मन के छालों पर मिर्च और नमक हैं

मन के छालों पर मिर्च और नमक हैं

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हैलो बेटा, कैसी हो ?

ठीक हूँ माँ।

आज सुबह सुबह फोन, सब ठीक है ना घर पे।

हाँ, सब ठीक है, वो आज उपवास है न वट सावित्री।

हाँ माँ मुझे पता है।

अरे मेरी बेटी बड़ी हो गयी, नहीं तो पहले मुझे बताना होता था कि कौन से दिन कौन सा उपवास है ?

हाँ माँ एक पाँच साल की बच्चे की माँ, भी तो आपकी बेटी हो गयी हैं ना।

तू तो चाय पी लेती है उपवास में तो, चाय पी लेना।

नहीं माँ।

नहीं क्यों ? हमेशा तो पी लेती थी, इस बार भी पी लेना, उपवास पे, घर का काम हैं, बच्चे भी हैं, सब देखना होता है, पी लेना चाय।

नहीं माँ चाय बस पीने की बात नहीं हैं, मैंने उपवास नहीं रखा।

हे भगवान पर क्यों नहीं रखा, बुखार तो नहीं हैं, ऐसा वैसा तो कुछ नहीं ?

नहीं माँ सब सही हैं बस अब की बार मन नहीं हैं किसी उपवास का ?

पर बेटा ये सावित्री जी का उपवास हैं ऐसे नहीं करते।

माँ सावित्री तो मै पिछले सात साल से हूँ, मन वचन और कर्म से, आगे भी रहूँगी पर जब जिसके नाम पे, पूरे दिन उपवास हो ,पेट की अंतड़ियो को जिसके नाम पे सुखा दिया जाता हैं, वही शाम को आकर दो मीठे बोल बोलने के बजाए हड्डी तोड़ दे, मारे पीटे, गाली गलौज करे, सावित्री को कुलटा कहे, इस से अच्छा है कि उपवास न रखूँं अब हर उपवास मन के छालों पर मिर्च और नमक का काम करता है।

पर बेटा पाप लगेगा।

पाप और पुण्य इंसान के कर्म तय करते हैं माँ। राम जिसे दुनिया मर्यादा पुरुषोत्तम कहती है, जो सत्यवान के लिए सावित्री यमराज से भी लड़ गयी, वो पति भी अपनी पत्नियों से पवित्र प्रेम करते थे इसलिए भी वो सीता और सावित्री बन पायी। श्रीराम ने एक बाहर वाले के आरोप में अपनी जीवनसंगिनी को छोड़ तो दिया पर उन्होने अपने पूरे जीवन में केवल एक और आखिरी बार प्रेम किया केवल एक ही नारी से, स्त्रियों का सदा आदर किया, चाहे दूसरी माँ के रुप में कैकेयी हो या पत्थर समान हुई अहिल्या या शबरी. सत्यवान् बडे धर्मात्मा, माता-पिता के भक्त एवं सुशील थे।

पर मेरे साथ जो इंसान है वो पिछले सात साल में मेरे लिए एक पल के लिए भी सत्यवान नहीं बन पाया, जब उसे पाप नहीं लगा, ऐसे व्यक्ति के लिए उपवास न करके मुझे भी कोई पाप नहीं लगेगा। 


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