सत्य का साक्षात्कार
सत्य का साक्षात्कार
जीवन अनवरत गति से अपनी ऊंची उड़ान पर था। समय का पहिया चलता रहता है वक्त की सुई कभी नही रुकती,मेरा जीवन भी इसी तरह गतिमान था। एक शिक्षिका के रूप में अपने कार्यक्षेत्र में और परिवार की जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वाहन कर रही थी। तभी वक्त ने करवट ली और कोरोना का आगमन हुआ। इस विपरीत परिस्थिति में भी जीवन ने खुश रहने का तरीका अपनाया और मैंने अपने CTET परीक्षा की जोर शोर से तैयारी शुरू कर दी। जनवरी 2021 में CTET की परीक्षा दी और फरवरी 2021 में ही रिजल्ट आया ,मैनें परीक्षा 70 प्रतिशत से उत्तीर्ण कर ली। इस पल का मैं बरसो से इंतजार कर रही थी क्योंकि शासन ने इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने की अनिवार्यता घोषित की थी। खुशी के इन लम्हो को परिवार के साथ ऑनलाइन ही सेलीब्रेट किया,मेरे पिता और भाई इस पल का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे और यह मेरे जीवन का अविस्मरणीय पल बन गया
कई दिनों तक इस खुशी को मनाया।
फिर इस खुशी को मनाने के लिए परिवार ने समर वेकेशन तय किया। मैं स्कूल की ऑनलाइन क्लास में व्यस्त हो गई , कोरोना की दूसरी लहर ने जोर पकड़ा और फिर से सब कुछ बंद की स्थिति बन गई। एक दिन भाई ने फोन पर बताया कि हम सभी लोग (भैय्या,भाभी,भतीजी) पॉजिटिव हो गए है , कुछ समझ नही आ रहा था कि मैं इतने दूर से क्या करू । पापा और मम्मी को अलग कमरे में रखा गया । छत्तीसगढ़ के हालात खराब हो गए हर घर में लोग पॉजिटिव हो रहे थे। भाभी और भतीजी ठीक हो रहे थे ,भाई को लगा वह भी ठीक हो जाएगा और 10 अप्रैल को अचानक फोन आया कि भाई का ऑक्सीजन लेवल 52 हो गया किसी भी हॉस्पिटल में बेड नही मिल रहा था , मैं और मेरी तीनो बहने हर किसी से मदद मांग रहे थे , बड़ी मुश्किल से एक बेड मिला जैसे तैसे अकेली भाभी ने भाई को एडमिट कराया। लेकिन भाई ये जंग हार गया और को
कोरोंना जीत गया। अपने इकलौते भाई को रोती बिलखती आंखों से हमेशा के लिए बिदा किया। अपने पिता को जवान बेटे के निधन का दुख झेलते हुए देखना मेरे लिए बहुत मुश्किल था,परिवार मैं सबसे छोटी होने के कारण एक भाई और तीनो बहनों की लाड़ली थी। सभी के लिए इतना मुश्किल समय था ,इतना बड़ा दुख था लेकिन उस समय भी पिता के पास नहीं रह सकी क्योंकि सभी लोग पॉजिटिव थे। भगवान कभी किसी को ऐसा समय ना दिखाए जो हमारे परिवार ने देखा। स्थिति थोड़ी सी संभली तो पिता के घर गई अपने भाई के दुख को सहन कर अपनी भाभी और दो भतीजियों को संभाला। समय निकल रहा था जैसे तैसे पिता के साथ रहकर सब कुछ ठीक करने की कोशिश की। कुछ दिनों में ही भाभी को नए व्यवसाय हेतु तैयार किया बहुत मुश्किल था एक हाउस वाइफ के लिए शून्य से शुरू करना लेकिन कहते है न जहां चाह वहां राह। भाभी का नया व्यवसाय शुरू हुआ ,पिता संतुष्ट थे। लेकिन जवान बेटे की मृत्यु का दर्द उन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। भाई को तीन महीने ही हुए अचानक पिता जी की तबियत थोड़ी सी खराब हुई,उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया और तीन चार दिन बाद पिता भी इस संसार से बिदा हो गए। हम पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा,अभी भाई के लिए आंखों के आंसू सूखे नही और अब पिता भी हमें छोड़कर चले गए।
हम तीनो बहनों ने धीरे धीरे स्थितियों से लड़ना सिखा। पिता और भाई के बिना जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाने का प्रयत्न शुरू किया।
एक दिन अचानक मेरे साथी शिक्षिका ने मुझे कहा कब तक यूं ही रोती रहोगी ,उसने मुझे बताया कि जो आया है वो जायेगा हम सभी को एक दिन जाना है यह कहकर उसने मुझे श्रीमद भगवद्गीता की पुस्तक दी और कहा कि इसे पढ़ो तुम्हे जीवन के सत्य समझ में आ जायेगा। श्रीमद भगवद्गीता के श्लोक को पढ़कर मेरा इस सत्य से साक्षात्कार हुआ कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है ।
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।
अर्थात क्योंकि जन्म के साथ ही उसकी मृत्यु अवश्य होगी और मरे हुए का जन्म अवश्य होगा। इस (जन्म-मरण-रूप परिवर्तन के प्रवाह) का परिहार अर्थात् रोकथाम नहीं हो सकता। इसलिए इस विषय में शोक नहीं करना चाहिए।
इस श्लोक ने मुझे यह समझाया कि जन्म और मृत्यु ये दोनो ही सत्य है जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित ही है , इसलिए इस पर शोक नही करना चाहिए यही मानव जीवन को सच्चाई है।
