निर्णय
निर्णय
आत्मविश्वासी मधुबाला आज फिर गुमसुम बैठी अपने आप पर तरस खाने लगी। अभी अभी मेहमान गए, वह बर्तन माँजकर और रसोई साफ़ करके कमरे में आई थी। पति गहरी नींद में सो भी गए! दोस्त तो उनके ही हैं, जब मन करे दोस्तों को निमंत्रण भी वही दे आते हैं, लेकिन सारा का सारा काम मधुबाला के ही ज़िम्मे आता है। कच्चे सामान की ख़रीदारी से लेकर भोजन तैयार करने, घर की सजावट, अतिथियों की आवभगत और सबके जाने के बाद पूरा घर साफ़ करना।
पतिदेव तो बस उनके दोस्तों के साथ बैठे गप्पें लड़ाते रहते !
कहाँ तो माँ और पिताजी ने उसे बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन करवा कर स्वयं अपने पैरों पर खड़े होने लायक़ तैयार किया था और कहाँ पति ने काम करने पर पाबंदी लगा दी! पहले उसे बुरा लगा कि उसका निर्णय पति क्यों ले? फिर गृहस्थी की शुरूआत ही थी तो उसने भी सोचा कि उच्च शिक्षा का उपयोग घर को बेहतर करने के लिए करेगी। लेकिन उसकी मेहनत एवं अच्छाई का नतीजा यह हुआ कि पति उसके गुणगान करके अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाता था और घर भर की अधिक से अधिक अपेक्षाएँ उसी से रखने लगा।
आज भी जब वही सब दोहराया गया तो उसे दुख हुआ कि इतनी शिक्षित होकर भी वह अपनी स्थिति बेहतर नहीं कर पा रही थी। वह कोई रोबोट नहीं है कि अपना अच्छा बुरा सोच भी न पाए! ग्लानि और क्षोभ से भरकर बहुत देर सोच -विचार करने के पश्चात् कुछ निश्चय करके वह उठी और जिस जगह शादी से पहले जॉब करती थी, वहीं जॉइन करने के लिए पुन: आवेदन कर दिया। उसकी क़ाबिलियत तथा गुणों के आधार पर अगले दिन ही उसे काम पर बुला लिया गया। सुबह जब उसके पति उठे तो टेबल पर मधुबाला द्वारा लिखी एक पर्ची रखी थी। "आज से मैं पुन: जॉब जॉइन कर रही हूँ। यह घर जितना मेरा है, उतना ही तुम्हारा भी, आज से घर का काम भी आधा-आधा हम दोनों में बंटेगा। शाम को लौटकर बाकी बात करूँगी।" मधुबाला का आत्मविश्वास ज़रा भी कम न हुआ था
उसके पति को पत्नी की इस हरकत पर बहुत ग़ुस्सा आया और उसे डाँटने और घर लौट आने के लिए तुरंत फ़ोन लगाया लेकिन मधुबाला ने फ़ोन नहीं उठाया। कुछ ही देर में पति के मोबाइल पर मैसेज आया कि "अभी एक महत्वपूर्ण मीटिंग में हूँ। फ़्री होकर बात कर पाऊँगी। लंच मैंने बना दिया है, आज से रात के भोजन की ज़िम्मेदारी तुम्हारी रहेगी।"