है। अखबार में गोदाम का पता पढक़र मैं घर पर बिना किसी को कुछ बताए उस ओर दौड़ पड़ी थी। और वहां जो मैंने देखा था, वह मुझे जिंदा लाश में तब्दील करने के लिए काफी था।


 पलंग से उठकर मैं अपनी छत पर आ गई थी। पूर्व दिशा में सूर्य अपनी ऊर्जावान जीवनदायी रश्मियां बिखेरता हुआ पूरी धरती को आलोकित कर रहा था लेकिन मेरे अंत:स्थल में तो आज सदा के लिए संताप और विषाद की कालिमा भरा अंधेरा पसर चुका था। विजय की इस कड़वी सच्चाई को जानने के बाद क्या मुझे उसके साथ सामान्य भाव से रहते रहना चाहिए? या उसे छोडक़र चले जाना चाहिए? लेकिन जाऊं तो कहां जाऊं? मायके के नाम पर सिर्फ एक मामा-मामी का घर था लेकिन अब तो शायद मेरे लिए उसके दरवाजे भी बंद हो चुके होंगे।


 मस्तिष्क में अनवरत चल रही इस ऊहापोह से क्लांत तन और मन को भोर की मृदु शीतल पुरवाई ने एक बार फिर तंद्रावस्था में पहुंचा दिया था और मेरी अधसोई, अधजगी आंखों के समक्ष मेरा बीता हुआ कल सिनेमा के दृश्यों की भांति एक के बाद एक जीवंत हो उठा था।


 और बंद आंखों से मैं देख रही थी- बचपन में मीठी आवाज में गुनगुनाते हुए थपकी देकर सुलाते हुए मां का सौम्य चेहरा...हंसते हुए दरवाजे पर खड़े हुए बाबूजी...बाबूजी की अंगुली पकड़ कर गंगा के तट पर सोमवारी मेले में रंग-बिरंगे नन्हे खिलौनों को लेने की जिद करना...मां-बाबूजी के साथ दशहरा मेले में पटाखों के भीषण शोर के साथ ऊंचे रावण के पुतले का धू-धू कर जलना...और एकाएक मुझे लगा था कि विजय के चेहरे पर नौ चेहरे और उग आए थे और वह अट्ठहास करते हुए मेरी ओर बढ़ रहा था...और मैं चौंक कर जाग गई थी। इस सपने ने मेरे जीवन को एक नई दिशा दे दी थी।


विजय रावण ही तो था। भोले-भाले गरीबों से उनका होश छीनने वाला व्यापारी... चंद पैसों की खातिर जान लेवा नशे का सौदा करने वाला निर्दयी सौदागर। नहीं, मुझे अपने आपको उससे मुक्त करना ही होगा, हर हाल में, हर कीमत पर और मैं, आज की सीता, जिसका सौदागर रूपी रावण की गिरफ्त से मुक्त करने का समय आ गया था। मैं निकल पड़ी थी एक अनदेखी, अनजानी डगर पर, नए जीवन की शुरुआत करने।।

 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama