सम्मान
सम्मान
एक य़ुद्ध के मैदान में बड़ा युद्ध हुआ। सेना में हाथी, घोड़े भी शामिल थे। मैदान में जगह जगह योद्धाओं के अंग कट कर गिरे हुए पड़े थे। एक गिद्धों की टोली वहाँ मंडराने लगी। सरदार गिद्ध ने कहा, “मैं अवलोकन करके आऊँगा, तब भक्षण करेंगे।” बाक़ी गिद्ध सरदार की बात बात मान गए। वे प्रतीक्षा करते हुए ऊँचे पहाड़ पर बैठ गए। गिद्ध सरदार मैदान के क़रीब आया, निरीक्षण किया तो पाया कि वे वीर योद्धा के टुकड़े टुकड़े शरीर थे। इस प्रकार क्षत विक्षत वीर योद्धाओं को देख मांस भक्षी प़क्षी का मन भी उदास हो गया। उसके नेत्रों में जल भर आया। वह पहाड़ पर बैठे अपने गिद्ध दल के पास गया और उनसे कहा, “यह मैदान वीरों के मांस और लहू से लथपथ है, हमारे लिए प्रचुर मात्रा में भोजन है, किंतु हम इन वीरों के मांस से अपनी भूख नहीं मिटाएँगे। क्योंकि ये वीर सिपाही देश की प्रतिष्ठा हेतु लड़े और अपने प्राण न्योछावर कर दिये, मैं इनका सम्मान करता हूँ। अब इनके परिवार के लोग इनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, जीवित या बलिदानी हो कर, जिस भी तरह घर पहुँचे, इनका पहुँचना आवश्यक है। अत: हम यहाँ भोजन नहीं करेंगे, चलिए, आगे चलकर भोजन की खोज करेंगे।“