सरप्राइज़

सरप्राइज़

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“चलो जल्दी से, ट्रेन छूट जायेगी"कहते हुए नमित ने मुक्ता का टिकट उसे देते हुए कार की चाबी ली। नमित जानता था की मायके जाना है तो मुक्ता का मन वैसे भी उड़ रहा होगा। जब भी मायके जाने की बात करती नमित उसे टाल देता और मुक्ता फिर बातों बातों में शिकवा करती रहती।

 "देखो इस बार मैं एक-दो महीना रहनेवाली हूँ, हमारी कॉलेज की सब फ्रेंडस ने भी मिलकर कुछ प्रोग्राम रखा है, तुम्हें तो मेरे बगैर बिलकुल चलता नहीं लेकिन अब बहुत हो गया, थोड़ा खुद भी मैनेज कर लिया करो"

और नमित उसे प्यार से देखते हुए मंद मंद मुस्कुरा लिया।

दोनों स्टेशन पहुंचे और ट्रैन में बैठकर थोड़ी देर बातें की, उतने में ट्रेन चली और नमित ने प्लेटफार्म पर से उसे हाथ हिलाते हुए सी-ऑफ़ किया। वापस घर पर आकर रूटीन काम के साथ ऑफ़िस जाने की तैयारी करने लगा। मुक्ता का पहुँचने का फोन भी आ गया। अपने आपको ऑफ़िस के काम में व्यस्त रखते हुए नमित मन ही मन मुक्ता को याद करता रहता। सुबह की चाय जैसे तैसे बनाकर पास की रेस्टोरेंट से नाश्ता मंगवा लिया।मुक्ता ने अपने सगा-सम्बन्धिओ के यहाँ जाकर पप्पा -मम्मी के साथ ख़ुशियों के पल बिताये। भैया -भाभी और उनके बच्चों के साथ वेकेशन में घूमते रहे। नमित ने ठान ली थी की वो उसे फोन करके बिलकुल भी डिस्टर्ब नहीं करेगा। दो विक तक सिर्फ गुड़ मॉर्निग -गुड़ नाइट के मैसेज व्हाट्सप करता रहा। मुक्ता ने घर के और सहेलियों के साथ की पार्टी के फोटो भी भेजे।

फिर एक शाम को मुक्ता मां के साथ बैठी थी,

"मम्मी,में बाहर गयी तभी नमित का फोन आया था?"

"हां, मेरे साथ तो काफी देर बात हुई और तुम्हारे पापा के साथ भी बिज़नेस की और क्रिकेट की बात करते बहुत मज़ा आया"

"ओह, मेरा मोबाईल तो ठीक चल रहा है, शायद किया होगा लेकिन में भी सहेलियों से और ये जो समर वर्कशॉप ज्वाइन किया है उस की बातें चलती रहती, तो बिज़ी आ रहा होगा"

"तू इतने दिनों बाद रहने आयी है, तो सुकून से रह, तुम्हारे बम्बई की तेज़ भागती जिंदगी में ऐसी शांति कहाँ?" 

फिर मम्मी मुक्ता के चहेरे के बदलते भाव देखकर

"क्यों अब घर की याद आ रही है?"

“अरे, नहीं मम्मी, ऐसे ही"

व्यग्र होकर नमित को फोन लगाया, काफी देर बाद उसने फोन उठाया।

"क्यों इतनी देर लगी?"

"ओह ,इतना बिज़ी रहता हूँ,अभी नयी कम्पनी के साथ कोलोब्रेशन होने जा रहा है तो बॉस ने काफी जिम्मेदारियाँ मुझपर छोड़ी है, बिलकुल समय नहीं मिलता”

और जनरल बात करके "बाद में बात करते है" कहा।

और एक विक गुज़र गया, अब मुक्ता को पल पल इतनी बेचैनी होने लगी की बार बार मोबाइल चेक करती रहती, कहीं उसका मिसकॉल आया हो तो ?

मुक्ता ने अपने भाई से इसी रविवार को वापस मुंबई का रिज़र्वेशन कन्फर्म करवाने को बोला। सब को एकदम हैरत हुई और रह जाने के लिए कहा लेकिन मुक्ता ने "वापस आउंगी" कहा और सामान पैक करने लगी।

नमित को अचानक पहुँचकर सरप्राइज़ दूंगी सोचकर ट्रेन में कितने ही विचारों से बहलाती रही। रविवार का दिन था तो ट्रैफिक भी कम था, जल्दी से टैक्सी में घर पहुँची, डोरबेल बजाई तो तुरंत दरवाज़ा खुला और सामने एक लड़का खड़ा था,"आइये आइये मेमसाब,"और जल्दी से हाथ से सामान ले लिया। मुक्ता अंदर जाकर देखती है तो सोफ़े पे आराम से पैर फैलाये नमित बैठा था और सामने टी.वी पर मैच देख रहा था। एक हाथ में नाश्ते की डिश और दूसरे हाथ में बियर का ग्लास। मुक्ता को देख,

"अरे क्यों इतना जल्दी आने का प्रोग्राम बना लिया? ये लड़का जो मिल गया है क्या फर्स्ट क्लास काम करता है और मेरी हर एक चीज़ और समय का ध्यान रखता है" और उसकी तारीफों के पुल बाँध दिए।

वो लड़का मुक्ता के लिए पानी के ग्लास के साथ में फटाफट शरबत बनाकर लाया, 

"साहब,आपके दोस्तों के लिए शाम की पार्टी में क्या बनाना है वो भी बोल दिजीये, मैं आपके इस्त्री के कपड़े आये है वो अलमारी में रखकर आता हूँ"

"अरे छोटू, तू अपनी मर्जी में आये वो बना और मुक्ता तुम थक गयी होगी जाकर आराम करो" 

लेकिन मुक्ता गुस्से में बड़बड़ाती हुई किचन में गयी,

"पता नहीं ये छोटू ने मेरे किचन की क्या हालत की होगी?"

लेकिन देखती है तो किचन एकदम क्लीन, सब चीजें अपनी जगह पर और एक कोने में काँच के बाउल में पानी भरकर तैरते हुए फूल, रुम स्प्रे से महकता कमरा.!!

 और वापस मुड़कर गुस्से से,

"चल ऐ छोटू बाहर निकल, कोई जरुरत नहीं तेरी, कुछ काम आता नहीं तुझे,देख ये ऐसे रखते है ?वगैरह...."

नमित चुपचाप सुनता रहा, बाहर दरवाज़े पर छोटू को,

"कल तू तेरा हिसाब ले जाना"

कहते दरवाज़ा बंद कर दिया।

"क्या हुआ क्यों इतना गुस्सा हो रही हो? "कहते नमित ने मुक्ता को बांहों में भर लिया,

आँखों में भरे भरे आंसुओ के साथ मुक्ता उससे लिपट गयी

"क्यों,अब तुम्हें ये छोटू संभालेगा? मैं मर गयी हूँ क्या? मेरे तुम्हारे बीच में कोई नहीं चाहिए"

और नमित,हँसते हुए

"तुम्हारी जल्दी आने की खबर मम्मी ने दे दी थी, तो मैं चाय की लारी पर से इसको एक्टिंग करने के लिए ले आया, बाकी कल अगर तुम किचन देखती तो सच में गुस्सा होती" और दोनों हंस पड़े।


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