सीख..
सीख..
"भागदौड़ भरी जिंदगी से सुकून भरी शांति कब मिलेगी!! पता नहीं, क्योंकि परिवार की भड़ती समस्या को खत्म करने की जिम्मेदारी जो मुझे समझनी थी. मुझे नहीं ख्याल रहा की, समस्या का समाधान बनते बनते,, में खुद ही के लिये कश्मकश में उलझ जाऊंगा?"
लम्बी सांस भरते हुए दिल को दिलासा दिया और चाय का प्याला मेने होंठों से लगाया ही था कि उतने में मेरे केबिन के बाहर महज़ एक छोटी सी भहस सी हुई जो की कुछ देर की थी. कुछ क्षण भर तो ये महसूस हुआ की ये नौकरी छोड़ कर चला जाऊ मगर मजबूर होकर उस फैसले से उस चाय की चुस्की को निपटाने की झुंज में लग गया.... वक़्त कम था सभी काम को निपटाने में,, में अपने कार्यालय के बाहर निकला; तो बारिश की बूंदे होते होते कब वो चार बिलांत की बूंदे बन गयी और बस निकलने की नौबत तक नहीं हुई...
बारिश बहुत तेज़ होने लगी, मेरे कपड़े भी भीग गए थे अब तो बस सर्दी ,जुखाम होने का इंतज़ार बाकी था. सब्र का बाण मानो टूट ही गया था, रिक्शा को रोकने पर भी नहीं रुका था . में करीब आधे घंटे तक वहां खड़ा रहा, लेकिन कोई रिक्शा नहीं रुका था, तबियत परेशां हो गई सर का दर्द बढने लगा!.." हम मिडिल क्लास फैमिली की कहानी ही बहुत रोमांचक होती हे" , हर पल हमें शंघर्ष की सीढ़ियों को पार करना पड़ता है काफी देर तक इंतज़ार करना पड़ा मगर कोई सहायता नहीं मिली आस पास देखा तो सभी लोग अपने काम में लगे हुए थे.... मानो जैसे बारिश की ज़िद्द भी उन्हें रोक ना पायेगी...
तभी एक बाइक में सवार एक लड़का उतरा-- कद लम्बा, सांवला सा , बाल उसके बिखरे हुए ढीली पैंट और उसके पीछे बैग लटका हुआ! शायद कोई ऑनलाइन फूड डिलिवरी वाला था?
इतनी बारिश की वजह से वह पूरा भीग चुका था उसके पीछे लटके बैग से लगा जैसे उसकी ज़िम्मेदारियों का हाल बयां कर रहा हो ...
कुछ देर बाद उसने अपनी बाइक रोक कर, कॉल लगाया, कुछ बात हुई और कोई राह चलती गाडी ने उसके पैरो को कीचड़ से नहला दिया फिर भी सहनशीलता को बरकार रखा और उसने उस खाने को सही पते पर देकर फॉर्मलिटीज को पूरा किया व अपनी दिशा की ओर चल दिया...
उस वक़्त एहसास हुआ की हम तो अपनी समस्याओं को इतना दुखद समा बना लेते है… मगर कुछ लोग उसे अपना कर्त्तव्य समझ कर अपना जीवन सुखद बनाने में संतुष्ट रहते है...