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Premdas Vasu Surekha 'सद्कवि'

Drama Classics Inspirational

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Premdas Vasu Surekha 'सद्कवि'

Drama Classics Inspirational

संस्कारो में सुरेखा

संस्कारो में सुरेखा

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ये राजस्थान है जहां धूल उड़ती है और पानी को तरसते हैं लोग। कब नसीब होगा वो सुख जब समान जीने का अधिकार मिलेगा । ये वीरों की भूमि राजस्थान और पानी को तरसते वीर, फिर भी इसका यश, गौरव सिरमोर है क्यों ,क्या है इसमें ऐसा लोग सुबह जल्दी उठते हैं । और अपने काम पर लग जाते हैं । यही तो इसकी महानता है ये मानवता और मानव मानव के लिए बने है। अभी कुछ ही समय है बात हैकी पारख वसु के प्रेम और लॉटरी शहर की कन्या सुरेखा शादी के पवित्र बंधन में बंधे हैं । प्रेम क्या होता है यह स्वयं प्रेम भी नहीं जानता फिर भी प्यार प्यार होता है । जो निभ जाएं तो जन्म जन्मांतर चलता है नहीं तो आज का ये संसार है जो कब खत्म हो जाये किसी को पता नही .....

फिर भी ये मरुभूमि है यहाँ सब कुछ अच्छा है और होगा भी क्यों नहीं, जहाँ प्रेम और सुरेखा जैसे व्यक्तित्व के धनी लोग हैं, जो मानवता के लिए बने हैं और मानवता को प्रतिष्ठित करना ही उनका ध्येय बना है । आप सब जानते ही हो यहां पानी को अमृत के समान उपयोग करते है, उसका प्रयोग करते हैं। फिर भी कुछ है जो रूढ़िवादिता को लेकर समाज में अपनी पैठ बनाए हुए हैं। कौन किसको समझाएं ,और क्यों समझाएं ,आज ज्ञान ही बिक रहा है और झूठ बोलने वाला पीएम बना है । चलो जिसको स्वयं पर विश्वास उस पर कुछ आचं । यही तो प्रेम और सुरेखा का सिद्धांत है सच के लिए लड़ना ही पड़ता है झूठ हमेशा नहीं फुल सकता । पर सच जिंदगी का पुण्य फल है । जब सुरेखा पारख वसु गावँ की बहू बनकर आती है , तो कुछ लोग उसे अजीब , अजीब से लगते हैं ...

कुछ माह बीत गए जाने के बाद , एक दिन अपने सहधर्मी प्रेम से बोल ही उठी

हे परमेश्वर ! मैं आपसे कुछ कहूं पर आप इसमें मेरी बुद्धिमता मत मान लेना क्योंकि आपको भी बुरा लग सकता है सुरेखा कहने में संकोच कर रही है और बात को दबाने की कोशिश करती है पर प्रेम जो कि पारक वसु गांव का बोला मम् सहधर्मिणी जी आपको जो कुछ भी कहना है निसंकोच होकर कहो क्योंकि सच छिपाने से नहीं छिपता उसे तो एक दिन बाहर आना ही होता है । जिंदगी डरना , वह भी सच के लिए यह समझ लेना , वो डरना नहीं अपने आप को धोखा देना है । सुरेखा जी आप मन में मत रखो उसे खुलकर मेरे साथ साझा करो कुछ देर बाद ,कुछ समय बाद सन्नाटा सा हो गया फिर बोली है हे साहेब ! जहां हम रहते है वहां पानी अमृत है और इसके बिना जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है । हम कुछ दिन भूखे रह सकते हैं पर पानी के बिना नहीं , यहां धूल के टीले कब कहां बन जाएं किसको पता , क्या कहूं मैं आपसे कल सुबह जब मैं गांव से होकर रामरखेला कुएँ पर गई तब मैंने देखा कि गांव के कुछ ब्राह्मण लोग स्त्री और पुरुष सूर्य देव की ओर मुँह कर के जल गिरा रहे थे,कम से कम 2 लीटर पानी के लोटे के साथ ।

मैं उनको देखकर परेशान हो गई सोचा यहां तो पानी पीने को नहीं है और ये लोग व्यर्थ में पानी बेकार कर रहे हैं , मैं सोच सोच के परेशान हो गई । ये पानी बेकार करने से अच्छा है कि इसे किसी पेड़ में डाल दिया जाए या किसी प्यासे व्यक्ति को पिला दिया जाए। जिससे पानी की बचत भी होगी और लोगों की प्यास भी बुझेगी कुछ दिन पहले मैंने गाँव की गुलाब सासु से कहा तो वह नाराज हो गई , गांव में प्यार से उसे पण्डू कहते हैं उसने मुझसे कहा कि आप शायद ज्यादा चतुर समझदार हो । क्या आप को पता नही यह तो हमारी आदि परंपरा है , और इसे पूरा करना हमारा फर्ज है । बात तो सही है मैंने कब मना किया कि आप ऐसा मत करें वह कहने लगी आप अपने को ज्यादा ही समझदार समझती हो क्या , हम तो ऐसे ही करते रहेंगे , क्योंकि हम ब्राह्मण हैं और सूर्य हमारा भगवान है भगवान की सेवा करना हमारा हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है । तुम मध्यमो को क्या तुम कभी नीचे के साथ , तो कभी उच्चो के साथ , तुम्हारी स्थिति तो त्रिशंकु जैसी है । तुम बिना पन्दे के लोटे हो , क्या कहूं आपसे उन्होंने मुझसे बहुत बुरा , बुरा कहा ।

कुछ समय बाद सुरेखा रोने लग गई और अपने सहधर्मी प्रेम से लिपट गई । प्रेम ने समझाया कि आप क्यों रोती हो क्या आपने कोई गलत काम किया है , जो आप इतना दुख करती हो ।

आपने सही कहा जो यह जल बेकार जाता है इससे तो अच्छा है कि इसे किसी पेड़ पर चढ़ा दिया जाए या किसी प्यासे को पानी पिला दिया जाए परंतु यह संसार देखा देखी ज्यादा करता है । आप चिंता ना करें मैं उनको सबक जरूर सिखाऊंगा सुरेखा प्रसन्ना हो जाती है।

और फिर प्यार भरी बातें होने लगती है...।।।

एक दिन पारख वसु गांव में पर्यावरणविद् रामहेत जी आते हैं और गांव वालों को समझाते हैं। की ऐसा ही रहा तो यह संसार प्यास से मर जाएगा ।

हमें जल की कीमत समझनी चाहिए, हमें जल का सदुपयोग करना चाहिए ,क्योंकि जल जीवन है यह हमें प्रकृति द्वारा मिला है । हमें व्यर्थ में इसे बेकार नहीं करना चाहिए , हमें अधिक से अधिक पेड़ों में पानी देना चाहिए और जिससे हमारा वातावरण शुद्ध रहेगा और प्रकृति रूपी बारिश भी अच्छी होगी ।

आप सब को पहले ही पता है ये राजस्थान है जो मरुभूमि है यहां बारिश नाममात्र की होती है और हम पानी को यूं ही बर्बाद कर रहे हैं हमें समझना चाहिए और जल को बचाना चाहिए , क्योंकि हमारा सीएम ही कहता है - पानी बचाओ , बिजली बचाओ और सब को बढ़ाओ, मैं कहता हूं मानव बनाओ जिससे मानवता संसार में प्रतिष्ठित हो रामहेत जी का उपदेश चल ही रहा था की प्रेम महात्मन् से प्रश्न कर बैठा की हे महात्मन् ! मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूं , क्या आप की इजाजत है , महात्मा बोला हे जिज्ञासु प्राणी ! बोलो महात्मा जी सूर्य को अर्घ देना अच्छा है परंतु पानी को बर्बाद करना अच्छा नहीं , महात्मा कुछ संशय में हुए और बोले वापस बोलो प्राणी ।

महात्मा यह जो भारत है इसमें रूढ़िवादिता कण कण में बसी है परंतु हमें संसार के अनुसार ढल जाना चाहिए तभी पंडू बोल उठी महाराज ! इसका कहना यह है कि सूर्य को अर्घ मत चढ़ाओ पानी को गरीबों में बांट दो और हम ब्राह्मणों की पूजा बंद कर दो परंतु मैं पंडू कह देना चाहती हूं की जब तक मैं पारख वसु गांव में हूं तब तक सूर्य को अर्घ यू ही चढ़ाती रहूंगी और महादेव जी को भी यूं ही पानी चढ़ाती रहूंगी ।

आप चाहे इसमें पानी की बर्बादी ही समझे लेकिन मैं तो ऐसा करती रहूंगी क्योंकि हम ब्राह्मण हैं और यह हमारा काम है यह तो बड़ी उलझन हो गई सूर्य को अर्घ देना हमारी संस्कृति का अंग है और खासकर ब्राह्मण जो कि उसके पहरेदार हैं क्या करें महात्मा परेशान प्रेम उस महात्मा को अपने घर ले आता है। सुरेखा उस की अच्छी सेवा करती है उसे अच्छा भोजन बना कर खिलाती है खाना खाने के बाद सुरेखा जी पूछती है। हे महात्मा ! क्या हुआ आप कुछ परेशान नजर आ रहे हो क्या कहूं बेटी ये ब्राह्मण होते ही नीचे है क्यों क्या हुआ ये बस स्वयं का ही भला चाहते हैं पर यह नहीं सोचते की जल पर सबका समान अधिकार है इसे व्यर्थ में बेकार नहीं करना चाहिए इसका सदुपयोग करना चाहिए तभी सुरेखा बोल उठी थे महात्मा आप कहे तो मैं आपको इसके लिए कुछ उपाय बता सकती हूं अगर आपको अच्छा लगे तो तभी महात्मा बोले हे बेटी अगर आप के उपाय अच्छे रहे और मुझे उचित लगे तो मैं उसे पूरे भारत में लागू करवाने की कोशिश करूंगा और आप की भी जय जयकार होगी तभी महात्मा बोले अच्छा तो बेटी बताओ ।

हे महात्मा मैं आपको दो उपाय बताती हूं अगर आपको अच्छा लगे तो जरूर लागू करवाए मैंने यह सब अपने मित्र जनों अपने गुरुजनों और महान व्यक्ति के आदर्शों से अपनाएं हैं ये हमारे संस्कार ही हैं सुरेखा जी बोली नंबर 1....

पानी का अर्घ दो सूर्य को दो परंतु देते समय यह देख लो कि वह पानी जमीन में किसी पेड़ पौधे में गिरे जिससे पानी बेकार न जाए और हमारा वातावरण भी अच्छा हो .....

नंबर दो .. पानी का अर्घ दो वह पानी किसी प्यासे को पिलाते हुए जिससे उसकी प्यास भी बुझ जाएगी और आपका काम भी हो जाएगा ।

वाह सुरेखा जी ! आपकी बुद्धि ही कमाल की है आपकी दोनों बातों में दम है फिर भी मुझे आपकी नंबर एक बात बहुत अच्छी लगी महात्मा जी चले जाते हैं महात्मा जी बहुत दिनों बाद आते हैं और सुरेखा की बात पूरे हिंदुस्तान में सुनाई देती है कि पानी की बर्बादी कम करो उसे पूरी तरह बंद करने का प्रयास करो धीरे धीरे लोगों में जागृति आती है । तभी कुछ वर्षो बाद पंडू अपने बच्चे के साथ कड़कढ़ती धूप में पास के ही गांव में जा रही थी । उसे रास्ते में प्यास लगती है तभी कुछ दूर उसे एक घर नजर आता है और वह उस घर के पास चली जाती है वहां जाकर कहती है हे बहन ! पानी है क्या घर से बाहर एक स्त्री निकलती है और कहती है हां जी है पर यह पानी आप के पीने लायक नहीं है क्यों? क्या हुआ? आप मुझे उच्च कुल से मालूम लगती हो और शायद पूजा पाठ हवन अर्पण सब कुछ करती हो परंतु हम मध्यम श्रेणी के क्या जाने ये बातें आपको पता है ये मरूभूमि है यहां पानी की विकट समस्या है यहां जानवर तो क्या मानव भी सभी तड़प तड़प के मर जाते हैं फिर भी यदि आपको पानी पीना ही है तो पिला देती हूं परंतु यह जो पानी है वह सूर्य को अर्घ दिया हुआ है जिसे हमने जनता को समझा कर बचाया है और काम में लिया है हमारे देश में जो सुबह पूजा पाठ हवन अर्पण किया करते हैं और उससे कितना पानी बर्बाद हो जाता है हां यह तो मैं सब कुछ जानती हूं परंतु क्या करें आज से 7 - 8 साल पहले हमारे गांव में भी सुरेखा और प्रेम की जोड़ी रहती थी उन्होंने भी पानी बचाने की हमें सीख दी थी परंतु मैं मंदबुद्धि उनकी बातें नहीं समझ सकी और आज यह स्थिति आ गई है तभी पंडू सोचते सोचते दुखी हो जाती है और कहती है मुझे आज यह एहसास हो रहा है कि उस समय अगर मैंने सुरेखा की बात मान ली होती तो आज कितना अच्छा होता तभी घर से एक बालक आर्यमान निकल कर आता है और कहता है ।

हे माँई ! मेरी माँ ही तो सुरेखा है जिसकी सोच पवित्रता की कुंजी है पर किसको समझाएं तभी पंडू उनके चरणों में गिर जाती है और कहती है ।

धन्य है तू बेटी और धन्य है तेरा बेटा माँई पानी पी लेती है और अपने बेटे को भी पिलाती है और पानी बचाने का ऐलान कर देती पूरे गाँव में.....


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