शोक

शोक

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आज अपनी एक सखी, समीक्षा के घर उस के पिता की मृत्यु पर शोक प्रगट करने गयी। कल ही पता लगा था उन के स्वर्ग सिद्धार जाने का। नहा धो कर, तैयार हो कर गयी। बिंदी , लिपस्टिक भी लगायी, क्यूंकि मैं ऐसे ही बाहर जाती हूँ। दोपहर १२ के बाद का समय पक्का कर, मैं १२.२० के लगभग वहां पहुंची। मेरी ही सोसाइटी में रहती हैं यह भी। मेरे वहां पहुंचने के साथ साथ ही कुछ और महिला मित्र भी वहां पधारीं। उन में से ज़्यादातर बिना नहाये धोये, गंदे कपड़ो में वहाँ पहुंची थी। मैं देख कर हैरान थी, मैंने उन्हें हमेशा अच्छे से ही तैयार ही देखा है, रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में भी। तभी मैंने देखा वह लोग मुझे कुछ अजब निगाहों से देख रहीं थी। मुझे देख कर हैरान और थोड़ी परेशान भी लगीं। मेरे साथ बैठी एक मित्र ने धीरे से कान मे कहा, तुम इतना तैयार हो के क्यों आयी हो ? अफ़सोस करने आयी हो या पार्टी में ? हालाँकि पार्टी वियर में नहीं थी में। सादी सूती घुटने तक की फ्रॉक या कहें तो मिडी भी कह सकते हैं पहन कर गयी थी। 

फिर अचानक से सुषमा उठी और समीक्षा के गले लग के ज़ोर ज़ोर से रोने लगी. फिल्म रुदाली जैसे आँखों के सामने एक दम शूट हो रही हो। फिर तो रोने का सिलसिला शुरू हो गया। एक एक कर के सभी समीक्षा के गले लग कर रोने लगी, समीक्षा जो अब तक संभल चुकी थी, एक दम से टूट गयी। उन सभी का गले लग के रोना और फिर उस के आँसुओं का बाँध जो टूटा तो संभाले नहीं संभल रहा था। मैं थोड़ी परेशान सी हो गयी, मुझ से चुप न बैठा गया। मैंने कहा, की तुम्हारे पिता अच्छी भली ज़िन्दगी जी के गये हैं, तुम्हें उन्हें रो रो कर याद करने की बजाये उन के जीवन का उत्सव मनाना चाहिए। अब तो वह सब मुझे बड़ी ही अजीब सी निगाहों से देखने लगीं, आखिर उनके अफ़सोस करने के आधार को ही चुनौती सी देती लगी मैं।

समीक्षा को पिता के खोने का गम तो होगा ही पर वह एक भरी पूरी ज़िन्दगी जी कर गए थे, पिछले कई वर्षों से उन का अपने शारीरिक कर्मों से नियंत्रण भी ख़त्म सा था। एक तरह से तो वह अपने नरक से छूट ही गए थे। उसकी माँ की दिनचर्या पिता की सेवा में ही गुज़र जाती थी। एकलौते बेटे ने पिता के साथ जॉइंट अकाउंट से एक दिन सारे पैसे निकाल कर जैसे पिता की जीवन भर की कमाई के साथ उन की जीवन भर की आस भी ख़त्म कर दी।

यह सही है कि माता-पिता वह नियामत हैं जो अनमोल हैं, पर उनके जाने पर, (जाना सभी को है) यदि वह एक अच्छी भरी पूरी ज़िन्दगी जी कर गए हैं तो रोने धोने कि बजाये उन की यादों को सहेजे खुशियों के साथ, क्यूंकि यह तो शरीर छोड़ा है, आत्मा तो अमर है, यह विचार मन को बहुत तसल्ली देता है।


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