स्वर्णिम दिन
स्वर्णिम दिन
पूरा देश खुशी से झूम उठा। आखिर तेरह साल बाद सोना जो हाथ लगा। इतना बड़ा देश। इतने महान लोग और सोने, चांदी, कांसे को तरसते रहे जाते हैं ? मगर इस बार अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है भारतीय खिलाड़ियों ने। एक बार फिर से आस जगा दी है कि खेलों के भी अच्छे दिन आयेंगे।
जैसे ही नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक जीता हंसमुख लाल जी का फोन आ गया। कहने लगे "बधाई हो भाईसाहब। सोने की ख्वाहिश पूरी कर दी अपने धरती के लाल नीरज ने। आज तो खुशी का दिन है। मुंह मीठा कीजिए।" और उन्होंने फोन पर ही लड्डू के दर्शन करा दिए।
लड्डू देखकर हम तो गदगद हो गए। भारतीयों को दो ही चीजों से ज्यादा लगाव है। पुरुषों को मिठाई से और महिलाओं को "सोने" से। अभी तो सोना भी मिल गया और लड्डू भी। और क्या चाहिए ? मन तृप्त हो गया।
मैंने कहा " हंसमुख लाल जी, मैं तो पहले ही कह रहा था कि भारत को चाहे किसी भी अन्य खेलों में कोई पदक मिले या नहीं मिले लेकिन एथलेटिक्स में अवश्य ही मिलेगा।"
"क्या बात है भाईसाहब। आप क्या पहले से ही जानते थे" ? वे आश्चर्य से बोले
"बिल्कुल जानता था। मुझे तो पक्का विश्वास था "
"वो कैसे" ?
"अरे, देखते नहीं कि हम लोग कितनी लंबी लंबी "फेंकते हैं। ऑफिस में, यार दोस्तों में, किटी पार्टियों में, संसद विधानसभाओं में, न्यायालयों में, न्यूज चैनलों में, सब जगह फेंकने में उस्ताद लोग हैं हम। फिर भाला फेंक, चक्का फेंक और गोला फेंक जैसी छोटी छोटी स्पर्धाओं की तो बात ही क्या है। यहां तो एक से बढ़कर एक "फेंकू" विराजते हैं। पर पता नहीं सरकार उन्हें क्यों नहीं भेजती ओलंपिक में ? अगर ये "फेंकू" लोग जायें तो सारे मैडल हमारे। ऐसा करना, तुम्हारी तो चलती है ना सरकार में। ये सलाह उन्हें दे देना। अगर और कोई "फेंकू" नहीं भी मिले तो कम से कम लेखक, कवि, शायर ये भी तो बहुत हैं देश में और ये लोग बड़ी बड़ी धांसू रचनाएं "फेंकते" हैं। इनमें से ही भेज देना किसी को। फिर देखना कि कैसे मैडल्स की बरसात होती है"।
मेरी इस बात पर हंसमुख लाल जी बहुत देर तक पेट पकड़कर हंसते रहे।
आज नीरज चौपड़ा द्वारा स्वर्ण पदक जीतने पर समस्त मित्रों को बधाई।
