सफर : (भाग १ )

सफर : (भाग १ )

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वैसे वो था बड़ा खुशमिज़ाज,घर के हालात बत्तर थे,मगर वो मुस्कुराता था,हरदम और हर पल,आखिर बच्चा था,कुछ सात या आठ साल कारहा होगा ।स्कूल के नामसे नफरत थी, पढाई में अव्वल था,मगर फिर भी स्कूल जाना उसे पसंद नहीं था।बाप शराबी था,माँ गरीब थी,मगर बहादुर थी,उसे हर मुश्क़िल को मात देना बखूबी आता था।इन्ही मुश्किलों के चलते सरपे कर्जा बहुत बढ़ गया था। आमदनी कम थी और खर्चा ज्यादा था।

वैसे उसका नाम शरद था पर सब उसे गोलू बुलाते थे,बचपन से ही एकदम गोलमटोल था। उसे गोलू चिड़ाते चिड़ाते सब उसका असली नाम भूल ही गए। गोलू की माँ जो की पुरानी हिंदी फिल्मो की माँ जैसी थी उसको सब पुष्पा पुकारते थे,और गोलू का बाप नशे में कभी कभी राजेश खन्ना का वो डायलॉग बोला करता था “पुष्पा i hate tears” जब की उसकी आंसुओ की वजह वो खुद था। गोलू के बाप का नाम था आनंद। वैसे आनंद वाले राजेश खन्ना की तरह इसे कोई कैंसर वगैरा नहीं है हाँ , मगर आगे चलके कोई न कोई बीमारी जरूर हो सकती है,आखिर शराब और बीड़ी की लत ही कुछ ऐसी है।

गोलू को अपने कपड़ो पे कभी ध्यान नहीं रहता था। ज्यादातर वो नंगे बदन ही घूमता था। ऐसा नहीं था की घर में कपड़े थे। मगर औरो के दिए हुए कपड़े पहनना उसे अच्छा नहीं लगता था। हुआ यूं था की एक दिन बंटी की माँ ने अपने बेटे के यानी बंटी के पुराने कपड़े फेकने का फैसला किया जब की बंटी ने वो कपड़े काफी कम बार पहने थे। वो पुराने कपड़े अलमारी से निकाल ही रही थी उतने में पुष्पा बंटी के घर आ गयी। पुरे गांव में बंटी का ही एक घर था जहाँ सब आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध थी। लोगो को तब टीवी का अजब ही शौक चढ़ा था। अपनी गोलू की माँ को भी ये शौक था। तो बस शाम को सारे काम निपटाकर वो बंटी के घर टीवी देखने जाती थी। तो पुष्पा को देखकर बंटी की माँ को यानी सावित्री चाची को लगा की क्यों न ये कपड़े उसे दिए जाये, और उसने पुष्पा से पूछा की “अरी पुष्पा,ये कुछ बंटी के पुराने कपड़े है,वो तो पहनता नहीं अब,क्या तुम ले जाओगी? शायद अपने गोलू को आ जाये” पुष्पाने हां कहकर वो कपड़े अपने पास रख लिए और टीवीपर से उसके पसंदीदा धारावाहिक ख़त्म होने के बाद वो अपने घर चली गयी।

वैसे बता दूँ ये अपनी बंटी की माँ बड़ी नेकदिल इंसान है, किसी को मदत करने के लिए हमेशा तैयार। उसके पति यानी रामलाल मास्टर गांव के स्कूलमें स्कूल टीचर थे।वो भी बड़े नेकदिल इंसान थे।

तो अपनी माँ को कपड़े लाता देख अपना गोलू काफी खुश हुआ था, बंटी के लिए जोकपड़े पुराने हो चुके थे वो उसके लिए नये के बराबर ही थे।वो उन कपड़ो में से सबसे अच्छे कपड़े कौन से है वो ढूंढने लगा। कुछ दो चार कमीज और एक दो पैंट उसे पसन्द आयी।उसमसे उसने एक जोड़ी कल स्कूलके जाते वक्त पहनेने के लिए निकाली,उन दिनों सिर्फ बृहस्पतिवार यानी गुरूवार को ही रंगीन यानी स्कूल यूनिफॉर्म से अलग कपड़े पहने की इजाजत थी। गोलू की स्कूल यूनिफॉर्म तो जगह जगह फट चुकी थी। तो गोलू ने रात को ही अपने लिए नए कपड़े चुन लिए थे।रात को चैन की निंद सोकर गोलू जल्दी उठा,नदी पर जाकर नहाकर आया। माँ ने बनायी हुई बाजरी की रोटी और आलू की सब्जी खाकर वो अपने नये कपड़े पहनने लगा।इतने में रमा चाची की बेटी बबली गोलू को आवाज देते हुए अंदर घुस गयी,उसको अंदर आते देख अपना आधानंगा गोलू घरके अंदरवाले हिस्सेमें गया। कपड़े पहनकर बाहरआकर बबली को बोलता है “ऐसे मेरे घरमें बिंदास मत घुसा कर” बेचारी माफी मांगती है और बोलती है “आइंदा ऐसा नहीं होगा, वैसे ये कपड़े जच रहे है तुझपर“ अपनी तारीफ से गोलू थोडा शरमा गया “सच?” , “मैं क्यू झूठ बोलने लगी?” थोडा खुलकर मुस्कुराते हुए गोलू और बबली दोनों स्कूलके लिए निकलते है।जाते जाते गोलू की माँ दोनोंको पप्पियाँ झप्पियाँ देती है।

गोलू का बाप सुबह सुबह ही शराब पिने शहर की और गया था,गाँवसे करीबन दो या तीन मिल चलकर जाने के बाद शहर में एक दारूकी भट्टी थी,सब बेवडे सुबह से दूसरी सुबह तक वही पड़े रहते थे।कितनो के झगडे होते थे,कितनो को वही निंद आती थी।थोडी शराब वहापर बैठके पिने के बाद, आनंदने थोड़ी शराब थैलीमें फुगा बनाकर अपनेसाथ ली।गोलू के स्कूल जाने के बाद आनंद घर आया। आतेही उसने पुष्पासे कुछ खाने को मांगा,पुष्पाने खाने को रोटी और सब्जी तो दे दी और कुछ गालियां भी खिलायी,आनंद शराबी था पर दिल का साफ था,मगर दिल का साफ़ होना किसी काम का नहीं था,घर चलाने के लिए वो जरा भी मेहनत नहीं करता था। घर के काम,फिर किसी के खेतमें मजदूरी ये सब अकेली पुष्पा करती थी। खाने के तीन ही लोक थे तो इतना भी भार नहीं था,तीन वक्त की रोटी आराम से मिलती थी,और शौक भी कुछ बड़े नहीं थे,घर तो मिट्टी का था,मगर दिल सोने के थे। पुष्पा आनंद से परेशान जरूर थी,मगर वो उसे कमाने नहीं कहती थी,क्यू की एक जमाना था जब पुष्पा का घर एकदम सधन था,जब आनंद कामपे जाता था। एक दिन किसी हादसे उसकी टांग टूट गयी और उसे काम से निकाला गया। ऐसा नहीं था की वो कोई काम नहीं कर सकता था,उसके योग्य कई काम उसके ससुरने यानी पुष्पाके बापने लाये थे मगर उसका कही मन नहीं लगा। होता है,मतलब जिंदगी कभी कभी ऐसे निराश कर देती है की बस जिंदगी से शिकायतसे हो जाती है,मगर साली मौत भी कहाँ आसान है? तो जीना पड़ता है,जबरन।

दोपहर में स्कूल की घंटी बजी और अपना गोलू खाना खाने घर आया,तब सरकारी स्कूलो मे खाना पकाया नहीं जाता था,वैसे भी दस मिनिट की दूरी पर ही तो था स्कूल,बबली और गोलू घर आये तो पुष्पा कामपर चली गयी थी। गोलूने अपने हातसे रसोयी पर रखी गरमागरम चावल और दाल ली,थोडी अपने बाप को भी दी और वह बबली के आने का इंतजार करने लगा। बबली खाना खाकर गोलूके घर आयी और फिर दोनों वापिस स्कूल चले गये। शाम चार बजे सब बच्चो को खेलने के लिए छोड़ा जाता था,वो आखरी एक घंटा शारीरिक शिक्षण के लिए हुआ करता था,जिसमे कोई शारीरिक शिक्षण दिया नहीं जाता था।

गोलू अपने दोस्तों के साथ कबड्डी खेल रहा था,इतने में बंटीके वर्गके सब छात्र उन लोगोसे मुकाबला करने आये। बंटी गोलूसे एक कक्षा उपर था,गोलू दूसरी में था तो बंटी तिसरी कक्षा में।वैसे दोनों कक्षा में अक्सर झगड़े होते रहते थे,और ये कबड्डी का मैच अच्छा खासा मौका था अपनी भड़ास निकालने का। कबड्डीमें बंटी की टीम बुरी तरहसे हार गयी। सब बच्चे बंटीकी टीमपर हंसने लगे,और जबकी अपना गोलू बहोत अच्छा खेला था तो बंटीको उसपर बहोत गुस्सा आया,और उसने सबके सामने गोलू को अपने कपड़े उतारने को कहा जो की गोलूको बंटीके घर से मिले थे। गोलूके गरीबी का भी बंटी ने बहोत मजाक उडाया और उसने सब बच्चोके सामने अपने दोस्तोंके साथ गोलूके कपडे उतारे।गोलू अपनी किताबोकी झोली स्कूलमेंही छोड़कर रोते हुए आध नंगा घरकी और भागा। उसके पिछे पिछे बबली भी दोनों की झोली उठाकर गोलू के पिछे दौड़ी। पता नहीं क्यू पर गोलूको जलील होकर देख वो भी रो पडी थी।

घर आकर गोलूने बंटीकी माँ ने दिये हुए सारे कपडे उसे लौटा दिए,लौटाते वक्त भी उसके आंसू नहीं रुक रहे थे। बंटी की माँ को शाममें जब बंटी की हरकत पता चली तो उसने बंटी को बहोत पिटा,और उसे गोलूसे माफी मांगने को कहा। बंटीने माफी तो मांगली,मगर गोलूके लिए उसके दिल में नफरत बढ़ रही थी,गोलू की कारण उसकी माँ ने उसे पिटा जो था। बंटी की माँ ने पुष्पासे भी माफ़ी मांग ली,पर “बच्चे है,ऐसा होता रहता है” कहकर पुष्पाने अपना बड्डपन दिखा दिया। गोलू का मूड आज कुछ ठीक नहीं था। वो अपनी माँ से नाराज था,क्यू की उसने बंटीको कुछ भी सबक नहीं सिखाया था,जब की उसकी ख्वाहिश थी उसकी माँ बंटी की माँ से जोरदार झगडा करे,बंटी को भला बुरा कहे।

रात को सोते वक्त,शराब की बोटलमें मिट्टीके तेलसे एक ज्योत जल रही थी तब बिजली भी काफी कम घरो मे थी। नाराज गोलू माँ की गोदसे दूर भाग रहा था ये कहकर की “माँ तूने बंटी को क्यू कुछ नहीं बोला?” अपने लाल के दिल का हाल पुष्पा से बेहतर कौन समझ सकता था।मगर गरीबी एक ऐसी बीमारी है जो इंसान को खोकला कर देती है,इंसान का जमीर मार देती है,इंसान चाहकर भी अपनी मर्जी से जी नहीं सकता,उसके पास दो ही पर्याय उपलब्ध होते है,एक ये की गरीब अपनी मर्जी से मर जाये या फिर सामने आनेवाली हर जिल्लत,हर अपमान चुपचाप सहे। पुष्पा के लिए ये अपमान छोटा नहीं था,मगर बच्चो के झगडे बोलकर उसने अपनेआपसे समझौता कर लिया था,कही ना कही कसूर उसके गरीब होने का भी था। जो की वो अपने गोलू को नये कपडे नहीं खरीद सकती थी। उसने अपनेआपको तो समझाया था,मगर गोलू को समझाना काफी मुश्किल था।

ये गरीबी वगैरा समझ सके उसकी उतनी उम्र नहीं थी,उसने कहा की जो बंटीको मिलता है,वो मुझे क्यू नहीं मिलता?गोलू के किसी भी सवाल का पुष्पाके पास कोई जवाब नहीं था,गोलू के सारे सवाल बिना जवाबोंके ही रह गये,क्यू की पुष्पा जवाब देती भी अगर तो शायद गोलू समझ नहीं पाता,इसलिए गोलू का बड़ा होना जरुरी था।


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