सनफ्लावर

सनफ्लावर

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"प्रभात उठो ना" चारु ने सिर पे हाथ फेरते हुए कहा,


"अरे आज तो संडे है ना सोने दो” प्रभात ने कहा


“पर मैं बहुत परेशान हूँ उठो पहले”


"जी बोलिए हूजूर क्यो परेशान हैं आप?" चादर से बाहर निकाल कर प्रभात ने अधखुली आँखो से चारु को देखते हुए कहा


"तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो चारु, इस आँरेज रंग की साड़ी में, बिल्कुल सनफ्लावर की तरह। इसी खुशी में मुझे सोने दो” प्रभात फिर चादर के अंदर


"जाओ सो जाओ”, चारू ने गुस्सा होते हुए कहा


"थैक्यू कोई संडे को इतनी सुबह उठता है क्या?" चारु के गुस्से पर तो पेट्रोल डल गया था


"जी हाँ आप सो कर भी नहीं उठ सकते और मैने नहा भी लिया, पर आपको क्या? इतनी परेशान हूँ आपको कोई फर्क ही नहीं पड़ता, मुझे ना..., ना ये शादी ही नहीं करनी चाहिए थी। सब सही कह रहे थे, मैं ही बेवकूफ थी” चारु अपने आप में ही बड़बड़ा रही थी


"रूक जाओ मेरी सनफ्लावर, अभी एक ही महीना तो हुआ है शादी को अफसोस ना करो, बोलो मैं उठ गया ,क्यो परेशान हो?"


"नहीं बताना” चारु ने मुँह फुलाते हुए कहा।


"प्लीज बता दो मेरी प्यारी सनफ्लावर" ,प्रभात ने चारु का हाथ पकड़ कर कहा।।


"मम्मी ने थोड़ी देर पहले कहा है, कल एकादशी है, उपवास करना है” चारु ने धीरे से दबी जुबान में कहा


"ओहो मेरी चारु जी की सुबह-सुबह की चिंता ये है” प्रभात उठ कर बैठ गया।


"हाँ वही तो मैं कैसे रखूंगी उपवास? मुझसे भूखा नहीं रखा जायेगा। एकदाशी रखी तो दाद्मादशी तो मैं देख ही नहीं पाऊंगी। मेरे घर में तो होता भी नहीं था। मैं क्या करुंगी?”


"शांत हो जाओ, तुम्हें नहीं रखना ना, उपवास मत रखो, परेशान मत हो”


“कहना कितना आसान है ना जो मम्मी को बुरा लगेगा वो”


“डिसाइड कर लो पहले तुम्हें उपवास रखना है या नहीं, यदि नहीं रखना तो किसी को बुरा लगेगा या अच्छा ये सोचना छोड़ दो” प्रभात ने कहा


"हाँ आपके लिए कहना आसान है, मैं नयी बहू हूँ मुझे सब लोग बुरा कहने लगेगें और यदि यही बात मेरी माँ मेरी भाभी को कहे, और भाभी मना कर दे तो उन्हे भी अच्छा नहीं लगेगा” चारु ने कहा


“तुम औरतो का यही प्रॉब्लम है कन्फ्यूज रहते हो हमेंशा”


“मतलब क्या है? औरतो का यहीं प्रॉब्लम है, आप औरतो को समझते क्या है?”


“कुछ नहीं मालकिन तुम सनफ्लावर से झांसी की रानी मत बनो। देखो चारु ये बात मैने तुम्हें पहले भी कही थी, वही करना जो तुम हमेंशा कर सको, आज तुम अपनी मर्जी से अलग जाकर उपवास रखोगी, इससे माँ तो खुश होगी, पर उससे तुम्हें तकलीफ होगी क्योंकि तुम उपवास नहीं रख पाती,.और एक दिन की बात भी नहीं है, फिर इसके बाद माँ की उम्मीद तुमसे ज्यादा बढ़ जायेगी। और उपवास नहीं रखने से परिवार की आन बान शान को फर्क नहीं पड़ने वाला, ये एक नार्मल बात हैं। इसलिए अभी वही करो जिससे आगे भी सब कुछ सहीं रहे”


चारु ने टेढ़ी नजर से प्रभात को देख “हो गया आपका, कौन करेगा माँ से ये बडी़ बडी़ बात"


“मैं और कौन? चलो मैं करता हूँ बात”


"लेकिन रुको सोच लो"


जब तक ये चारु कहती, प्रभात बाहर आ चुका था और माँ किचन में नाश्ते की तैयारी में लगी थी।


"माँ अब तो आपकी बहू आ गयी तब भी आप किचन में नजर आती हैं”


“नहीं रे, वो सब संभाल ली है मेरा मन ही नहीं मानता। इसलिए कभी-कभी आ जाती हूँ किचन में, फिर एक से भले दो। पापा भी कह रहे थे बहू अच्छी है पढी़ लिखी है जॉब करती थी, अब भी करे तो अच्छा हैं। इसलिए मैं भी मदद करती हूँ उसकी” माँ ने प्रभात को चाय देते हुए कहा।


चारु किचन की बाहर की दिवाल पे छोटे बच्चों की तरह छुप गयी, जैसे पी.टी.एम में बच्चे की शिकायत होने वाली हो। प्रभात ने मुँह बनाते हुए कहा


"नहीं माँ तेरी बहू अच्छी नहीं है”


"कौन बोला ऐसा?, वो सबसे अच्छी हैं। तू कुछ भी मत कहा कर” माँ ने जोर से ये बात कही


"अच्छा यदि एकादशी का उपवास ना रख पाये तो भी अच्छी रहेगी क्या?" प्रभात ने माँ की आँखों में झांकते हुए कहा।


"ओह ये बात है, ना रखे ना, यदि हिम्मत नहीं है तो, मुझे बता देती सुबह, कहाँ है चारु यहां आओ”, माँ ने आवाज लगाई, चारु सिर झुकाकर आ गयी, और धीरे से बोली,


"वो माँ मैं कभी भूखी नहीं रही तो पता नहीं कैसे रह पाऊंगी भूखी”, चारु ने सिर झुकाकर धीरे से कहा।


माँ ने मुस्कुरा कर कहा, “बेटा तुझे भूखा रहना भी नहीं है, वो क्या कहते है फ्रूट डाइट पे रहना कल बस। उपवास का मतलब भूखा रहना नहीं होता। उपवास का अर्थ हैं त्याग। गलत भावनाओं का त्याग। गलत विचारों का त्याग। कोई उपवास नहीं रखना तुझे”


चारू माँ के गले लग गयी और प्रभात अपने सनफ्लावर को अपने घर के सूरज की छाँव में और चमकता देख रहा था।



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